Srimadvalmiki ramayana mahatmya chapter 2(श्रीमद्वाल्मीकीय रामायणमाहात्म्य दूसरा अध्याय नारद-सनत्कुमार-संवाद, सुदास या सोमदत्त नामक ब्राह्मणको राक्षसत्वकी प्राप्ति तथा रामायण-कथा-श्रवणद्वारा उससे उद्धार)
(दूसरा अध्याय)
नारद-सनत्कुमार-संवाद, सुदास या सोमदत्त नामक ब्राह्मणको राक्षसत्वकी प्राप्ति तथा रामायण-कथा-श्रवणद्वारा उससे उद्धार
ऋषियोंने पूछा- महामुने ! देवर्षि नारदमुनिने सनत्कुमारजीसे रामायणसम्बन्धी सम्पूर्ण धर्मोंका किस प्रकार वर्णन किया था? उन दोनों ब्रह्मवादी महात्माओंका किस क्षेत्रमें मिलन हुआ था? तात! वे दोनों कहाँ ठहरे थे? नारदजीने उनसे जो कुछ कहा था, वह सब आप हमलोगोंको बताइये ॥ १-२ ।।
सूतजीने कहा- मुनिवरो ! सनकादि महात्मा भगवान् ब्रह्माजीके पुत्र माने गये हैं। उनमें ममता और अहंकारका तो नाम भी नहीं है। वे सब-के-सब ऊध्र्वरता (नैष्ठिक ब्रह्मचारी) हैं।॥ ३ ॥
मैं आपलोगोंसे उनके नाम बताता हूँ, सुनिये। सनक, सनन्दन, सनत्कुमार और सनातन – ये चारों सनकादि माने गये हैं। ४ ।।
वे भगवान् विष्णुके भक्त और महात्मा हैं। सदा ब्रह्मके चिन्तनमें लगे रहते हैं। बड़े सत्यवादी हैं। सहस्रों सूर्योके समान तेजस्वी एवं मोक्षके अभिलाषी हैं।॥ ५ ॥
एक दिन वे महातेजस्वी ब्रह्मपुत्र सनकादि ब्रह्माजीकी सभा देखनेके लिये मेरु पर्वतके शिखरपर गये ॥ ६ ॥
वहाँ भगवान् विष्णुके चरणोंसे प्रकट हुर्इइ परम पुण्यमयी गंगानदी, जिन्हें सीता भी कहते हैं, बह रही थीं। उनका दर्शन करके वे तेजस्वी महात्मा उनके जलमें स्नान करनेको उद्यत हुए ॥ ७
ब्राह्मणो! इतनेमें ही देवर्षि नारदमुनि भगवान्के नारायण आदि नामोंका उच्चारण करते हुए वहाँ आ पहुँचे ॥ ८ ॥
वे ‘नारायण ! अच्युत ! अनन्त ! वासुदेव! जनार्दन ! यज्ञेश! यज्ञपुरुष! राम! विष्णो ! आपको नमस्कार है।’ इस प्रकार भगवन्नामका उच्चारण करके सम्पूर्ण जगत्को पवित्र बनाते और एकमात्र लोकपावनी गंगाकी स्तुति करते हुए वहाँ आये ।। ९-१० ।।
उन्हें आते देख महातेजस्वी सनकादि मुनियोंने उनकी यथोचित पूजा की तथा नारदजीने भी उन मुनियोंको मस्तक झुकाया ॥ ११ ॥
तदनन्तर वहाँ मुनियोंकी सभामें सनत्कुमारजीने भगवान् नारायणके परम भक्त मुनिवर नारदसे इस प्रकार कहा। १२ ।।
सनत्कुमार बोले – महाप्राज्ञ नारदजी ! आप समस्त मुनीश्वरोंमें सर्वज्ञ हैं। सदा श्रीहरिकी भक्तिमें तत्पर रहते हैं, अतः आपसे बढ़कर दूसरा कोइ नहीं है।॥ १३ ॥
इसलिये मैं पूछता हूँ, जिनसे समस्त चराचर जगत्की उत्पत्ति हुई है तथा ये गंगाजी जिनके चरणोंसे प्रकट हुर्केड़ हैं, उन श्रीहरिके स्वरूपका ज्ञान कैसे होता है? यदि आपकी हमलोगोंपर कृपा हो तो हमारे इस प्रश्नका यथार्थरूपसे विवेचन कीजिये ॥ १४१/२ ।।
नारदजीने कहा- जो परसे भी परतर हैं, उन परमदेव श्रीरामको नमस्कार है। जिनका निवास-स्थान (परमधाम) उत्कृष्टसे भी उत्कृष्ट है तथा जो सगुण और निर्गुणरूप हैं, उन श्रीरामको मेरा नमस्कार है।।
ज्ञान-अज्ञान, धर्म-अधर्म तथा विद्या और अविद्या- ये सब जिनके अपने ही स्वरूप हैं तथा जो सबके आत्मरूप हैं, उन आप परमेश्वरको नमस्कार है॥ १६१/२ ॥
जो दैत्योंका विनाश और नरकका अन्त करनेवाले हैं, जो अपने हाथके संकेतमात्रसे अथवा अपनी भुजाओंके बलसे धर्मकी रक्षा करते हैं, पृथ्वीके भारका विनाश जिनका मनोरञ्जनमात्र है और जो उस मनोरञ्जनकी सदा अभिलाषा रखते हैं, उन रघुकुलदीप श्रीरामदेवको मैं नमस्कार करता हूँ। १७ १/२ ॥
जो एक होकर भी चार स्वरूपोंमें अवतीर्ण होते हैं, जिन्होंने वानरोंको साथ लेकर राक्षससेनाका संहार किया है, उन दशरथनन्दन श्रीरामचन्द्रजीका मैं भजन करता हूँ। १८१/२ ।।
भगवान् श्रीरामके ऐसे-ऐसे अनेक चरित्र हैं, जिनके नाम करोड़ों वर्षोंमें भी नहीं गिनाये जा सकते हैं।॥ १९१/२ ।।
जिनके नामकी महिमाका मनु और मुनीश्वर भी पार नहीं पा सकते, वहाँ मेरे-जैसे क्षुद्र जीवकी पहुँच कैसे हो सकती है।॥ २० १/२ ।।
जिनके नामके स्मरणमात्रसे बड़े-बड़े पातकी भी पावन बन जाते हैं, उन परमात्माका स्तवन मेरे-जैसा तुच्छ बुद्धिवाला प्राणी कैसे कर सकता है॥ २११/२ ॥
जो द्विज घोर कलियुगमें रामायण-कथाका आश्रय लेते हैं, वे ही कृतकृत्य हैं। उनके लिये तुम्हें सदा नमस्कार करना चाहिये ॥ २२१/२ ।।
सनत्कुमारजी ! भगवान्की महिमाको जाननेके लिये कार्तिक, माघ और चैत्रके शुक्ल पक्षमें रामायणकी अमृतमयी कथाका नवाह श्रवण करना चाहिये ॥ २३१/२ ।।
ब्राह्मण सुदास गौतमके शापसे राक्षस-शरीरको प्राप्त हो गये थे; परंतु रामायणके प्रभावसे ही उन्हें उस शापसे छुटकारा मिला था।। २४ १/२ ।।
सनत्कुमारने पूछा- मुनिश्रेष्ठ! सम्पूर्ण धर्मोंका फल देनेवाली रामायणकथाका किसने वर्णन किया है? सौदासको गौतमद्वारा कैसे शाप प्राप्त हुआ? फिर वे रामायणके प्रभावसे किस प्रकार शापमुक्त हुए थे।
मुने ! यदि आपका हमलोगोंपर अनुग्रह हो तो सब कुछ ठीक-ठीक बताइये। इन सारी बातोंसे हमें अवगत कराइये; क्योंकि भगवान्की कथा वक्ता और श्रोता दोनोंके पापोंका नाश करनेवाली है॥ २७१/२ ॥
नारदजीने कहा- ब्रह्मन् ! रामायणका प्रादुर्भाव महर्षि वाल्मीकिके मुखसे हुआ है। तुम उसीको श्रवण करो। रामायणकी अमृतमयी कथाका श्रवण नौ दिनोंमें करना चाहिये ॥ २८१/२
सत्ययुगमें एक ब्राह्मण थे, जिन्हें धर्म-कर्मका विशेष ज्ञान था। उनका नाम था सोमदत्त। वे सदा धर्मके पालनमें ही तत्पर रहते थे॥ २९१/२ ।।
(वे ब्राह्मण सौदास नामसे भी विख्यात थे।) ब्राह्मणने ब्रह्मवादी गौतम मुनिसे गंगाजीके मनोरम तटपर सम्पूर्ण धर्मोंका उपदेश सुना था। गौतमने पुराणों और शास्त्रोंकी कथाओंद्वारा उन्हें तत्त्वका ज्ञान कराया था। सौदासने गौतमसे उनके बताये हुए सम्पूर्ण धर्मोंका श्रवण किया था॥ ३०-३११/२ ।।
एक दिनकी बात है, सौदास परमेश्वर शिवकी आराधनामें लगे हुए थे। उसी समय वहाँ उनके गुरु गौतमजी आ पहुँचे; परंतु सौदासने अपने निकट आये हुए गुरुको भी उठकर प्रणाम नहीं किया ॥ ३२१/२ I
परम बुद्धिमान् गौतम तेजकी निधि थे, वे शिष्यके बर्तावसे रुष्ट न होकर शान्त ही बने रहे। उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हु ंइ कि मेरा शिष्य सौदास शास्त्रोक्त कर्मोंका अनुष्ठान करता है। ३३१ ॥
किंतु सौदासने जिनकी आराधना की थी, वे सम्पूर्ण जगत्के गुरु महादेव शिव गुरुकी अवहेलनासे होनेवाले पापको न सह सके। उन्होंने सौदासको राक्षसकी योनिमें जानेका शाप दे दिया। तब विनयकलाकोविद ब्राह्मणने हाथ जोड़कर गौतमसे कहा॥ ३४-३५ ॥
ब्राह्मण बोले- सम्पूर्ण धर्मोंके ज्ञाता ! सर्वदर्शी! सुरेश्वर! भगवन्! मैंने जो अपराध किया है. वह सब आप क्षमा कीजिये ॥ ३६ ॥
गौतमने कहा-वत्स ! कार्तिक मासके शुक्लपक्षमें तुम रामायणकी अमृतमयी कथाको भक्तिभावसे आदरपूर्वक श्रवण करो। इस कथाको नौ दिनोंमें सुनना चाहिये। ऐसा करनेसे यह शाप अधिक दिनोंतक नहीं रहेगा। केवल बारह वर्षांतक ही रह सकेगा ॥ ३७१/२ ।।
ब्राह्मणने पूछा – रामायणकी कथा किसने कही है? तथा उसमें किसके चरित्रोंका वर्णन किया गया है? महामते! यह सब संक्षेपसे बतानेकी कृपा करें। यों कहकर मन-ही-मन प्रसन्न हो सौदासने गुरुके चरणोंमें प्रणाम किया ॥ ३८-३९ ॥
गौतमने कहा- ब्रह्मन् ! सुनो। रामायण-काव्यका निर्माण वाल्मीकि मुनिने किया है। जिन भगवान् श्रीरामने अवतार ग्रहण करके रावण आदि राक्षसोंका संहार किया और देवताओंका कार्य सँवारा था, उन्हींके चरित्रका रामायण-काव्यमें वर्णन है। तुम उसीका श्रवण करो। कार्तिकमासके शुक्लपक्षमें नवें दिन अर्थात् प्रतिपदासे नवमीतक रामायणकी कथा सुननी चाहिये। वह समस्त पापोंका नाश करनेवाली है।॥ ४०-४१ १/२ ।।
ऐसा कहकर पूर्णकाम गौतम ऋषि अपने आश्रमको चले गये। इधर सोमदत्त या सुदास नामक ब्राह्मणने दुःखमग्न होकर राक्षस-शरीरका आश्रय लिया ॥ ४२ १/२ ॥
वे सदा भूख-प्याससे पीड़ित तथा क्रोधके वशीभूत रहते थे। उनके शरीरका रंग कृष्ण पक्षकी रातके समान काला था। वे भयानक राक्षस होकर निर्जन वनमें भ्रमण करने लगे ॥ ४३१/२ 11
वहाँ वे नाना प्रकारके पशुओं, मनुष्यों, साँप-बिच्छू आदि जन्तुओं, पक्षियों और वानरोंको बलपूर्वक पकड़कर खा जाते थे।॥ ४४ १/२ ।।
ब्रह्मर्षियो ! उस राक्षसके द्वारा यह पृथ्वी बहुत-सी हड्डियों तथा लाल-पीले शरीरवाले रक्तपायी प्रेतोंसे परिपूर्ण हो अत्यन्त भयंकर दिखायी देने लगी ॥ ४५१/२ ॥
छः महीनेमें ही सौ योजन विस्तृत भूभागको अत्यन्त दुःखित करके वह राक्षस पुनः दूसरे किसी वनमें चला गया ॥ ४६१/२ ।।
वहाँ भी वह प्रतिदिन नरमांसका भोजन करता रहा। सम्पूर्ण लोकोंके मनमें भय उत्पन्न करनेवाला वह राक्षस घूमता-घामता नर्मदाजीके तटपर जा पहुँचा ॥ ४७ १/२ ।।
इसी समय कोइ अत्यन्त धर्मात्मा ब्राह्मण उधर आ निकला। उसका जन्म कलिंगदेशमें हुआ था। लोगोंमें वह गर्ग नामसे विख्यात था॥ ४८१/२ ॥
कंधेपर गंगाजल लिये भगवान् विश्वनाथकी स्तुति तथा श्रीरामके नामोंका गान करता हुआ वह ब्राह्मण बड़े हर्ष और उत्साहमें भरकर उस पुण्य प्रदेशमें आया था।॥ ४९१/२ ।।
गर्ग मुनिको आते देख राक्षस सुदास बोल उठा, ‘हमें भोजन प्राप्त हो गया।’ ऐसा कहकर अपनी दोनों भुजाओंको ऊपर उठाये हुए वह मुनिकी ओर चला; परंतु उनके द्वारा उच्चारित होनेवाले भगवन्नामोंको सुनकर वह दूर ही खड़ा रहा। उन ब्रह्मर्षिको मारनेमें असमर्थ होकर राक्षस उनसे इस प्रकार बोला ॥ ५०-५१ १/२ ।।
राक्षसने कहा- यह तो बड़े आश्चर्यकी बात है! भद्र ! महाभाग ! आप महात्माको नमस्कार है। आप जो भगवन्नामोंका स्मरण कर रहे हैं, इतनेसे ही राक्षस भी दूर भाग जाते हैं। मैंने पहले कोटि सहस्र ब्राह्मणोंका भक्षण किया है॥ ५२-५३ ॥
ब्रह्मन् ! आपके पास जो नामरूपी कवच है, वही राक्षसोंके महान् भयसे आपकी रक्षा करता है। आपके द्वारा किये गये नामस्मरणमात्रसे हम राक्षसोंको भी परम शान्ति प्राप्त हो गयी। यह भगवान् अच्युतकी कैसी महिमा है॥ ५४१/२ ।।
महाभाग ब्राह्मण! आप श्रीरामकथाके प्रभावसे सर्वथा राग आदि दोषोंसे रहित हो गये हैं। अतः आप मुझे इस अधम पातकसे बचाइये ॥ ५५१/२ ॥
मुनिश्रेष्ठ! मैंने पूर्वकालमें अपने गुरुकी अवहेलना की थी। फिर गुरुजीने मुझपर अनुग्रह किया और यह बात कही॥ ५६२ ॥
‘पूर्वकालमें वाल्मीकि मुनिने जो रामायणकी कथा कही है, उसका कार्तिकमासके शुक्ल पक्षमें प्रयत्नपूर्वक श्रवण करना चाहिये’ ।॥ ५७१/२ ।।
इतना कहकर गुरुदेवने पुनः यह सुन्दर एवं शुभदायक वचन कहा- ‘रामायणकी अमृतमयी कथा नौ दिनमें सुननी चाहिये’ ।। ५८ १/२ ॥
अतः सम्पूर्ण शास्त्रोंके तत्त्वको जाननेवाले महाभाग ब्राह्मण! आप मुझे रामायणकथा सुनाकर इस पापकर्मसे मेरी रक्षा कीजिये ॥ ५९१/२ ।।
नारदजी कहते हैं- उस समय वहाँ राक्षसके मुखसे रामायणका परिचय तथा श्रीरामके
उत्तम माहात्म्यका वर्णन सुनकर द्विजश्रेष्ठ गर्ग आश्चर्यचकित हो उठे। श्रीरामका नाम ही उनके जीवनका अवलम्ब था। वे ब्राह्मणदेवता उस राक्षसके प्रति दयासे द्रवित हो गये और सुदाससे इस प्रकार बोले ॥ ६०-६११/२ ।।
ब्राह्मणने कहा- महाभाग ! राक्षसराज ! तुम्हारी बुद्धि निर्मल हो गयी है। इस समय कार्तिकमासका शुक्ल पक्ष चल रहा है। इसमें रामायणकी कथा सुनो। रामभक्तिपरायण राक्षस! तुम श्रीरामचन्द्रजीके माहात्म्यको श्रवण करो ॥ ६२-६३ ॥
श्रीरामचन्द्रजीके ध्यानमें तत्पर रहनेवाले मनुष्योंको बाधा पहुँचानेमें कौन समर्थ हो सकता है। जहाँ श्रीरामका भक्त है, वहाँ ब्रह्मा, विष्णु और शिव विराजमान हैं। वहीं देवता, सिद्ध तथा रामायणका आश्रय लेनेवाले मनुष्य हैं॥ ६४ १/२ ।।
अतः इस कार्तिकमासके शुक्ल पक्षमें तुम रामायणकी कथा सुनो। नौ दिनोंतक इस
कथाको सुननेका विधान है। अतः तुम सदा सावधान रहो। ६५१/२ ॥
ऐसा कहकर गर्ग मुनिने उसे रामायणकी कथा सुनायी। कथा सुनते ही उसका राक्षसत्व दूर हो गया। राक्षस-भावका परित्याग करके वह देवताओंके समान सुन्दर, करोड़ों सूर्योके समान तेजस्वी और भगवान् नारायणके समान कान्तिमान् हो गया। अपनी चार भुजाओंमें शङ्ख, चक्र, गदा और पद्म लिये वह श्रीहरिके वैकुण्ठधाममें चला गया। ब्राह्मण गर्ग मुनिकी भूरि-भूरि प्रशंसा करता हुआ वह भगवान्के उत्तम धाममें जा पहुँचा ॥ ६६-६९ ॥
नारदजी कहते हैं- विप्रवरो ! अतः आपलोग भी रामायणकी अमृतमयी कथा सुनिये। इसके श्रवणकी सदा ही महिमा है, किंतु कार्तिकमासमें विशेष बतायी गयी है॥ ७० ॥
रामायणके नामका स्मरण करनेसे ही मनुष्य करोड़ों महापातकों तथा समस्त पापोंसे मुक्त हो परमगतिको प्राप्त होता है॥ ७१ ॥
मनुष्य ‘रामायण’ इस नामका जब एक बार भी उच्चारण करता है, तभी वह समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है और अन्तमें भगवान् विष्णुके लोकमें चला जाता है॥ ७२ ॥
जो मनुष्य सदा भक्तिभावसे रामायण-कथाको पढ़ते और सुनते हैं, उन्हें गंगास्नानकी अपेक्षा सौगुना पुण्यफल प्राप्त होता है॥ ७३ ॥
इस प्रकार श्रीस्कन्दपुराणके उत्तरखण्डमें नारद-सनत्कुमारसंवादके अन्तर्गत वाल्मीकीय रामायणमाहात्म्यके प्रसंगमें राक्षसका उद्धार नामक दूसरा अध्याय पूरा हुआ ॥ २॥