Shiv puran kotirudra samhita chapter 8 to 14 (शिव पुराण  कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 8 से 14 प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथके प्रादुर्भावकी कथा और उसकी महिमा)

(कोटिरुद्रसंहिता) Shiv puran kotirudra samhita chapter 8 to 14 (शिव पुराण  कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 8 से 14 प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथके प्रादुर्भावकी कथा और उसकी महिमा) :-तदनन्तर कपिला नगरीके कालेश्वर, रामेश्वर आदिकी महिमा बताते हुए सूतजीने समुद्रके तटपर स्थित गोकर्णक्षेत्रके शिवलिंगोंकी महिमाका वर्णन किया। फिर महाबल नामक शिवलिंगका अद्भुत माहात्म्य सुनाकर अन्य बहुत-से शिवलिंगोंकी विचित्र माहात्म्य-कथाका वर्णन … Read more

Shiv puran kotirudra samhita chapter 5 to 7 (शिव पुराण  कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 5 से 7 ऋषिकापर भगवान् शिवकी कृपा, एक असुरसे उसके धर्मकी रक्षा करके उसके आश्रममें ‘नन्दिकेश’ नामसे निवास करना और वर्षमें एक दिन गंगाका भी वहाँ आना)

(कोटिरुद्रसंहिता) Shiv puran kotirudra samhita chapter 5 to 7 (शिव पुराण  कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 5 से 7 ऋषिकापर भगवान् शिवकी कृपा, एक असुरसे उसके धर्मकी रक्षा करके उसके आश्रममें ‘नन्दिकेश’ नामसे निवास करना और वर्षमें एक दिन गंगाका भी वहाँ आना) :-तदनन्तर श्रीसूतजीने जब बहुत-से शिवलिंगोंके कथाप्रसंग सुना दिये, तब ऋषियोंने पूछा- ‘महामते सूतजी ! वैशाख … Read more

Shiv puran kotirudra samhita chapter 2 to 4 (शिव पुराण  कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 2 काशी आदिके विभिन्न लिंगोंका वर्णन तथा अत्रीश्वरकी उत्पत्तिके प्रसंगमें गंगा और शिवके अत्रिके तपोवनमें नित्य निवास करनेकी कथा)

(कोटिरुद्रसंहिता) Shiv puran kotirudra samhita chapter 2 to 4 (शिव पुराण  कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 2 से 4 काशी आदिके विभिन्न लिंगोंका वर्णन तथा अत्रीश्वरकी उत्पत्तिके प्रसंगमें गंगा और शिवके अत्रिके तपोवनमें नित्य निवास करनेकी कथा)  :-सूतजी कहते हैं-मुनीश्वरो ! गंगाजीके तटपर मुक्तिदायिनी काशीपुरी सुप्रसिद्ध है। वह भगवान् शिवकी निवासस्थली मानी गयी है। उसे शिवलिंगमयी ही समझना … Read more

Shiv puran kotirudra samhita chapter 1 (शिव पुराण  कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 1 द्वादश ज्योतिर्लिंगों तथा उनके उपलिंगोंका वर्णन एवं उनके दर्शन-पूजनकी महिमा)

(कोटिरुद्रसंहिता) Shiv puran kotirudra samhita chapter 1 (शिव पुराण  कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 1 द्वादश ज्योतिर्लिंगों तथा उनके उपलिंगोंका वर्णन एवं उनके दर्शन-पूजनकी महिमा)   “यो धत्ते निजमाययैव भुवनाकारं विकारोज्झितो यस्याहुः करुणाकटाक्षविभवौ स्वर्गापवर्गाभिधौ । प्रत्यग्बोधसुखाद्वयं हृदि सदा पश्यन्ति यं योगिन- स्तस्मै शैलसुताञ्चितार्द्धवपुषे शश्वन्नमस्तेजसे ॥ १ ॥” “जो निर्विकार होते हुए भी अपनी मायासे ही विराट् विश्वका आकार … Read more

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