Shiv puran rudra samhita Parwati khand chapter 39 (शिव पुराण रुद्रसंहिता पार्वती खंड अध्याय 39 भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना)

(रुद्रसंहिता, तृतीय (पार्वती) खण्ड)

Shiv puran rudra samhita Parwati khand chapter 39 (शिव पुराण रुद्रसंहिता पार्वती खंड अध्याय 39 भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना)

(अध्याय 39)

:-नारदजी बोले-विष्णुशिष्य महाप्राज्ञ तात विधातः ! आपको नमस्कार है। कृपानिधे ! आपके मुँहसे यह अद्भुत कथा मुझे सुननेको मिली है। अब मैं भगवान् चन्द्रमौलिके परम मंगलमय तथा समस्त पापराशिके विनाशक वैवाहिक चरित्रको सुनना चाहता हूँ। मंगलपत्रिका पाकर महादेवजीने क्या किया ? परमात्मा शंकरकी वह दिव्य कथा सुनाइये ।

ब्रह्माजीने कहा- बेटा ! तुम बड़े बुद्धिमान् हो। भगवान् शंकरके उत्तम यशको सुनो। मंगलपत्रिका पाकर भगवान् शंकरने जो कुछ किया, वह बताता हूँ। भगवान् शिव उस मंगलपत्रिकाको प्रसन्नतापूर्वक हाथमें लेकर हृदयमें बड़े हर्षका अनुभव करते हुए हँसने लगे। फिर उन भगवान्ने उसे लानेवालोंका सम्मान किया। तत्पश्चात् उसे बाँचकर विधिपूर्वक स्वीकार किया।

 

इसके बाद हिमाचलके यहाँसे आये हुए लोगोंको बड़े आदर-सम्मानके साथ विदा किया। तदनन्तर उन मुनियोंसे कहा – ‘आपलोगोंने मेरे शुभकार्यका भलीभाँति सम्पादन किया, अब मैंने विवाह स्वीकार कर लिया है। अतः आपलोगोंको मेरे विवाहमें आना चाहिये।’

भगवान् शंकरका यह वचन सुनकर वे ऋषि बड़े प्रसन्न हुए और उन्हें प्रणाम एवं उनकी परिक्रमा करके अपने परम सौभाग्यकी सराहना करते हुए अपने धामको चले गये। मुने ! तदनन्तर महालीला करनेवाले देवेश्वर भगवान् शम्भुने लोकाचारका सहारा ले तत्काल ही तुम्हारा स्मरण किया। तुम अपने सौभाग्यकी प्रशंसा करते हुए बड़ी प्रसन्नताके साथ वहाँ आये और मस्तक झुका प्रणाम कर हाथ जोड़ विनीतभावसे खड़े हो गये।

तब भगवान् शिवने कहा- नारद ! तुम्हारे उपदेशसे देवी पार्वतीने बड़ी भारी तपस्या की और उससे संतुष्ट होकर मैंने उन्हें यह वर दिया कि मैं पतिरूपसे तुम्हारा पाणिग्रहण करूँगा। पार्वतीकी भक्ति देखकर मैं उनके वशमें हो गया हूँ। इसलिये उनके साथ विवाह करूँगा। सप्तर्षियोंने लग्नका साधन और शोधन कर दिया है। अतः आजसे सातवें दिन मेरा विवाह होगा। उस अवसरपर लौकिक रीतिका आश्रय ले मैं महान् उत्सव करूँगा।

 

मुने ! तुम विष्णु आदि सब देवताओं, मुनियों और सिद्धोंको तथा अन्य लोगोंको भी मेरी ओरसे निमन्त्रित करो। सब लोग मेरे शासनकी गुरुताको समझकर प्रसन्नता और उत्साहके साथ सब प्रकारसे सज- धजकर स्त्री-पुत्रोंको साथ लिये यहाँ आयें।

ब्रह्माजी कहते हैं-मुने ! भगवान् शंकरकी इस आज्ञाको शिरोधार्य करके तुमने शीघ्र ही सर्वत्र जाकर उन सबको निमन्त्रण दे दिया। तत्पश्चात् शम्भुके पास आकर उनकी आज्ञाके अनुसार तुम वहीं ठहर गये। भगवान् शिव भी उन सब देवताओंके आगमनकी उत्कण्ठापूर्वक प्रतीक्षा करते हुए अपने गणोंके साथ वहीं रहे।

 

उनके सभी गण सम्पूर्ण दिशाओंमें नाचते हुए वहाँ बड़ा भारी उत्सव मना रहे थे। इसी बीचमें भगवान् विष्णु सुन्दर वेष धारण किये अपनी पत्नी और दल-बलके साथ शीघ्र ही कैलास पर्वतपर आये और भक्तिभावसे भगवान् शिवको प्रणाम करके उनकी आज्ञा पाकर प्रसन्नतापूर्वक उत्तम स्थानमें ठहर गये।

 

इसी प्रकार मैं अपने गणोंके साथ स्वतन्त्रतापूर्वक शीघ्र ही कैलास गया और भगवान् शम्भुको प्रणाम करके अपने सेवकोंसहित सानन्द वहाँ ठहरा। तदनन्तर इन्द्र आदि लोकपाल और उनकी स्त्रियाँ आवश्यक सामानके साथ खूब सज-धजकर वहाँ आयीं। वे सब के सब उत्सव मना रहे थे। तत्पश्चात् मुनि, नाग, सिद्ध, उपदेवता तथा अन्य लोग भी निमन्त्रित हो उत्सव मनाते हुए वहाँ आये। उस समय महेश्वरने वहाँ आये हुए सब देवता आदिका पृथक् – पृथक् सहर्ष स्वागत-सत्कार किया।

 

फिर तो कैलास पर्वतपर बड़ा अद्भुत और महान् उत्सव होने लगा। देवांगनाओंने उस अवसरपर यथायोग्य नृत्य आदि किया। विष्णु आदि जो देवता भगवान् शम्भुकी वैवाहिक यात्रा सम्पन्न करानेके लिये इस समय वहाँ आये थे, वे सब यथास्थान ठहर गये। भगवान् शिवकी आज्ञा पाकर सब लोग उनके प्रत्येक कार्यको अपना ही कार्य समझकर नियन्त्रित रूपसे करने लगे और इसे शिवकी सेवा मानने लगे। उस समय सातों मातृकाएँ वहाँ बड़ी प्रसन्नताके साथ शिवको यथायोग्य आभूषण पहनाने लगीं।

 

मुनिश्रेष्ठ ! परमेश्वर भगवान् शिवका जो स्वाभाविक वेष था,वही उनकी इच्छासे उनके लिये आभूषणकी सामग्री बन गया। उस समय चन्द्रमा स्वयं उनके मुकुटके स्थानपर जा विराजे। उनका जो सुन्दर ललाटवर्ती तीसरा नेत्र था, वही शुभ तिलक बन गया। मुने ! कानोंके आभूषणोंके रूपमें जो दो सर्प बताये गये हैं, वे नाना प्रकारके रत्नोंसे युक्त दो कुण्डल बन गये। अन्यान्य अंगोंमें स्थित सर्प उन- उन अंगोंके अति रमणीय नाना रत्नमय आभूषण हो गये।

 

उनके शरीरमें जो भस्म लगा हुआ था, वही चन्दन आदिका अंगराग बन गया और उनके जो गजचर्म आदि परिधान थे, वे सुन्दर दिव्य दुकूल बन गये। इस प्रकार उनका रूप इतना सुन्दर हो गया कि उसका वर्णन करना कठिन है। वे साक्षात् ईश्वर तो थे ही, उन्होंने पूरा-पूरा ऐश्वर्य प्राप्त कर लिया। तदनन्तर समस्त देवता, यक्ष, दानव, नाग, पक्षी, अप्सरा और महर्षिगण मिलकर भगवान् शिवके समीप गये और महान् उत्सव मनाते हुए प्रसन्नतापूर्वक उनसे बोले- ‘महादेव !

महेश्वर ! अब आप महादेवी गिरिजाको ब्याह लानेके लिये हमलोगोंके साथ चलिये, चलिये। हमपर कृपा कीजिये।’ तत्पश्चात् तत्व  ज्ञानसे प्रसन्न हृदयवाले भगवान् विष्णुने भगवान् शंकरको भक्तिभावसे प्रणाम करके उपर्युक्त प्रस्तावके अनुरूप ही बात कही।

भगवान् विष्णु बोले-शरणागतवत्सल देवदेव ! महादेव ! प्रभो! आप अपने भक्तजनोंका कार्य सिद्ध करनेवाले हैं; अतः मेरा एक निवेदन सुनिये। कल्याणकारी शम्भो ! आप गृह्यसूत्रोक्त विधिके अनुसार गिरिराजकुमारी पार्वतीदेवीके साथ अपने विवाहका कार्य कराइये। हर ! आपके द्वारा विवाहकी विधिका सम्पादन होनेपर वही लोकमें सर्वत्र विख्यात हो जायगी, अतः नाथ! आप कुलधर्मके अनुसार प्रेमपूर्वक मण्डपस्थापन और नान्दीमुख श्राद्ध कराइये तथा लोकमें अपने यशका विस्तार कीजिये।

ब्रह्माजी कहते हैं-नारद ! भगवान् विष्णुके ऐसा कहनेपर लोकाचारपरायण परमेश्वर शम्भुने विधिपूर्वक सब कार्य किया। उन्होंने सारा आभ्युदयिक कार्य करानेके लिये मुझको ही अधिकार दे दिया था। अतः वहाँ मुनियोंको साथ ले मैंने आदर और प्रसन्नताके साथ वह सब कार्य सम्पन्न किया।

 

महामुने ! उस समय कश्यप, अत्रि, वसिष्ठ, गौतम, भागुरि, गुरु, कण्व, बृहस्पति, शक्ति, जमदग्नि, पराशर, मार्कण्डेय, शिलापाक, अरुणपाल, अकृतश्रम, अगस्त्य, च्यवन, गर्ग, शिलाद, दधीचि, उपमन्यु, भरद्वाज, अकृतव्रण, पिप्पलाद, कुशिक, कौत्स तथा शिष्योंसहित व्यास- ये और दूसरे बहुत-से ऋषि जो भगवान् शिवके समीप आये थे, मेरी प्रेरणासे विधिपूर्वक वहाँ आभ्युदयिक कर्म कराने लगे। वे सब- के-सब वेदोंके पारंगत विद्वान् थे।

 

अतः वेदोक्त विधिसे वैवाहिक मंगलाचार करके ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेदके विविध उत्तम सूक्तोंद्वारा महेश्वरकी रक्षा करने लगे। उन सब ऋषियोंने बड़ी प्रसन्नताके साथ बहुत-से मंगलकार्य कराये। मेरी और शम्भुकी प्रेरणासे उन्होंने विघ्नोंकी शान्तिके लिये प्रीतिपूर्वक ग्रहोंका और समस्त मण्डलवर्ती देवताओंका पूजन किया। वह सब लौकिक, वैदिक कर्म यथोचित रीतिसे करके भगवान् शिव बहुत संतुष्ट हुए और उन्होंने प्रसन्नता- पूर्वक ब्राह्मणोंको प्रणाम किया।

 

तदनन्तर वे सर्वेश्वर महादेव देवताओं और ब्राह्मणोंको आगे करके उस गिरिश्रेष्ठ कैलाससे हर्षपूर्वक निकले। कैलाससे बाहर जाकर देवताओं और ब्राह्मणोंके साथ भगवान् शम्भु, जो नाना प्रकारकी लीलाएँ करनेवाले हैं, सानन्द खड़े हो गये। उस समय वहाँ महेश्वरके संतोषके लिये देवता आदिने मिलकर बहुत बड़ा उत्सव मनाया। बाजे बजे तथा गान और नृत्य हुए।

(अध्याय ३९)

Leave a Comment

error: Content is protected !!