Shiv puran vidyeshwar samhita chapter 19 or 20(श्रीशिवमहापुराण विद्येश्वरसंहिता  अध्याय 19 और 20 पार्थिवलिंगके निर्माणकी रीति तथा वेद-मन्त्रोंद्वारा उसके पूजनकी विस्तृत एवं संक्षिप्त विधिका वर्णन)

Shiv puran vidyeshwar samhita chapter 19 or 20(श्रीशिवमहापुराण विद्येश्वरसंहिता  अध्याय 19 और 20 पार्थिवलिंगके निर्माणकी रीति तथा वेद-मन्त्रोंद्वारा उसके पूजनकी विस्तृत एवं संक्षिप्त विधिका वर्णन)

(अध्याय 19 और 20)

 

:तदनन्तर पार्थिवलिंगकी श्रेष्ठता तथा महिमाका वर्णन करके सूतजी कहते हैं- महर्षियो ! अब मैं वैदिक कर्मके प्रति श्रद्धा-भक्ति रखनेवाले लोगोंके लिये वेदोक्त मार्गसे ही पार्थिव-पूजाकी पद्धतिका वर्णन करता हूँ।

 

 यह पूजा भोग और मोक्ष दोनोंको देनेवाली है। आह्निकसूत्रोंमें बतायी हुई विधिके अनुसार विधिपूर्वक स्नान और संध्योपासना करके पहले ब्रह्मयज्ञ करे।

तत्पश्चात् देवताओं, ऋषियों, सनकादि मनुष्यों और पितरोंका तर्पण करे। अपनी रुचिके अनुसार सम्पूर्ण नित्यकर्मको पूर्ण करके शिवस्मरणपूर्वक भस्म तथा रुद्राक्ष धारण करे।

 

तत्पश्चात् सम्पूर्ण मनोवांछित फलकी सिद्धिके लिये ऊँची भक्ति- भावनाके साथ उत्तम पार्थिवलिंगकी वेदोक्त विधिसे भलीभाँति पूजा करे।

 

नदी या तालाबके किनारे, पर्वतपर, वनमें, शिवालयमें अथवा और किसी पवित्र स्थानमें पार्थिव- पूजा करनेका विधान है। ब्राह्मणो ! शुद्ध स्थानसे निकाली हुई मिट्टीको यत्नपूर्वक लाकर बड़ी सावधानीके साथ शिवलिंगका निर्माण करे।

 

ब्राह्मणके लिये श्वेत, क्षत्रियके लिये लाल, वैश्यके लिये पीली और शूद्रके लिये काली मिट्टीसे शिवलिंग बनानेका विधान है अथवा जहाँ जो मिट्टी मिल जाय, उसीसे शिवलिंग बनाये।

शिवलिंग बनानेके लिये प्रयत्नपूर्वक मिट्टीका संग्रह करके उस शुभ मृत्तिकाको अत्यन्त शुद्ध स्थानमें रखे। फिर उसकी शुद्धि करके जलसे सानकर पिण्डी बना ले और वेदोक्त मार्गसे धीरे-धीरे सुन्दर पार्थिवलिंगकी रचना करे।

 

तत्पश्चात् भोग और मोक्षरूपी फलकी प्राप्तिके लिये भक्तिपूर्वक उसका पूजन करे। उस पार्थिवलिंगके पूजनकी जो विधि है, उसे मैं विधानपूर्वक बता रहा हूँ; तुम सब लोग सुनो। ‘ॐ नमः शिवाय’ इस मन्त्रका उच्चारण करते हुए समस्त पूजन-सामग्रीका प्रोक्षण करे – उसपर जल छिड़के।

 

इसके बाद ‘भूरसि०’ इत्यादि मन्त्रसे क्षेत्रसिद्धि करे, फिर ‘आपोऽस्मान्०’ इस मन्त्रसे जलका संस्कार करे। इसके बाद ‘नमस्ते ३, रुद्र०’ इस मन्त्रसे स्फाटिकाबन्ध (स्फटिक शिलाका घेरा) बनानेकी बात कही गयी है।

 

‘नमः शम्भवाय०’ इस मन्त्रसे क्षेत्रशुद्धि और पंचामृतका प्रोक्षण करे। तत्पश्चात् शिवभक्त पुरुष ‘नमः’ पूर्वक ‘नीलग्रीवाय०” मन्त्रसे शिवलिंगकी उत्तम प्रतिष्ठा करे। इसके बाद वैदिक रीतिसे पूजन-कर्म करनेवाला उपासक भक्तिपूर्वक ‘एतत्ते रुद्रावसं०’ इस मन्त्रसे रमणीय आसन दे।

 

‘मा नो महान्तम्०’ इस मन्त्रसे आवाहन करे, ‘या ते रुद्र०’ इस मन्त्रसे भगवान् शिवको आसनपर समासीन करे। ‘यामिषु०’ इस मन्त्रसे शिवके अंगोंमें न्यास करे। ‘अध्यवोचत्०’ इस मन्त्रसे प्रेमपूर्वक अधि- वासन करे।

 

‘असौ यस्ताम्रो०’ इस मन्त्रसे शिवलिंगमें इष्टदेवता शिवका न्यास करे। ‘असौ योऽवसर्पति०” इस मन्त्रसे उपसर्पण (देवताके समीप गमन) करे। इसके बाद ‘नमोऽस्तु नीलग्रीवाय०१० इस मन्त्रसे इष्टदेवको पाद्य समर्पित करे। ‘रुद्रगायत्री०१’ इस मंत्र से अर्घ्य दे।’ त्र्यम्बकं० १२’ मन्त्रसे आचमन कराये।

 

‘पयः पृथिव्यां० १३, मन्त्रसे दुग्धस्नान कराये। ‘दधिक्राव्गो०१४. इस मन्त्रसे दधिस्नान कराये। ‘घृतं घृतपावा० १, इस मन्त्रसे घृतस्नान कराये। ‘मधु वाता०’ ०’, ‘मधु नक्तं० मधुमान्नो इन तीन ऋचाओंसे मधु- स्नान और शर्करास्नान कराये। इन दुग्ध आदि पाँच वस्तुओंको पंचामृत कहते हैं।

अथवा पाद्य-समर्पणके लिये कहे गये ‘नमोऽस्तु नीलग्रीवाय ०’ इत्यादि मन्त्रद्वारा पंचामृतसे स्नान कराये। तदनन्तर ‘मा नस्तोके० ‘ ६, इस मन्त्रसे प्रेमपूर्वक भगवान् शिवको कटिबन्ध (करधनी) अर्पित करे। ‘नमोधृष्णवे०’ इस मन्त्रका उच्चारण करके आराध्य देवताको उत्तरीय धारण कराये।

 

‘या ते हेतिः०’ इत्यादि चार ऋचाओंको पढ़कर वेदज्ञ भक्त प्रेमसे विधिपूर्वक भगवान् शिवके लिये वस्त्र (एवं यज्ञोपवीत) समर्पित ९, करे। इसके बाद ‘नमःश्वभ्यः० इत्यादि मन्त्रको पढ़कर शुद्ध बुद्धिवाला भक्त पुरुष भगवान्‌को प्रेमपूर्वक गन्ध (सुगन्धित चन्दन एवं रोली) चढ़ाये। ‘नमस्तक्षभ्यो०१०’ इस मन्त्रसे अक्षत अर्पित करे। ‘नमः पार्याय० ११,

इस मन्त्रसे फूल चढ़ाये। ‘नमः पर्णाय०’ इस मन्त्रसे बिल्वपत्र समर्पण करे। ‘नमः कपर्दिने च०’ इत्यादि मन्त्रसे विधिपूर्वक धूप दे। ‘नम आशवे०३’ इस ऋचासे शास्त्रोक्त विधिके अनुसार दीप निवेदन करे। तत्पश्चात् (हाथ धोकर) ‘नमो ज्येष्ठाय०’ इस मन्त्रसे उत्तम नैवेद्य अर्पित करे। फिर पूर्वोक्त त्र्यम्बक-मन्त्रसे आचमन कराये। ‘इमा रुद्राय०५’ इस ऋचासे फल समर्पण करे।

 

फिर ‘नमो व्रज्याय ०६’ इस मन्त्रसे भगवान् शिवको अपना सब कुछ समर्पित कर दे। तदनन्तर ‘मा नो महान्तम्०’ तथा ‘मा नस्तोके’ इन पूर्वोक्त दो मन्त्रोंद्वारा केवल अक्षतोंसे ग्यारह रुद्रोंका पूजन करे।

 

फिर ‘हिरण्यगर्भः ०७’ इत्यादि मन्त्रसे जो तीन ऋचाओंके रूपमें पठित है, दक्षिणा चढ़ाये *। ‘देवस्य त्वा०८’ इस मन्त्रसे विद्वान् पुरुष आराध्यदेवका अभिषेक करे। दीपके लिये बताये हुए ‘नम आशवे०’ इत्यादि मन्त्रसे भगवान् शिवकी नीराजना (आरती) करे।

 

तत्पश्चात् ‘इमा रुद्राय ०’ इत्यादि तीन ऋचाओंसे भक्तिपूर्वक रुद्रदेवको पुष्पांजलि अर्पित करे। ‘मा नो महान्तम्०’ इस मन्त्रसे विज्ञ उपासक पूजनीय देवताकी परिक्रमा करे। फिर उत्तम बुद्धिवाला उपासक ‘मा नस्तोके०’ इस मन्त्रसे भगवान्‌को साष्टांग प्रणाम करे।

 

‘एष ते०९’इस मन्त्रसे शिवमुद्राका प्रदर्शन करे। ‘यतो यतः०१’ इस मन्त्रसे अभय नामक मुद्राका, ‘त्र्यम्बकं०’ मन्त्रसे ज्ञान नामक मुद्राका तथा ‘नमः सेना०२’ इत्यादि मन्त्रसे महामुद्राका प्रदर्शन करे। ‘नमो गोभ्य०३’ इस ऋचाद्वारा धेनुमुद्रा दिखाये। इस तरह पाँच मुद्राओंका प्रदर्शन करके शिवसम्बन्धी मन्त्रोंका जप करे अथवा वेदज्ञ पुरुष ‘शतरुद्रिय०’ मन्त्रकी आवृत्ति करे।

 

तत्पश्चात् वेदज्ञ पुरुष पंचांग पाठ करे। तदनन्तर ‘देवा गातु०५’ इत्यादि मन्त्रसे भगवान् शंकरका विसर्जन करे। इस प्रकार शिवपूजाकी वैदिक विधिका विस्तारसे प्रतिपादन किया गया।

महर्षियो ! अब संक्षेपसे भी पार्थिव- पूजनकी वैदिक विधिका वर्णन सुनो। ‘सद्यो जातं. ६’ इस ऋचासे पार्थिवलिंग बनानेके लिये मिट्टी ले आये। ‘वामदेवाय ०७’ इत्यादि मन्त्र पढ़कर उसमें जल डाले। (जब मिट्टी सनकर तैयार हो जाय तब) ‘अघोर०८’ मन्त्रसे लिंग निर्माण करे।

 

 

फिर ‘तत्पुरुषाय०९’ इस मन्त्रसे विधिवत् उसमें भगवान् शिवका आवाहन करे। तदनन्तर ‘ईशान०१०’ मन्त्रसे भगवान् शिवको वेदीपर स्थापित करे। इनके सिवाय अन्य सब विधानोंको भी शुद्ध बुद्धिवाला उपासक संक्षेपसे ही सम्पन्न करे।

 

इसके बाद विद्वान् पुरुष पंचाक्षरमन्त्रसे अथवा गुरुके दिये हुए अन्य किसी शिवसम्बन्धी मन्त्रसे सोलह उपचारोंद्वारा विधिवत् पूजन करे अथवा -भवाय भवनाशाय महादेवाय धीमहि। उग्राय उग्रनाशाय शर्वाय शशिमौलिने ॥ (२०।४३)

– इस मन्त्रद्वारा विद्वान् उपासक भगवान् शंकरकी पूजा करे। वह भ्रम छोड़कर उत्तम भाव-भक्तिसे शिवकी आराधना करे; क्योंकि भगवान् शिव भक्तिसे ही मनोवांछित फल देते हैं।

ब्राह्मणो ! यहाँ जो वैदिक विधिसे पूजन- का क्रम बताया गया है, इसका पूर्णरूपसे आदर करता हुआ मैं पूजाकी एक दूसरी विधि भी बता रहा हूँ, जो उत्तम होनेके साथ ही सर्वसाधारणके लिये उपयोगी है।

मुनिवरो ! पार्थिवलिंगकी पूजा भगवान् शिवके नामोंसे बतायी गयी है। वह पूजा सम्पूर्ण अभीष्टोंको देनेवाली है। मैं उसे बताता हूँ, सुनो ! हर, महेश्वर, शम्भु, शूलपाणि, पिनाकधृक्, शिव, पशुपति और महादेव-ये क्रमशः शिवके आठ नाम कहे गये हैं। इनमेंसे प्रथम नामके द्वारा अर्थात् ‘ॐ हराय नमः’ का उच्चारण करके पार्थिवलिंग बनानेके लिये मिट्टी लाये।

 

दूसरे नाम अर्थात् ‘ॐ महेश्वराय नमः’ का उच्चारण करके लिंग-निर्माण करे। फिर ‘ॐ शम्भवे नमः’ बोलकर उस पार्थिव-लिंगकी प्रतिष्ठा करे। तत्पश्चात् ‘ॐ शूलपाणये नमः’ कहकर उस पार्थिवलिंगमें भगवान् शिवका आवाहन करे। ‘ॐ पिनाकधृषे नमः’ कहकर उस शिवलिंगको नहलाये। ‘ॐ शिवाय नमः’ बोलकर उसकी पूजा करे।

 

फिर ‘ॐ पशुपतये नमः’ कहकर क्षमा-प्रार्थना करे और अन्तमें ‘ॐ महादेवाय नमः’ कहकर आराध्यदेवका विसर्जन कर दे। प्रत्येक नामके आदिमें ॐकार और अन्तमें चतुर्थी विभक्तिके साथ ‘नमः’ पद लगाकर बड़े आनन्द और भक्तिभावसे पूजनसम्बन्धी सारे कार्य करने चाहिये।

षडक्षर-मन्त्रसे अंगन्यास और करन्यासकी विधि भलीभाँति सम्पन्न करके फिर नीचे लिखे अनुसार ध्यान करे। जो कैलास पर्वतपर एक सुन्दर सिंहासनके मध्यभागमें विराजमान हैं, जिनके वामभागमें भगवती उमा उनसे सटकर बैठी हुई हैं, सनक-सनन्दन आदि भक्तजन जिनकी पूजा कर रहे हैं तथा जो भक्तोंके दुःखरूपी दावानलको नष्ट कर देनेवाले अप्रमेय- शक्तिशाली ईश्वर हैं, उन विश्वविभूषण भगवान् शिवका चिन्तन करना चाहिये।

 

भगवान् महेश्वरका प्रतिदिन इस प्रकार ध्यान करे- उनकी अंग-कान्ति चाँदीके पर्वतकी भाँति गौर है। वे अपने मस्तकपर मनोहर चन्द्रमाका मुकुट धारण करते हैं। रत्नोंके आभूषण धारण करनेसे उनका श्रीअंग और भी उद्भासित हो उठा है। उनके चार हाथोंमें क्रमशः परशु, मृगमुद्रा, वर एवं अभयमुद्रा सुशोभित हैं। वे सदा प्रसन्न रहते हैं।

 

कमलके आसनपर बैठे हैं और देवतालोग चारों ओर खड़े होकर उनकी स्तुति कर रहे हैं। उन्होंने वस्त्रकी जगह व्याघ्रचर्म धारण कर रखा है। वे इस विश्वके आदि हैं, बीज (कारण)-रूप हैं। तथा सबका समस्त भय हर लेनेवाले हैं। उनके पाँच मुख हैं और प्रत्येक मुखमण्डलमें तीन-तीन नेत्र हैं।

 

इस प्रकार ध्यान तथा उत्तम पार्थिवलिंगका पूजन करके गुरुके दिये हुए पंचाक्षरमन्त्रका विधिपूर्वक जप करे। विप्रवरो ! विद्वान् पुरुषको चाहिये कि वह देवेश्वर शिवको प्रणाम करके नाना प्रकारकी स्तुतियोंद्वारा उनका स्तवन करे तथा शतरुद्रिय (यजु० १६ वें अध्यायके मन्त्रों) का पाठ करे।

 

तत्पश्चात् अंजलिमें अक्षत और फूल लेकर उत्तम भक्तिभावसे निम्नांकित मन्त्रोंको पढ़ते हुए प्रेम और प्रसन्नताके साथ भगवान् शंकरसे इस प्रकार प्रार्थना करे -‘सबको सुख देनेवाले कृपानिधान भूतनाथ शिव ! मैं आपका हूँ। आपके गुणोंमें ही मेरे प्राण बसते हैं अथवा आपके गुण ही मेरे प्राण- मेरे जीवनसर्वस्व हैं।

 

मेरा चित्त सदा आपके ही चिन्तनमें लगा हुआ है। यह जानकर मुझपर प्रसन्न होइये। कृपा कीजिये। शंकर ! मैंने अनजान-में अथवा जान-बूझकर यदि कभी आपका जप और पूजन आदि किया हो तो आपकी कृपासे वह सफल हो जाय। गौरीनाथ !

 

मैं आधुनिक युगका महान् पापी हूँ, पतित हूँ और आप सदासे ही परम महान् पतितपावन हैं। इस बातका विचार करके आप जैसा चाहें, वैसा करें। महादेव! सदाशिव ! वेदों, पुराणों, नाना प्रकारके शास्त्रीय सिद्धान्तों और विभिन्न महर्षियोंने भी अबतक आपको पूर्णरूपसे नहीं जाना है।मैं कैसे जान सकता हूँ ?

 

महेश्वर ! मैं जैसा हूँ, वैसा ही, उसी रूपमें सम्पूर्ण भावसे आपका हूँ, आपके आश्रित हूँ, इसलिये आपसे रक्षा पानेके योग्य हूँ। परमेश्वर ! आप मुझपर प्रसन्न होइये।’ * मुने ! इस प्रकार प्रार्थना करके हाथमें लिये हुए अक्षत और पुष्पको भगवान् शिवके ऊपर चढ़ाकर उन शम्भुदेवको भक्तिभावसे विधिपूर्वक साष्टांग प्रणाम करे।

 

तदनन्तर शुद्ध बुद्धिवाला उपासक शास्त्रोक्त विधिसे इष्टदेवकी परिक्रमा करे। फिर श्रद्धापूर्वक स्तुतियोंद्वारा देवेश्वर शिवकी स्तुति करे। इसके बाद गला बजाकर (गलेसे अव्यक् शब्दका उच्चारण करके) पवित्र एवं विनीत चित्तवाला साधक भगवान्‌को प्रणाम करे। फिर आदरपूर्वक विज्ञप्ति करे और उसके बाद विसर्जन ।

 

मुनिवरो ! इस प्रकार विधि- पूर्वक पार्थिवपूजा बतायी गयी। वह भोग और मोक्ष देनेवाली तथा भगवान् शिवके प्रति भक्तिभावको बढ़ानेवाली है।

(अध्याय १९-२०)

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