Devi Bhagwat puran mahima chapter 5(देवी भागवत पुराण महिमा पञ्चमोऽध्यायःश्रीमद्देवीभागवतपुराणकी श्रवण-विधि, श्रवणकर्ताके लिये पालनीय नियम, श्रवणके फल तथा माहात्म्यका वर्णन)

Devi Bhagwat puran mahima chapter 5(देवी भागवत पुराण महिमापञ्चमोऽध्यायः श्रीमद्देवीभागवतपुराणकी श्रवण-विधि, श्रवणकर्ताके लिये पालनीय नियम, श्रवणके फल तथा माहात्म्यका वर्णन) [अथ पञ्चमोऽध्यायः] श्रीमद्देवीभागवतपुराणकी श्रवण-विधि, श्रवणकर्ताके लिये पालनीय नियम, श्रवणके फल तथा माहात्म्यका वर्णन :-ऋषियोंने कहा- हे महाभाग सूतजी ! हमलोगोंने श्रीमद्देवीभागवतमाहात्म्य सुन लिया और अब इस पुराणके श्रवणकी विधि सुनना चाहते हैं ॥ १॥ सूतजी … Read more

Devi bhagwat mahima chapter 3(देवी भागवत पुराण माहात्म्य तृतीयोऽध्यायःश्रीमद्देवीभागवतके माहात्म्यके प्रसंगमें राजा सुद्युम्नकी कथा)

Devi bhagwat mahima chapter 3(देवी भागवत पुराण  माहात्म्यके प्रसंगमें राजा सुद्युम्नकी कथा) [अथ तृतीयोऽध्यायः] सूतजी बोले – हे मुनिवरो ! अब आपलोग एक अन्य इतिहास सुनिये, जिसमें इस देवीभागवतके माहात्म्यका वर्णन किया गया है ॥ १ ॥ एक बार कुम्भयोनि लोपामुद्रापति महर्षि अगस्त्यने कुमार कार्तिकेयके पास जाकर उनकी भलीभाँति पूजा करके उनसे विविध प्रकारकी बातें … Read more

Devi bhagwat puran mahima chapter 2(देवी भागवत पुराण महिमा द्वितीयोऽध्यायःश्रीमद्देवीभागवतके माहात्म्यके प्रसंगमें स्यमन्तकमणिकी कथा)

Devi bhagwat puran mahima chapter 2(देवी भागवत पुराण महिमा द्वितीयोऽध्यायःश्रीमद्देवीभागवतके माहात्म्यके प्रसंगमें स्यमन्तकमणिकी कथा)    -ऋषिगण बोले – महाभाग वसुदेवजीने अपने पुत्रको किस प्रकार प्राप्त किया और वनमें भ्रमण करते हुए श्रीकृष्णने प्रसेनको कैसे खोजा ?   हे सुमते ! हे सूतजी ! किस विधिसे और किससे वसुदेवजीने श्रीमद्देवीभागवतपुराणका श्रवण किया; आप हमलोगोंको यह कथा … Read more

Shrimad devi bhagwat puran mahima chapter 1 (देवी भागवत पुराण महिमा प्रथमोऽध्यायः सूतजीके द्वारा ऋषियोंके प्रति श्रीमद्देवीभागवतके श्रवणकी महिमाका कथन )

॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥ ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ [श्रीमद्देवीभागवतमाहात्म्यम्] Shrimad devi bhagwat puran mahima chapter 1 (श्रीमद्देवीभागवतमाहात्म्यम्  प्रथमोऽध्यायः सूतजीके द्वारा ऋषियोंके प्रति श्रीमद्देवीभागवतके श्रवणकी महिमाका कथन ) जगत्के सृष्टिकार्यमें जो उत्पत्तिरूपा, रक्षाकार्यमें पालनशक्तिरूपा, संहारकार्यमें रौद्ररूपा हैं, सम्पूर्ण विश्व-प्रपंच जिनके लिये क्रीडास्वरूप है, जो परा- पश्यन्ती-मध्यमा तथा वैखरी वाणीमें अभिव्यक्त होती हैं … Read more

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