Shiv puran mahima chapter 1(श्री शिवपुराण-माहात्म्य प्रथम अध्याय:शौनकजी के साधन विषयक प्रश्न करने पर सूतजी का उन्हें शिवपुराण की उत्कृष्ट महिमा सुनाना)

(श्रीगणेशाय नमः)

(श्रीशिवपुराण-माहात्म्य)

“भवाब्धिमग्नं दीनं मां समुद्धर भवार्णवात्।

कर्मग्राहगृहीताङ्गं दासोऽहं तव शङ्कर ।।”

 

Shiv puran mahima chapter 1(श्री शिवपुराण-माहात्म्य प्रथम अध्याय:शौनकजी के साधन विषयक प्रश्न करने पर सूतजी का उन्हें शिवपुराण की उत्कृष्ट महिमा सुनाना)

(प्रथम अध्याय)

 

:-श्रीशौनकजी ने पूछा- महाज्ञानी सूतजी ! आप सम्पूर्ण सिद्धान्तों के ज्ञाता हैं। प्रभो! मुझसे पुराणों की कथाओं के सारतत्त्व का विशेषरूप से वर्णन कीजिये। ज्ञानऔरवैराग्य सहित भक्ति से प्राप्त होने वाले विवेक की वृद्धि कैसे होती है?

 

तथा साधुपुरुष किस प्रकार अपने काम-क्रोध आदि मानसिक विकारों का निवारण करते हैं? इस घोर कलिकाल में जीव प्रायः आसुर स्वभाव के हो गये हैं उस जीवसमुदाय को शुद्ध (दैवी सम्पत्ति से युक्त) बनाने के लिये सर्वश्रेष्ठ उपाय क्या है?

 

आप इस समय मुझे ऐसा कोई शाश्वत साधन बताइये, जो कल्याणकारी वस्तुओं में भी सबसे उत्कृष्ट एवं परम मंगलकारी हो तथा पवित्र करने वाले उपायों में भी सर्वोत्तम पवित्र कारक उपाय हो। तात! वह साधन ऐसा हो, जिसके अनुष्ठान से शीघ्र ही अन्तःकरण की विशेष शुद्धि हो जाय तथा उससे निर्मल चित्तवाले पुरुष को सदा के लिये शिव की प्राप्ति हो जाय।

 

श्रीसूतजी ने कहा- मुनिश्रेष्ठ शौनक ! तुम धन्य हो; क्योंकि तुम्हारे हृदय में पुराण-कथा सुनने का विशेष प्रेम एवं लालसा है। इसलिये मैं शुद्ध बुद्धि से विचार कर तुमसे परम उत्तम शास्त्र का वर्णन करता हूँ। वत्स! वह सम्पूर्ण शास्त्रों के सिद्धान्त से सम्पन्न, भक्ति आदि को बढ़ाने- वाला तथा भगवान् शिवको संतुष्ट करने वाला है।

 

कानों के लिये रसायन-अमृतस्वरूप तथा दिव्य है, तुम उसे श्रवण करो। मुने! वह परम उत्तम शास्त्र है-शिवपुराण, जिसका पूर्वकाल में भगवान् शिव ने ही प्रवचन किया था। यह काल रूपी सर्प से प्राप्त होने वाले महान् त्रास का विनाश करनेवाला उत्तम साधन है।

 

गुरुदेव व्यास ने सनत्कुमार मुनि का उपदेश पाकर बड़े आदर से संक्षेप में ही इस पुराण का प्रतिपादन किया है।इस पुराण के प्रणयन का उद्देश्य है- कलियुग में उत्पन्न होनेवाले मनुष्यों के परम हित का साधन।

 

यह शिवपुराण परम उत्तम शास्त्र है। इसे इस भूतलपर भगवान् शिव का वाङ्गय स्वरूप समझना चाहिये और सब प्रकार से इसका सेवन करना चाहिये। इसका पठन और श्रवण सर्वसाधनरूप है। इससे शिव- भक्ति पाकर श्रेष्ठतम स्थिति में पहुँचा हुआ मनुष्य शीघ्र ही शिवपद को प्राप्त कर लेता है।

 

इसीलिये सम्पूर्ण यत्न करके मनुष्यों ने इस पुराण को पढ़ने की इच्छा की है – अथवा इसके अध्ययन को अभीष्ट साधन माना है। इसी तरह इसका प्रेमपूर्वक श्रवण भी सम्पूर्ण मनोवांक्षित फलों को देनेवाला है। भगवान् शिव के इस पुराण को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है तथा इस जीवन में बड़े-बड़े उत्कृष्ट भोगों का उपभोग करके अन्त में शिवलोक को प्राप्त कर लेता है।

 

यह शिवपुराण नामक ग्रन्थ चौबीस हजार श्लोकों से युक्त है। इसकी सात संहिताएँ हैं। मनुष्य को चाहिये कि वह भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से सम्पन्न हो बड़े आदर से इसका श्रवण करे। सात संहिताओं से युक्त यह दिव्य शिवपुराण परब्रह्म परमात्मा के समान विराजमान है और सबसे उत्कृष्ट गति प्रदान करनेवाला है।

जो निरन्तर अनुसंधानपूर्वक इस शिवपुराण को बाँचता है अथवा नित्य प्रेमपूर्वक इसका पाठमात्र करता है वह पुण्यात्मा है-इसमें संशय नहीं है। जो उत्तम बुद्धिवाला पुरुष अन्तकाल में भक्तिपूर्वक इस पुराण को सुनता है उसपर अत्यन्त प्रसन्न हुए भगवान् महेश्वर उसे अपना पद (धाम) प्रदान करते हैं।

 

जो प्रतिदिन आदरपूर्वक इस शिवपुराण का पूजन करता है वह इस संसार में सम्पूर्ण भोगों को भोगकर अन्त में भगवान् शिव के पद को प्राप्त कर लेता है। जो प्रतिदिन आलस्यरहित हो रेशमी वस्त्र आदि के वेष्टन से इस शिवपुराण का सत्कार करता है वह सदा सुखी होता है।

 

यह शिव- पुराण निर्मल तथा भगवान् शिव का सर्वस्व है; जो इह लोक और परलोक में भी सुख चाहता हो, उसे आदर के साथ प्रयत्नपूर्वक इसका सेवन करना चाहिये। यह निर्मल एवं उत्तम शिवपुराण धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूप चारों पुरुषार्थों को देनेवाला है।

 

अतः सदा प्रेमपूर्वक इसका श्रवण एवं विशेष पाठ करना चाहिये।

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