(श्रीमद देवी भागवत महापुराण किताब पढ़े ☝️)
[श्रीमददेवी भागवत महापुराण]
[श्री गणेशाय नमः]
॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥
॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥
[Shrimad Devi Bhagwat Puran in hindi(सम्पूर्ण श्रीमद् देवी भागवत पुराण)]
(1)देवी भागवत प्रस्तावना(Devi Bhagwat introduction)
(2.)Devi Bhagwat importance (श्रीमद्देवीभागवतमाहात्म्य)
(3)Ardhasloki Devi Bhagwat(अर्धश्लोकी देवीभागवत)
(4.) Devi Bhavanyashtakam(भवान्यष्टकम्)
[देवी भागवत महात्म्य अध्याय:]
(1.)श्रीमद्देवीभागवतमाहात्म्यम् प्रथमोऽध्यायः सूतजीके द्वारा ऋषियोंके प्रति श्रीमद्देवीभागवतके श्रवणकी महिमाका कथन )
(2.)द्वितीयोऽध्यायःश्रीमद्देवीभागवतके माहात्म्यके प्रसंगमें स्यमन्तकमणिकी कथा)
(3.)देवी भागवत पुराण माहात्म्यके प्रसंगमें राजा सुद्युम्नकी कथा
(4.)चतुर्थोऽध्यायःश्रीमद्देवीभागवतके माहात्म्यके प्रसंगमें रेवती नक्षत्रके पतन और पुनः स्थापनकी कथा तथा श्रीमद्देवीभागवतके श्रवणसे राजा दुर्दमको मन्वन्तराधिप-पुत्रकी प्राप्ति
(5.)पञ्चमोऽध्यायः श्रीमद्देवीभागवतपुराणकी श्रवण-विधि, श्रवणकर्ताके लिये पालनीय नियम, श्रवणके फल तथा माहात्म्यका वर्णन)
[[ पूर्वार्ध ]
[प्रथमः स्कन्धः]
(1.)प्रथमोऽध्यायःमहर्षि शौनकका सूतजीसे श्रीमद्देवीभागवतपुराण सुनानेकी प्रार्थना करना
(2.)द्वितीयोऽध्यायः -सूतजीद्वारा श्रीमद्देवीभागवतके स्कन्ध, अध्याय तथा श्लोकसंख्याका निरूपण और उसमें प्रतिपादित विषयोंका वर्णन
(3.)तृतीयोऽध्यायःसूतजीद्वारा पुराणोंके नाम तथा उनकी श्लोकसंख्याका कथन, उपपुराणों तथा प्रत्येक द्वापरयुगके व्यासोंका नाम
(4.)चतुर्थोऽध्यायःनारदजीद्वारा व्यासजीको देवीकी महिमा बताना
(5.)पञ्चमोऽध्यायः भगवती लक्ष्मीके शापसे विष्णुका मस्तक कट जाना, वेदोंद्वारा स्तुति करनेपर देवीका प्रसन्न होना, भगवान् विष्णुके हयग्रीवावतारकी कथा
(6.)षष्ठोऽध्यायःशेषशायी भगवान् विष्णुके कर्णमलसे मधु-कैटभकी उत्पत्ति तथा उन दोनोंका ब्रह्माजीसे युद्धके लिये तत्पर होना
(7.)सप्तमोऽध्यायःब्रह्माजीका भगवान् विष्णु तथा भगवती योगनिद्राकी स्तुति करना
(8.)अथाष्टमोऽध्यायःभगवान् विष्णु योगमायाके अधीन क्यों हो गये – ऋषियोंके इस प्रश्नके उत्तरमें सूतजीद्वारा उन्हें आद्याशक्ति भगवतीकी महिमा सुनाना
(9.) नवमोऽध्यायःभगवान् विष्णुका मधु-कैटभसे पाँच हजार वर्षांतक युद्ध करना, विष्णुद्वारा देवीकी स्तुति तथा देवीद्वारा मोहित मधु-कैटभका विष्णद्वारा वध
(10.)दशमोऽध्यायःव्यासजीकी तपस्या और वर-प्राप्ति
(11.)एकादश अध्याय: बुधके जन्मकी कथा
(12.)द्वादशोऽध्यायःराजा सुद्युम्नकी इला नामक स्त्रीके रूपमें परिणति, इलाका बुधसे विवाह और पुरूरवाकी उत्पत्ति, भगवतीकी स्तुति करनेसे इलारूपधारी राजा सुद्युम्नकी सायुज्यमुक्ति
(13.)त्रयोदशोऽध्यायः राजा पुरूरवा और उर्वशीकी कथा
(14.)चतुर्दशोऽध्यायःव्यासपुत्र शुकदेवके अरणिसे उत्पन्न होनेकी कथा तथा व्यासजीद्वारा उनसे गृहस्थधर्मका वर्णन
(15.)पञ्चदशोऽध्यायःशुकदेवजीका विवाहके लिये अस्वीकार करना तथा व्यासजीका उनसे श्रीमद्देवीभागवत पढ़नेके लिये कहना
(16.)षोडशोऽध्यायःबालरूपधारी भगवान् विष्णुसे महालक्ष्मीका संवाद, व्यासजीका शुकदेवजीसे देवीभागवतप्राप्तिकी परम्परा बताना तथा शुकदेवजीका मिथिला जानेका निश्चय करना
(17.)सप्तदशोऽध्यायःशुकदेवजीका राजा जनकसे मिलनेके लिये मिथिलापुरीको प्रस्थान तथा राजभवनमें प्रवेश
(18.)अथाष्टादशोऽध्यायः शुकदेवजीके प्रति राजा जनकका उपदेश
(19.)अथैकोनविंशोऽध्यायःशुकदेवजीका व्यासजीके आश्रममें वापस आना, विवाह करके सन्तानोत्पत्ति करना तथा परम सिद्धिकी प्राप्ति करना
(20.)विंशोऽध्यायःसत्यवतीका राजा शन्तनुसे विवाह तथा दो पुत्रोंका जन्म, राजा शन्तनुकी मृत्यु, चित्रांगदका राजा बनना तथा उसकी मृत्यु, विचित्रवीर्यका काशिराजकी कन्याओंसे विवाह और क्षयरोगसे मृत्यु, व्यासजीद्वारा धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुरकी उत्पत्ति
[द्वितीयः स्कन्धः]
(1.)प्रथम अध्याय ब्राह्मणके शापसे अद्रिका अप्सराका मछली होना और उससे राजा मत्स्य तथा मत्स्यगन्धाकी उत्पत्ति
(2.)द्वितीयोऽध्यायः व्यासजीकी उत्पत्ति और उनका तपस्याके लिये जाना
(3.)तृतीयोऽध्यायःराजा शन्तनु, गंगा और भीष्मके पूर्वजन्मकी कथा
(4.)चतुर्थोऽध्यायःगंगाजीद्वारा राजा शन्तनुका पतिरूपमें वरण, सात पुत्रोंका जन्म तथा गंगाका उन्हें अपने जलमें प्रवाहित करना, आठवें पुत्रके रूपमें भीष्मका जन्म तथा उनकी शिक्षा-दीक्षा
(5.)पञ्चमोऽध्यायःमत्स्यगन्धा (सत्यवती) को देखकर राजा शन्तनुका मोहित होना, भीष्मद्वारा आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण करनेकी प्रतिज्ञा करना और शन्तनुका सत्यवतीसे विवाह
(6.)षष्ठोऽध्यायः दुर्वासाका कुन्तीको अमोघ कामद मन्त्र देना, मन्त्रके प्रभावसे कन्यावस्थामें ही कर्णका जन्म, कुन्तीका राजा पाण्डुसे विवाह, शापके कारण पाण्डुका सन्तानोत्पादनमें असमर्थ होना, मन्त्र-प्रयोगसे कुन्ती और माद्रीका पुत्रवती होना, पाण्डुकी मृत्यु और पाँचों पुत्रोंको लेकर कुन्तीका हस्तिनापुर आना
(7.)सप्तमोऽध्यायःधृतराष्ट्रका युधिष्ठिरसे दुर्योधनके पिण्डदानहेतु धन माँगना, भीमसेनका प्रतिरोध; धृतराष्ट्र, गान्धारी, कुन्ती, विदुर और संजयका वनके लिये प्रस्थान, वनवासी धृतराष्ट्र तथा माता कुन्तीसे मिलनेके लिये युधिष्ठिरका भाइयोंके साथ वनगमन, विदुरका महाप्रयाण, धृतराष्ट्रसहित पाण्डवोंका व्यासजीके आश्रमपर आना, देवीकी कृपासे व्यासजीद्वारा महाभारत युद्धमें मरे कौरवों-पाण्डवोंके परिजनोंको बुला देना
(8.)अथाष्टमोऽध्यायःधृतराष्ट्र आदिका दावाग्निमें जल जाना, प्रभासक्षेत्रमें यादवोंका परस्पर युद्ध और संहार, कृष्ण और बलरामका परमधामगमन, परीक्षित्को राजा बनाकर पाण्डवोंका हिमालय- पर्वतपर जाना, परीक्षित्को शापकी प्राप्ति, प्रमद्वरा और रुरुका वृत्तान्त
(9.)नवमोऽध्यायःसर्पके काटनेसे प्रमद्वराकी मृत्यु, रुरुद्वारा अपनी आधी आयु देकर उसे जीवित कराना, मणि-मन्त्र-औषधिद्वारा सुरक्षित राजा परीक्षित्का सात तलवाले भवनमें निवास करना
(10.)दशमोऽध्यायः महाराज परीक्षित्को हँसनेके लिये तक्षकका प्रस्थान, मार्गमें मन्त्रवेत्ता कश्यपसे भेंट, तक्षकका एक वटवृक्षको हँसकर भस्म कर देना और कश्यपका उसे पुनः हरा-भरा कर देना, तक्षकद्वारा धन देकर कश्यपको वापस कर देना, सर्पदंशसे राजा परीक्षित्की मृत्यु
(11.)अथैकादशोऽध्यायःजनमेजयका राजा बनना और उत्तंककी प्रेरणासे सर्प-सत्र करना, आस्तीकके कहनेसे राजाद्वारा सर्प-सत्र रोकना
(12.)द्वादशोऽध्यायःआस्तीकमुनिके जन्मकी कथा, कद्रू और विनताद्वारा सूर्यके घोड़ेके रंगके विषयमें शर्त लगाना और विनताको दासीभावकी प्राप्ति, कद्रूद्वारा अपने पुत्रोंको शाप
[तृतीयः स्कन्धः]
(1.)प्रथमोऽध्यायःराजा जनमेजयका ब्रह्माण्डोत्पत्तिविषयक प्रश्न तथा इसके उत्तरमें व्यासजीका पूर्वकालमें नारदजीके साथ हुआ संवाद सुनाना)
(2.)द्वितीयोऽध्यायःभगवती आद्याशक्तिके प्रभावका वर्णन
(3.) तृतीयोऽध्यायः ब्रह्मा, विष्णु और महेशका विभिन्न लोकोंमें जाना तथा अपने ही सदृश अन्य ब्रह्मा, विष्णु और महेशको देखकर आश्चर्यचकित होना, देवीलोकका दर्शन)
(4.) चतुर्थोऽध्यायःभगवतीके चरणनखमें त्रिदेवोंको सम्पूर्ण ब्रह्माण्डका दर्शन होना, भगवान् विष्णुद्वारा देवीकी स्तुति करना)
(5.)पञ्चमोऽध्यायः ब्रह्मा और शिवजीका भगवतीकी स्तुति करना)
(6.) षष्ठोऽध्यायःभगवती जगदम्बिकाद्वारा अपने स्वरूपका वर्णन तथा ‘महासरस्वती’, ‘महालक्ष्मी’ और ‘महाकाली’ नामक अपनी शक्तियोंको क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और शिवको प्रदान करना)
(7.)सप्तमोऽध्यायःब्रह्माजीके द्वारा परमात्माके स्थूल और सूक्ष्म स्वरूपका वर्णन; सात्त्विक, राजस और तामस शक्तिका वर्णन; पंचतन्मात्राओं, ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों तथा पंचीकरण-क्रियाद्वारा सृष्टिकी उत्पत्तिका वर्णन)
(8.)अथाष्टमोऽध्यायः सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुणका वर्णन)
(9.)नवमोऽध्यायःगुणोंके परस्पर मिश्रीभावका वर्णन, देवीके बीजमन्त्रकी महिमा)
(10.)दशमोऽध्यायःदेवीके बीजमन्त्रकी महिमाके प्रसंगमें सत्यव्रतका आख्यान)
(11.)अथैकादशोऽध्यायःसत्यव्रतद्वारा बिन्दुरहित सारस्वत बीजमन्त्र ‘ऐ-ऐ’ का उच्चारण तथा उससे प्रसन्न होकर भगवतीका सत्यव्रतको समस्त विद्याएँ प्रदान करना)
(12.)द्वादशोऽध्यायःसात्त्विक, राजस और तामस यज्ञोंका वर्णन; मानसयज्ञकी महिमा और व्यासजीद्वारा राजा जनमेजयको देवी-यज्ञके लिये प्रेरित करना)
(13.)त्रयोदशोऽध्यायःदेवीकी आधारशक्तिसे पृथ्वीका अचल होना तथा उसपर सुमेरु आदि पर्वतोंकी रचना,ब्रह्माजीद्वारा मरीचि आदिकी मानसी सृष्टि करना, काश्यपी सृष्टिका वर्णन, ब्रह्मलोक, वैकुण्ठ, कैलास और स्वर्ग आदिका निर्माण; भगवान् विष्णुद्वारा अम्बायज्ञ करना और प्रसन्न होकर भगवती आद्या- शक्तिद्वारा आकाशवाणीके माध्यमसे उन्हें वरदान देना)
(14.)चतुर्दशोऽध्यायःदेवीमाहात्म्यसे सम्बन्धित राजा ध्रुवसन्धिकी कथा, ध्रुवसन्धिकी मृत्युके बाद राजा युधाजित् और वीरसेनका अपने-अपने दौहित्रोंके पक्षमें विवाद)
(15.)पञ्चदशोऽध्यायःराजा युधाजित् और वीरसेनका युद्ध, वीरसेनकी मृत्यु, राजा ध्रुवसन्धिकी रानी मनोरमाका अपने पुत्र सुदर्शनको लेकर भारद्वाजमुनिके आश्रममें जाना तथा वहीं निवास करना)
(16.)षोडशोऽध्यायःयुधाजित्का भारद्वाजमुनिके आश्रमपर आना और उनसे मनोरमाको भेजनेका आग्रह करना, प्रत्युत्तरमें मुनिका ‘शक्ति हो तो ले जाओ’ – ऐसा कहना)
(17.)सप्तदशोऽध्यायःयुधाजित्का अपने प्रधान अमात्यसे परामर्श करना, प्रधान अमात्यका इस सन्दर्भमें वसिष्ठ-विश्वामित्र-प्रसंग सुनाना और परामर्श मानकर युधाजित्का वापस लौट जाना, बालक सुदर्शनको दैवयोगसे कामराज नामक बीजमन्त्रकी प्राप्ति, भगवतीकी आराधनासे सुदर्शनको उनका प्रत्यक्ष दर्शन होना तथा काशिराजकी कन्या शशिकलाको स्वप्नमें भगवतीद्वारा सुदर्शनका वरण करनेका आदेश देना)
(18.)अथाष्टादशोऽध्यायःराजकुमारी शशिकलाद्वारा मन-ही-मन सुदर्शनका वरण करना, काशिराजद्वारा स्वयंवरकी घोषणा, शशिकलाका सखीके माध्यमसे अपना निश्चय माताको बताना)
(19.)अथैकोनविंशोऽध्यायःमाताका शशिकलाको समझाना, शशिकलाका अपने निश्चयपर दृढ़ रहना, सुदर्शन तथा अन्य राजाओंका स्वयंवरमें आगमन, युधाजित्द्वारा सुदर्शनको मार डालनेकी बात कहनेपर केरलनरेशका उन्हें समझाना)
(20)विंशोऽध्यायःराजाओंका सुदर्शनसे स्वयंवरमें आनेका कारण पूछना और सुदर्शनका उन्हें स्वप्नमें भगवतीद्वारा दिया गया आदेश बताना, राजा सुबाहुका शशिकलाको समझाना, परंतु उसका अपने निश्चयपर दृढ़ रहना)
(21.)अथैकविंशोऽध्यायःराजा सुबाहुका राजाओंसे अपनी कन्याकी इच्छा बताना, युधाजित्का क्रोधित होकर सुबाहुको फटकारना तथा अपने दौहित्रसे शशिकलाका विवाह करनेको कहना, माताद्वारा शशिकलाको पुनः समझाना, किंतु शशिकलाका अपने निश्चयपर दृढ़ रहना
(22.)द्वाविंशोऽध्यायःशशिकलाका गुप्त स्थानमें सुदर्शनके साथ विवाह, विवाहकी बात जानकर राजाओंका सुबाहुके प्रति क्रोध प्रकट करना तथा सुदर्शनका मार्ग रोकनेका निश्चय करना)
(23.)त्रयोविंशोऽध्यायःसुदर्शनका शशिकलाके साथ भारद्वाज-आश्रमके लिये प्रस्थान, युधाजित् तथा अन्य राजाओंसे सुदर्शनका घोर संग्राम, भगवती सिंहवाहिनी दुर्गाका प्राकट्य, भगवतीद्वारा युधाजित् और शत्रुजित्का वध, सुबाहुद्वारा भगवतीकी स्तुति)
(24.)चतुर्विंशोऽध्यायःसुबाहुद्वारा भगवती दुर्गासे सदा काशीमें रहनेका वरदान माँगना तथा देवीका वरदान देना, सुदर्शनद्वारा देवीकी स्तुति तथा देवीका उसे अयोध्या जाकर राज्य करनेका आदेश देना, राजाओंका सुदर्शनसे अनुमति लेकर अपने-अपने राज्योंको प्रस्थान)
(25.)पञ्चविंशोऽध्यायःसुदर्शनका शत्रुजित्की माताको सान्त्वना देना, सुदर्शनद्वारा अयोध्यामें तथा राजा सुबाहुद्वारा काशीमें देवी दुर्गाकी स्थापना)
(26.)षड्विंशोऽध्यायःनवरात्रव्रत-विधान, कुमारीपूजामें प्रशस्त कन्याओंका वर्णन)
(27.)सप्तविंशोऽध्यायःकुमारीपूजामें निषिद्ध कन्याओंका वर्णन, नवरात्रव्रतके माहात्म्यके प्रसंगमें सुशील नामक वणिक्की कथा)
(28.)अथाष्टाविंशोऽध्यायःश्रीरामचरित्रवर्णन)
(29.)अथैकोनत्रिंशोऽध्यायः सीताहरण, रामका शोक और लक्ष्मणद्वारा उन्हें सान्त्वना देना)
(30.)त्रिंशोऽध्यायःश्रीराम और लक्ष्मणके पास नारदजीका आना और उन्हें नवरात्रव्रत करनेका परामर्श देना, श्रीरामके पूछनेपर नारदजीका उनसे देवीकी महिमा और नवरात्रव्रतकी विधि बतलाना, श्रीरामद्वारा देवीका पूजन और देवीद्वारा उन्हें विजयका वरदान देना)
[चतुर्थः स्कन्धः]
(1.)प्रथमोऽध्यायःवसुदेव, देवकी आदिके कष्टोंके कारणके सम्बन्धमें जनमेजयका प्रश्न)
(2.)द्वितीयोऽध्यायःव्यासजीका जनमेजयको कर्मकी प्रधानता समझाना)
(3.)तृतीयोऽध्यायःवसुदेव और देवकीके पूर्वजन्मकी कथा)
(4.) चतुर्थोऽध्यायःव्यासजीद्वारा जनमेजयको मायाकी प्रबलता समझाना)
(5.)पञ्चमोऽध्यायःनर-नारायणकी तपस्यासे चिन्तित होकर इन्द्रका उनके पास जाना और मोहिनी माया प्रकट करना तथा उससे भी अप्रभावित रहनेपर कामदेव, वसन्त और अप्सराओंको भेजना)
(6.)षष्ठोऽध्यायःकामदेवद्वारा नर-नारायणके समीप वसन्त ऋतुकी सृष्टि, नारायणद्वारा उर्वशीकी उत्पत्ति, अप्सराओंद्वारा नारायणसे स्वयंको अंगीकार करनेकी प्रार्थना)
(7.) सप्तमोऽध्यायःअप्सराओंके प्रस्तावसे नारायणके मनमें ऊहापोह और नरका उन्हें समझाना तथा अहंकारके कारण प्रह्लादके साथ हुए युद्धका स्मरण कराना)
(8.)अथाष्टमोऽध्यायःव्यासजीद्वारा राजा जनमेजयको प्रह्लादकी कथा सुनाना और इस प्रसंगमें च्यवनऋषिके पाताललोक जानेका वर्णन)
(9.)नवमोऽध्यायः प्रह्लादजीका तीर्थयात्राके क्रममें नैमिषारण्य पहुँचना और वहाँ नर-नारायणसे उनका घोर युद्ध, भगवान् विष्णुका आगमन और उनके द्वारा प्रह्लादको नर-नारायणका परिचय देना)
(10.)दशमोऽध्यायःराजा जनमेजयद्वारा प्रह्लादके साथ नर-नारायणके युद्धका कारण पूछना, व्यासजीद्वारा उत्तरमें संसारके मूल कारण अहंकारका निरूपण करना तथा महर्षि भृगुद्वारा भगवान् विष्णुको शाप देनेकी कथा)
(11.)अथैकादशोऽध्यायःमन्त्रविद्याकी प्राप्तिके लिये शुक्राचार्यका तपस्यारत होना, देवताओंद्वारा दैत्योंपर आक्रमण, शुक्राचार्यकी माताद्वारा दैत्योंकी रक्षा और इन्द्र तथा विष्णुको संज्ञाशून्य कर देना, विष्णुद्वारा शुक्रमाताका वध)
(12.)द्वादशोऽध्यायःमहात्मा भृगुद्वारा विष्णुको मानवयोनिमें जन्म लेनेका शाप देना, इन्द्रद्वारा अपनी पुत्री जयन्तीको शुक्राचार्यके लिये अर्पित करना, देवगुरु बृहस्पतिद्वारा शुक्राचार्यका रूप धारणकर दैत्योंका पुरोहित बनना)
(13.)त्रयोदशोऽध्यायःशुक्राचार्यरूपधारी बृहस्पतिका दैत्योंको उपदेश देना)
(14.)चतुर्दशोऽध्यायःशुक्राचार्यद्वारा दैत्योंको बृहस्पतिका पाखण्डपूर्ण कृत्य बताना, बृहस्पतिकी मायासे मोहित दैत्योंका उन्हें फटकारना, क्रुद्ध शुक्राचार्यका दैत्योंको शाप देना, बृहस्पतिका अन्तर्धान हो जाना, प्रह्लादका शुक्राचार्यजीसे क्षमा माँगना और शुक्राचार्यका उन्हें प्रारब्धकी बलवत्ता समझाना)
(15.)पञ्चदशोऽध्यायःदेवता और दैत्योंके युद्धमें दैत्योंकी विजय, इन्द्रद्वारा भगवतीकी स्तुति, भगवतीका प्रकट होकर दैत्योंके पास जाना, प्रह्लादद्वारा भगवतीकी स्तुति, देवीके आदेशसे दैत्योंका पातालगमन)
(16.)षोडशोऽध्यायःभगवान् श्रीहरिके विविध अवतारोंका संक्षिप्त वर्णन)
(17.) सप्तदशोऽध्यायःश्रीनारायणद्वारा अप्सराओंको वरदान देना, राजा जनमेजयद्वारा व्यासजीसे श्रीकृष्णावतारका चरित सुनानेका निवेदन करना)
(18.)अथाष्टादशोऽध्यायःपापभारसे व्यथित पृथ्वीका देवलोक जाना, इन्द्रका देवताओं और पृथ्वीके साथ ब्रह्मलोक जाना, ब्रह्माजीका पृथ्वी तथा इन्द्रादि देवताओंसहित विष्णुलोक जाकर विष्णुकी स्तुति करना, विष्णुद्वारा अपनेको भगवतीके अधीन बताना)
(19.)अथैकोनविंशोऽध्यायःदेवताओंद्वारा भगवतीका स्तवन, भगवतीद्वारा श्रीकृष्ण और अर्जुनको निमित्त बनाकर अपनी शक्तिसे पृथ्वीका भार दूर करनेका आश्वासन देना)
(20.)विंशोऽध्यायःव्यासजीद्वारा जनमेजयको भगवतीकी महिमा सुनाना तथा कृष्णावतारकी कथाका उपक्रम)
(21.)अथैकविंशोऽध्यायःदेवकीके प्रथम पुत्रका जन्म, वसुदेवद्वारा प्रतिज्ञानुसार उसे कंसको अर्पित करना और कंसद्वारा उस नवजात शिशुका वध)
(22.)द्वाविंशोऽध्यायःदेवकीके छः पुत्रोंके पूर्वजन्मकी कथा, सातवें पुत्रके रूपमें भगवान् संकर्षणका अवतार, देवताओं तथा दानवोंके अंशावतारोंका वर्णन)
(23.)त्रयोविंशोऽध्यायःकंसके कारागारमें भगवान् श्रीकृष्णका अवतार, वसुदेवजीका उन्हें गोकुल पहुँचाना और वहाँसे योगमायास्वरूपा कन्याको लेकर आना, कंसद्वारा कन्याके वधका प्रयास, योगमायाद्वारा आकाशवाणी करनेपर कंसका अपने सेवकोंद्वारा नवजात शिशुओंका वध कराना)
(24.)चतुर्विंशोऽध्यायःश्रीकृष्णावतारकी संक्षिप्त कथा, कृष्णपुत्रका प्रसूतिगृहसे हरण, कृष्णद्वारा भगवतीकी स्तुति, भगवती चण्डिकाद्वारा सोलह वर्षके बाद पुनः पुत्रप्राप्तिका वर देना)
(25.)पञ्चविंशोऽध्यायःव्यासजीद्वारा शाम्भवी मायाकी बलवत्ताका वर्णन, श्रीकृष्णद्वारा शिवजीकी प्रसन्नताके लिये तप करना और शिवजीद्वारा उन्हें वरदान देना)
[पञ्चमः स्कन्धः]
(1.)प्रथमोऽध्यायः व्यासजीद्वारा त्रिदेवोंकी तुलनामें भगवतीकी उत्तमताका वर्णन)
(2.)द्वितीयोऽध्यायःमहिषासुरके जन्म, तप और वरदान प्राप्तिकी कथा)
(3.)तृतीयोऽध्यायःमहिषासुरका दूत भेजकर इन्द्रको स्वर्ग खाली करनेका आदेश देना, दूतद्वारा इन्द्रका युद्धहेतु आमन्त्रण प्राप्तकर महिषासुरका दानववीरोंको युद्धके लिये सुसज्जित होनेका आदेश देना)
(4.)चतुर्थोऽध्यायःइन्द्रका देवताओं तथा गुरु बृहस्पतिसे परामर्श करना तथा बृहस्पतिद्वारा जय-पराजयमें दैवकी प्रधानता बतलाना)
(5.)पञ्चमोऽध्यायःइन्द्रका ब्रह्मा, शिव और विष्णुके पास जाना, तीनों देवताओंसहित इन्द्रका युद्धस्थलमें आना तथा चिक्षुर, बिडाल और ताम्रको पराजित करना)
(6.)षष्ठोऽध्यायःभगवान् विष्णु और शिवके साथ महिषासुरका भयानक युद्ध)
(7.)सप्तमोऽध्यायःमहिषासुरको अवध्य जानकर त्रिदेवोंका अपने-अपने लोक लौट जाना, देवताओंकी पराजय तथा महिषासुरका स्वर्गपर आधिपत्य, इन्द्रका ब्रह्मा और शिवजीके साथ विष्णुलोकके लिये प्रस्थान)
(8.)अथाष्टमोऽध्यायःब्रह्माप्रभृति समस्त देवताओंके शरीरसे तेजःपुंजका निकलना और उस तेजोराशिसे भगवतीका प्राकट्य)
(9.)नवमोऽध्यायःदेवताओंद्वारा भगवतीको आयुध और आभूषण समर्पित करना तथा उनकी स्तुति करना, देवीका प्रचण्ड अट्टहास करना, जिसे सुनकर महिषासुरका उद्विग्न होकर अपने प्रधान अमात्यको देवीके पास भेजना)
(10.)दशमोऽध्यायःदेवीद्वारा महिषासुरके अमात्यको अपना उद्देश्य बताना तथा अमात्यका वापस लौटकर देवीद्वारा कही गयी बातें महिषासुरको बताना)
(11.)अथैकादशोऽध्यायः महिषासुरका अपने मन्त्रियोंसे विचार-विमर्श करना और ताम्रको भगवतीके पास भेजना)
(12.)द्वादशोऽध्यायःदेवीके अट्टहाससे भयभीत होकर ताम्रका महिषासुरके पास भाग आना, महिषासुरका अपने मन्त्रियोंके साथ पुनः विचार-विमर्श तथा दुर्धर, दुर्मुख और बाष्कलकी गर्वोक्ति)
(13.)त्रयोदशोऽध्यायःबाष्कल और दुर्मुखका रणभूमिमें आना, देवीसे उनका वार्तालाप और युद्ध तथा देवीद्वारा उनका वध)
(14.)चतुर्दशोऽध्यायःचिक्षुर और ताम्रका रणभूमिमें आना, देवीसे उनका वार्तालाप और युद्ध तथा देवीद्वारा उनका वध)
(15.)पञ्चदशोऽध्यायःबिडालाख्य और असिलोमाका रणभूमिमें आना, देवीसे उनका वार्तालाप और युद्ध तथा देवीद्वारा उनका वध)
(16.)षोडशोऽध्यायःमहिषासुरका रणभूमिमें आना तथा देवीसे प्रणय-याचना करना)
(17.)सप्तदशोऽध्यायःमहिषासुरका देवीको मन्दोदरी नामक राजकुमारीका आख्यान सुनाना)
(18.)अथाष्टादशोऽध्यायःदुर्धर, त्रिनेत्र, अन्धक और महिषासुरका वध)
(19.)अथैकोनविंशोऽध्यायः देवताओंद्वारा भगवतीकी स्तुति)
(20.) विंशोऽध्यायःदेवीका मणिद्वीप पधारना तथा राजा शत्रुघ्नका भूमण्डलाधिपति बनना)
(21.)अध्याय इक्कीस शुम्भ और निशुम्भको ब्रह्माजीके द्वारा वरदान, देवताओंके साथ उनका युद्ध और देवताओंकी पराजय)
(22.)द्वाविंशोऽध्यायःदेवताओंद्वारा भगवतीकी स्तुति और उनका प्राकट्य)
(23.)त्रयोविंशोऽध्यायःभगवतीके श्रीविग्रहसे कौशिकीका प्राकट्य, देवीकी कालिकारूपमें परिणति, चण्ड-मुण्डसे देवीके अद्भुत सौन्दर्यको सुनकर शुम्भका सुग्रीवको दूत बनाकर भेजना, जगदम्बाका विवाहके विषयमें अपनी शर्त बताना)
(24.)चतुर्विंशोऽध्यायःशुम्भका धूम्रलोचनको देवीके पास भेजना और धूम्रलोचनका देवीको समझानेका प्रयास करना)
(25.) पञ्चविंशोऽध्यायःभगवती काली और धूम्रलोचनका संवाद, कालीके हुंकारसे धूम्रलोचनका भस्म होना तथा शुम्भका चण्ड-मुण्डको युद्धहेतु प्रस्थानका आदेश देना)
(26.)षड्विंशोऽध्यायःभगवती अम्बिकासे चण्ड-मुण्डका संवाद और युद्ध, देवी कालिकाद्वारा चण्ड-मुण्डका वध)
(27.)सप्तविंशोऽध्यायःशुम्भका रक्तबीजको भगवती अम्बिकाके पास भेजना और उसका देवीसे वार्तालाप)
(28.)अथाष्टाविंशोऽध्यायःदेवीके साथ रक्तबीजका युद्ध, विभिन्न शक्तियोंके साथ भगवान् शिवका रणस्थलमें आना तथा भगवतीका उन्हें दूत बनाकर शुम्भके पास भेजना, भगवान् शिवके सन्देशसे दानवोंका क्रुद्ध होकर युद्धके लिये आना)
(29.)अथैकोनत्रिंशोऽध्यायःरक्तबीजका वध और निशुम्भका युद्धक्षेत्रके लिये प्रस्थान)
(30.)त्रिंशोऽध्यायः देवीद्वारा निशुम्भका वध)
(31.)अथैकत्रिंशोऽध्यायःशुम्भका रणभूमिमें आना और देवीसे वार्तालाप करना, भगवती कालिकाद्वारा उसका वध, देवीके इस उत्तम चरित्रके पठन और श्रवणका फल)
(32.)द्वात्रिंशोऽध्यायःदेवीमाहात्म्यके प्रसंगमें राजा सुरथ और समाधि वैश्यकी कथा)
(33.)त्रयस्त्रिशोऽध्यायः मुनि सुमेधाका सुरथ और समाधिको देवीकी महिमा बताना)
(34.)चतुस्त्रिंशोऽध्यायः मुनि सुमेधाद्वारा देवीकी पूजा-विधिका वर्णन)
(35.)पञ्चत्रिंशोऽध्यायःसुरथ और समाधिकी तपस्यासे प्रसन्न भगवतीका प्रकट होना और उन्हें इच्छित वरदान देना)
[षष्ठः स्कन्धः]
(1.)प्रथमोऽध्यायः त्रिशिराकी तपस्यासे चिन्तित इन्द्रद्वारा तपभंगहेतु अप्सराओंको भेजना)
(2.)द्वितीयोऽध्यायःइन्द्रद्वारा त्रिशिराका वध, कुद्ध त्वष्टाद्वारा अथर्ववेदोक्त मन्त्रोंसे हवन करके वृत्रासुरको उत्पन्न करना और उसे इन्द्रके वधके लिये प्रेरित करना)
(3.)तृतीयोऽध्यायःवृत्रासुरका देवलोकपर आक्रमण, बृहस्पतिद्वारा इन्द्रकी भर्त्सना करना और वृत्रासुरको अजेय बतलाना, इन्द्रकी पराजय, त्वष्टाके निर्देशसे वृत्रासुरका ब्रह्माजीको प्रसन्न करनेके लिये तपस्यारत होना)
(4.)चतुर्थोऽध्यायःतपस्यासे प्रसन्न होकर ब्रह्माजीका वृत्रासुरको वरदान देना, त्वष्टाकी प्रेरणासे वृत्रासुरका स्वर्गपर आक्रमण करके अपने अधिकारमें कर लेना, इन्द्रका पितामह ब्रह्मा और भगवान् शंकरके साथ वैकुण्ठधाम जाना)
(5.)पञ्चमोऽध्यायःभगवान् विष्णुकी प्रेरणासे देवताओंका भगवतीकी स्तुति करना और प्रसन्न होकर भगवतीका वरदान देना)
(6.)षष्ठोऽध्यायःभगवान् विष्णुका इन्द्रको वृत्रासुरसे सन्धिका परामर्श देना, ऋषियोंकी मध्यस्थतासे इन्द्र और वृत्रासुरमें सन्धि, इन्द्रद्वारा छलपूर्वक वृत्रासुरका वध)
(7.)सप्तमोऽध्यायःत्वष्टाका वृत्रासुरकी पारलौकिक क्रिया करके इन्द्रको शाप देना, इन्द्रको ब्रह्महत्या लगना, नहुषका स्वर्गाधिपति बनना और इन्द्राणीपर आसक्त होना)
(8.)अथाष्टमोऽध्यायःइन्द्राणीको बृहस्पतिकी शरणमें जानकर नहुषका क्रुद्ध होना, देवताओंका नहुषको समझाना, बृहस्पतिके परामर्शसे इन्द्राणीका नहुषसे समय माँगना, देवताओंका भगवान् विष्णुके पास जाना और विष्णुका उन्हें देवीको प्रसन्न करनेके लिये अश्वमेधयज्ञ करनेको कहना, बृहस्पतिका शचीको भगवतीकी आराधना करनेको कहना, शचीकी आराधनासे प्रसन्न होकर देवीका प्रकट होना और शचीको इन्द्रका दर्शन होना)
(9.)नवमोऽध्यायःशचीका इन्द्रसे अपना दुःख कहना, इन्द्रका शचीको सलाह देना कि वह नहुषसे ऋषियोंद्वारा वहन की जा रही पालकीमें आनेको कहे, नहुषका ऋषियोंद्वारा वहन की जा रही पालकीमें सवार होना और शापित होकर सर्प होना तथा इन्द्रका पुनः स्वर्गाधिपति बनना)
(10.)दशमोऽध्यायःकर्मकी गहन गतिका वर्णन तथा इस सम्बन्धमें भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुनका उदाहरण)
(11.)अथैकादशोऽध्यायः युगधर्म एवं तत्सम्बन्धी व्यवस्थाका वर्णन)
(12.)द्वादशोऽध्यायःपवित्र तीर्थोंका वर्णन, चित्तशुद्धिकी प्रधानता तथा इस सम्बन्धमें विश्वामित्र और वसिष्ठके परस्पर वैरकी कथा, राजा हरिश्चन्द्रका वरुणदेवके शापसे जलोदरग्रस्त होना)
(13.)त्रयोदशोऽध्यायःराजा हरिश्चन्द्रका शुनःशेपको यज्ञीय पशु बनाकर यज्ञ करना, विश्वामित्रसे प्राप्त वरुणमन्त्रके जपसे शुनःशेपका मुक्त होना, परस्पर शापसे विश्वामित्र और वसिष्ठका बक तथा आडी होना)
(14.)चतुर्दशोऽध्यायःराजा निमि और वसिष्ठका एक-दूसरेको शाप देना, वसिष्ठका मित्रावरुणके पुत्रके रूपमें जन्म लेना)
(15.)पञ्चदशोऽध्यायःभगवतीकी कृपासे निमिको मनुष्योंके नेत्र-पलकोंमें वासस्थान मिलना तथा संसारी प्राणियोंकी त्रिगुणात्मकताका वर्णन)
(16.)षोडशोऽध्यायःहैहयवंशी क्षत्रियोंद्वारा भृगुवंशी ब्राह्मणोंका संहार)
(17.)सप्तदशोऽध्यायःभगवतीकी कृपासे भार्गव ब्राह्मणीकी जंघासे तेजस्वी बालककी उत्पत्ति, हैहयवंशी क्षत्रियोंकी उत्पत्तिकी कथा)
(18.)अथाष्टादशोऽध्यायः भगवती लक्ष्मीद्वारा घोड़ीका रूप धारणकर तपस्या करना)
(19.)अथैकोनविंशोऽध्यायःभगवती लक्ष्मीको अश्वरूपधारी भगवान् विष्णुके दर्शन और उनका वैकुण्ठगमन)
(20.)विंशोऽध्यायःराजा हरिवर्माको भगवान् विष्णुद्वारा अपना हयसंज्ञक पुत्र देना, राजाद्वारा उसका ‘एकवीर’ नाम रखना)
(21.)अथैकविंशोऽध्यायःआखेटके लिये वनमें गये राजासे एकावलीकी सखी यशोवतीकी भेंट, एकावलीके जन्मकी कथा)
(22.)द्वाविंशोऽध्यायःयशोवतीका एकवीरसे कालकेतुद्वारा एकावलीके अपहृत होनेकी बात बताना)
(23.)त्रयोविंशोऽध्यायःभगवतीके सिद्धिप्रदायक मन्त्रसे दीक्षित एकवीरद्वारा कालकेतुका वध, एकवीर और एकावलीका विवाह तथा हैहयवंशकी परम्परा)
(24.)चतुर्विंशोऽध्यायः धृतराष्ट्रके जन्मकी कथा)
(25.)पञ्चविंशोऽध्यायःपाण्डु और विदुरके जन्मकी कथा, पाण्डवोंका जन्म, पाण्डुकी मृत्यु, द्रौपदीस्वयंवर, राजसूययज्ञ, कपटद्यूत तथा वनवास और व्यासजीके मोहका वर्णन)
(26.)षड्विंशोऽध्यायःदेवर्षि नारद और पर्वतमुनिका एक-दूसरेको शाप देना, राजकुमारी दमयन्तीका नारदसे विवाह करनेका निश्चय)
(27.)सप्तविंशोऽध्यायःवानरमुख नारदसे दमयन्तीका विवाह, नारद तथा पर्वतका परस्पर शापमोचन)
(28.)अथाष्टाविंशोऽध्याय:भगवान् विष्णुका नारदजीसे मायाकी अजेयताका वर्णन करना, मुनि नारदको मायावश स्त्रीरूपकी प्राप्ति तथा राजा तालध्वजका उनसे प्रणय-निवेदन करना)
(29.)अथैकोनत्रिंशोऽध्यायःराजा तालध्वजसे स्त्रीरूपधारी नारदजीका विवाह, अनेक पुत्र-पौत्रोंकी उत्पत्ति और युद्धमें उन सबकी मृत्यु, नारदजीका शोक और भगवान् विष्णुकी कृपासे पुनः स्वरूपबोध)
(30.)अध्याय तीस तालध्वजका विलाप और ब्राह्मणवेशधारी भगवान् विष्णुके प्रबोधनसे उन्हें वैराग्य होना, भगवान् विष्णुका नारदसे मायाके प्रभावका वर्णन करना)
(31.)अध्याय इकतीस व्यासजीका राजा जनमेजयसे भगवतीकी महिमाका वर्णन करना)