(शतरुद्रसंहिता)
Shiv puran shatrudra samhita chapter 4 (शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अअध्याय 4 वाराहकल्पमें होनेवाले शिवजीके प्रथम अवतारसे लेकर नवम ऋषभ अवतारतकका वर्णन)
:-नन्दीश्वरजी कहते हैं-सर्वज्ञ सनत्कुमारजी ! एक बार रुद्रने हर्षित होकर ब्रह्माजीसे शंकरके चरित्रका प्रेमपूर्वक वर्णन किया था। वह चरित्र सदा परम सुखदायक है। (उसे तुम श्रवण करो। वह चरित्र इस प्रकार है।)
शिवजीने कहा था- ब्रह्मन् ! वाराहकल्पके सातवें मन्वन्तरमें सम्पूर्ण लोकोंको प्रकाशित करनेवाले भगवान् कल्पेश्वर, जो तुम्हारे प्रपौत्र हैं, वैवस्वत मनुके पुत्र होंगे। तब उस मन्वन्तरकी चतुर्युगियोंके किसी द्वापरयुगमें मैं लोकोंपर अनुग्रह करने तथा ब्राह्मणोंका हित करनेके लिये प्रकट हूँगा।
ब्रह्मन् ! युगप्रवृत्तिके अनुसार उस प्रथम चतुर्युगीके प्रथम द्वापरयुगमें जब प्रभु स्वयं ही व्यास होंगे, तब मैं उस कलियुगके अन्तमें ब्राह्मणोंके हितार्थ शिवासहित श्वेत नामक महामुनि होकर प्रकट हूँगा। उस समय हिमालयके रमणीय शिखर छागल नामक पर्वतश्रेष्ठपर मेरे शिखाधारी चार शिष्य उत्पन्न होंगे।
उनके नाम होंगे – श्वेत, श्वेतशिख, श्वेताश्व और श्वेतलोहित। वे चारों ध्यानयोगके आश्रयसे मेरे नगरमें जायँगे। वहाँ वे मुझ अविनाशीको तत्त्वतः जानकर मेरे भक्त हो जायँगे तथा जन्म, जरा और मृत्युसे रहित होकर परब्रह्मकी समाधिमें लीन रहेंगे। वत्स पितामह ! उस समय मनुष्य ध्यानके अतिरिक्त दान, धर्म आदि कर्महेतुक साधनोंद्वारा मेरा दर्शन नहीं पा सकेंगे।
दूसरे द्वापरमें प्रजापति सत्य व्यास होंगे। उस समय मैं कलियुगमें सुतार नामसे उत्पन्न होऊँगा। वहाँ भी मेरे दुन्दुभि, शतरूप, हृषीक तथा केतुमान् नामक चार वेदवादी द्विज शिष्य होंगे। वे चारों ध्यानयोगके बलसे मेरे नगरको जायँगे और मुझ अविनाशीको तत्त्वतः जानकर मुक्त हो जायेंगे।
तीसरे द्वापरमें जब भार्गव नामक व्यास होंगे, तब मैं भी नगरके निकट ही दमन नामसे प्रकट होऊँगा। उस समय भी मेरे विशोक, विशेष, विपाप और पापनाशन नामक चार पुत्र होंगे। चतुरानन ! उस अवतारमें मैं शिष्योंको साथ ले व्यासकी सहायता करूँगा और उस कलियुगमें निवृत्तिमार्गको सुदृढ़ बनाऊँगा।
चौथे द्वापरमें जब अंगिरा व्यास कहे जायँगे, उस समय मैं सुहोत्र नामसे अवतार लूँगा। उस समय भी मेरे चार योगसाधक महात्मा पुत्र होंगे। ब्रह्मन् ! उनके नाम होंगे – सुमुख, दुर्मुख, दुर्दम और दुरतिक्रम। उस अवसरपर भी इन शिष्योंके साथ मैं व्यासकी सहायतामें लगा रहूँगा। पाँचवें द्वापरमें सविता व्यास नामसे कहे जायँगे। तब मैं कंक नामक महातपस्वी योगी होऊँगा।
ब्रह्मन् ! वहाँ भी मेरे चार योगसाधक महात्मा पुत्र होंगे। उनके नाम बतलाता हूँ, सुनो – सनक, सनातन, प्रभावशाली सनन्दन और सर्वव्यापक निर्मल तथा अहंकाररहित सनत्कुमार। उस समय भी कंक नामधारी मैं सविता नामक व्यासका सहायक बनूँगा और निवृत्तिमार्गको बढ़ाऊँगा। पुनः छठे द्वापरके प्रवृत्त होनेपर जब मृत्यु लोककारक व्यास होंगे और वेदोंका विभाजन करेंगे, उस समय भी मैं व्यासकी सहायता करनेके लिये लोकाक्षि नामसे प्रकट होऊँगा और निवृत्ति-पथकी उन्नति करूँगा।
वहाँ भी मेरे चार दृढ़व्रती शिष्य होंगे। उनके नाम होंगे – सुधामा, विरजा, संजय तथा विजय। विधे ! सातवें द्वापरके आरम्भमें जब शतक्रतु नामक व्यास होंगे, उस समय भी मैं योगमार्गमें परम निपुण जैगीषव्य नामसे प्रकट होऊँगा और काशीपुरीमें गुफाके अंदर दिव्यदेशमें कुशासनपर बैठकर योगको सुदृढ़ बनाऊँगा तथा शतक्रतु नामक व्यासकी सहायता और संसारभयसे भक्तोंका उद्धार करूँगा।
उस युगमें भी मेरे सारस्वत, योगीश, मेघवाह और सुवाहन नामक चार पुत्र होंगे। आठवें द्वापरके आनेपर मुनिवर वसिष्ठ वेदोंका विभाजन करनेवाले वेदव्यास होंगे। योगवित्तम ! उस युगमें भी मैं दधिवाहन नामसे अवतार लूँगा और व्यासकी सहायता करूँगा। उस समय कपिल, आसुरि, पंचशिख और शाल्वल नामवाले मेरे चार योगी पुत्र उत्पन्न होंगे, जो मेरे ही समान होंगे।
ब्रह्मन् ! नवीं चतुर्युगीके द्वापरयुगमें मुनिश्रेष्ठ सारस्वत व्यास नामसे प्रसिद्ध होंगे। उन व्यासके निवृत्तिमार्गकी वृद्धिके लिये ध्यान करनेपर मैं ऋषभनामसे अवतार लूँगा। उस समय पराशर, गर्ग, भार्गव तथा गिरीश नामके चार महायोगी मेरे शिष्य होंगे। प्रजापते ! उनके सहयोगसे मैं योगमार्गको सुदृढ़ बनाऊँगा। सन्मुने ! इस प्रकार मैं व्यासका सहायक बनूँगा।
ब्रह्मन् ! उसी रूपसे मैं बहुत-से दुःखी भक्तोंपर दया करके उनका भवसागरसे उद्धार करूँगा। मेरा वह ऋषभ नामक अवतार योगमार्गका प्रवर्तक, सारस्वत व्यासके मनको संतोष देनेवाला और नाना प्रकारसे रक्षा करनेवाला होगा। उस अवतारमें मैं भद्रायु नामक राजकुमारको, जो विषदोषसे मर जानेके कारण पिताद्वारा त्याग दिया जायगा, जीवन प्रदान करूँगा।
तदनन्तर उस राजपुत्रकी आयुके सोलहवें वर्षमें ऋषभ ऋषि, जो मेरे ही अंश हैं, उसके घर पधारेंगे। प्रजापते ! उस राजकुमारद्वारा पूजित होनेपर वे सद्रूपधारी कृपालु मुनि उसे राजधर्मका उपदेश करेंगे। तत्पश्चात् वे दीनवत्सल मुनि हर्षित चित्तसे उसे दिव्य कवच, शंख और सम्पूर्ण शत्रुओंका विनाश करनेवाला एक चमकीला खड्ग प्रदान करेंगे।
फिर कृपापूर्वक उसके शरीरपर भस्म लगाकर उसे बारह हजार हाथियोंका बल भी देंगे। यों मातासहित भद्रायुको भलीभाँति आश्वासन देकर तथा उन दोनोंद्वारा पूजित हो प्रभावशाली ऋषभ मुनि स्वेच्छानुसार चले जायेंगे। ब्रह्मन् ! तब राजर्षि भद्रायु भी रिपुगणोंको जीतकर और कीर्तिमालिनीके साथ विवाह करके धर्मपूर्वक राज्य करेगा।
मुने ! मुझ शंकरका वह ऋषभ नामक नवाँ अवतार ऐसा प्रभाववाला होगा, वह सत्पुरुषोंकी गति तथा दीनोंके लिये बन्धु-सा हितकारी होगा। मैंने उसका वर्णन तुम्हें सुना दिया। यह ऋषभ-चरित्र परम पावन, महान् तथा स्वर्ग, यश और आयुको देनेवाला है; अतः इसे प्रयत्नपूर्वक सुनाना चाहिये।
(अध्याय ४)