विदुर नीति  आठवाँ अध्याय :-Vidur niti chapter 8.

विदुर नीति  आठवाँ अध्याय :-Vidur niti chapter 8. (आठवां अध्याय ) योऽभ्यर्थितः सद्भिरसज्जमानः करोत्यर्थं शक्तिमहापयित्वा। क्षिप्रं यशस्तं समुपैति सन्तमलं प्रसन्ना हि सुखाय सन्तः ॥ १ ॥ विदुरजी कहते हैं-जो सज्जन पुरुषों से आदर पाकर आसक्तिरहित हो अपनी शक्ति के अनुसार अर्थ-साधन करता रहता है, उस श्रेष्ठ पुरुष को शीघ्र ही सुयश की प्राप्ति होती है, … Read more

विदुर नीति  सातवां अध्याय :-Vidur niti chapter 7.

विदुर नीति  सातवां अध्याय :-Vidur niti chapter 7. (सातवां अध्याय) धृतराष्ट्र उवाच। अनीश्वरोऽयं पुरुषो भवाभवे सूत्रप्रोता दारुमयीव योषा। धात्रा हि दिष्टस्य वशे किलायं तस्माद्वद त्वं श्रवणे घृतोऽहम् ॥ १ ॥ धृतराष्ट्र ने कहा-विदुर ! यह पुरुष ऐश्वर्य की प्राप्ति और नाश में स्वतनत्र नहीं है । अरह्माने धागे से बँधी हुई कठपूतली की भाँति इसे … Read more

विदुर नीति  छठवाँ अध्याय :-Vidur niti chapter 6.

विदुर नीति  छठवाँ अध्याय :-Vidur niti chapter 6. (छठवाँ अध्याय) ऊर्ध्वं प्राणा ह्युत्क्रामन्ति यूनः स्थविर आयति । प्रत्युत्थानाभिवादाभ्यां पुनस्तान्पतिपद्यते ॥ १ ॥ विदुरजी कहते हैं- समय नवयुवक व्यक्ति के प्राण ऊपर को उठने लगते हैं, फिर जब वह वृद्ध के स्वागत में उठकर खड़ा होता और प्रणाम करता है, तो पुनः प्राणो को वास्तविक स्थिति … Read more

विदुर नीति चौथा अध्याय :-Vidur niti chapter 4.

विदुर नीति चौथा अध्याय :-Vidur niti chapter 4.   (चौथा अध्याय ) विदुर उवाच। अत्रैवोदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम्। आत्रेयस्य च संवादं साध्यानां चेति नः श्रुतम् ॥ १ ॥ विदुरजी कहते हैं- इस विषय में दरतात्रेय और साध्य देवताओं के संवाद रूप इस प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया करते हैं यह मेरा भी सुना हुआ है॥ १ ॥ … Read more

विदुर नीति तीसरा अध्याय :-Vidur niti chapter 3.

विदुर नीति तीसरा अध्याय :-Vidur niti chapter 3. ( तीसरा अध्याय )   धृतराष्ट्र उवाच । ब्रूहि भूयो महाबुद्धे धर्मार्थसहितं वचः । शृण्वतो नास्ति मे तृप्तिर्विचित्राणीह भाषसे ॥ १ ॥ धृतराष्ट्र ने कहा- महाबुद्धे । तुम पुनः धर्म और अर्थ से युक्त बातें कहो, इन्हें सुनकर मुझे तृप्ति नहों होतो । इस बिषय में तुम … Read more

विदुर नीति दूसरा अध्याय :-Vidur niti chapter 2.

विदुर नीति दूसरा अध्याय :-Vidur niti chapter 2. ( दूसरा अध्याय ) धृतराष्ट्र उवाच । जाग्रतो दह्यमानस्य यत्कार्यमनुपश्यसि । तद्ब्रूहि त्वं हि नस्तात धर्मार्थकुशलः शुचिः ॥ १ ॥ धृतराष्ट्र बोले- तात ! मैं चिन्ता से जलता हुआ अभी तक जाग रहा हूँ, तुम मेरे करने योग्य जो कार्य समझो, उसे बताओ; क्योंकि हम लोगों में … Read more

विदुर नीति पहला अध्याय :-Vidur niti chapter 1  .

विदुर नीति पहला अध्याय :-Vidur niti chapter 1  . (पहला अध्याय:) वैशंपायन उवाच । द्वाःस्थं प्राह महाप्राज्ञो धृतराष्ट्रो महीपतिः । विदुरं द्रष्टुमिच्छामि तमिहानय माचिरम् ॥ १ ॥ वैशम्पायनजी कहते हैं- [संजय के चले जाने पर] महाबुद्धिमान् राजा धृतराष्ट्र ने द्वारपाल से कहा- मैं विदुर से मिलना चाहता हूँ। उन्हें यहाँ शीघ्र बुला लाओ’॥ १ ॥ … Read more

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