Shiv puran kotirudra samhita chapter 1 (शिव पुराण  कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 1 द्वादश ज्योतिर्लिंगों तथा उनके उपलिंगोंका वर्णन एवं उनके दर्शन-पूजनकी महिमा)

(कोटिरुद्रसंहिता)

Shiv puran kotirudra samhita chapter 1 (शिव पुराण  कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 1 द्वादश ज्योतिर्लिंगों तथा उनके उपलिंगोंका वर्णन एवं उनके दर्शन-पूजनकी महिमा)

 

“यो धत्ते निजमाययैव भुवनाकारं विकारोज्झितो यस्याहुः करुणाकटाक्षविभवौ स्वर्गापवर्गाभिधौ । प्रत्यग्बोधसुखाद्वयं हृदि सदा पश्यन्ति यं योगिन- स्तस्मै शैलसुताञ्चितार्द्धवपुषे शश्वन्नमस्तेजसे ॥ १ ॥”

“जो निर्विकार होते हुए भी अपनी मायासे ही विराट् विश्वका आकार धारण कर लेते हैं, स्वर्ग और अपवर्ग (मोक्ष) जिनके कृपा-कटाक्षके ही वैभव बताये जाते हैं तथा योगीजन जिन्हें सदा अपने हृदयके भीतर अद्वितीय आत्मज्ञानानन्द- स्वरूपमें ही देखते हैं, उन तेजोमय भगवान् शंकरको, जिनका आधा शरीर शैलराजकुमारी पार्वतीसे सुशोभित है, निरन्तर मेरा नमस्कार है॥ १ ॥”

कृपाललितवीक्षणं स्मितमनोज्ञवक्त्राम्बुजं शशाङ्ककलयोज्ज्वलं शमितघोरतापत्रयम् । करोतु किमपि स्फुरत्परमसौख्यसच्चिद्वपु- र्धराधरसुताभुजोद्वलयितं महो मङ्गलम् ॥२॥

जिसकी कृपापूर्ण चितवन बड़ी ही सुन्दर है, जिसका मुखारविन्द मन्द मुसकानकी छटासे अत्यन्त मनोहर दिखायी देता है, जो चन्द्रमाकी कलासे परम उज्ज्वल है, जो आध्यात्मिक आदि तीनों तापोंको शान्त कर देनेमें समर्थ है, जिसका स्वरूप सच्चिन्मय एवं परमानन्दरूपसे प्रकाशित होता है तथा जो गिरिराजनन्दिनी पार्वतीके भुजपाशये आवेष्टित है, वह शिव नामक कोई अनिर्वचनीय तेजःपुंज सबका मंगल करे ॥ २ ॥

:-ऋषि बोले- सूतजी ! आपने सम्पूर्ण लोकोंके हितकी कामनासे नाना प्रकारके आख्यानोंसे युक्त जो शिवावतारका माहात्म्य बताया है, वह बहुत ही उत्तम है। तात !

 

आप पुनः शिवके परम उत्तम माहात्म्यका तथा शिवलिंगकी महिमाका प्रसन्नतापूर्वक वर्णन कीजिये। आप शिवभक्तोंमें श्रेष्ठ हैं, अतः धन्य हैं। प्रभो ! आपके मुखारविन्दसे निकले हुए भगवान् शिवके सुरम्य यशरूपी अमृतका अपने कर्णपुटोंद्वारा पान करके हम तृप्त नहीं हो रहे हैं, अतः फिर उसीका वर्णन कीजिये। व्यासशिष्य !

 

भूमण्डलमें, तीर्थ-तीर्थमें जो-जो शुभ लिंग हैं अथवा अन्य स्थलोंमें भी जो-जो प्रसिद्ध शिवलिंग विराजमान हैं, परमेश्वर शिवके उन सभी दिव्य लिंगोंका समस्त लोकोंके हितकी इच्छासे आप वर्णन कीजिये।

सूतजीने कहा-महर्षियो ! सम्पूर्ण तीर्थ लिंगमय हैं। सब कुछ लिंगमें ही प्रतिष्ठित है। उन शिवलिंगोंकी कोई गणना नहीं है, तथापि मैं उनका किंचित् वर्णन करता हूँ। जो कोई भी दृश्य देखा जाता है तथा जिसका वर्णन एवं स्मरण किया जाता है, वह सब भगवान् शिवका ही रूप है; कोई भी वस्तु शिवके स्वरूपसे भिन्न नहीं है। साधुशिरोमणियो !

 

भगवान् शम्भुने सब लोगोंपर अनुग्रह करनेके लिये ही देवता, असुर और मनुष्योंसहित तीनों लोकोंको लिंगरूपसे व्याप्त कर रखा है। समस्त लोकोंपर कृपा करनेके उद्देश्यसे ही भगवान् महेश्वर तीर्थ-तीर्थमें और अन्य स्थलोंमें भी नाना प्रकारके लिंग धारण करते हैं। जहाँ- जहाँ जब-जब भक्तोंने भक्तिपूर्वक भगवान् शम्भुका स्मरण किया, तहाँ-तहाँ तब-तब अवतार ले कार्य करके वे स्थित हो गये; लोकोंका उपकार करनेके लिये उन्होंने स्वयं अपने स्वरूपभूत लिंगकी कल्पना की।

उस लिंगकी पूजा करके शिवभक्त पुरुष अवश्य सिद्धि प्राप्त कर लेता है। ब्राह्मणो ! भूमण्डलमें जो लिंग हैं, उनकी गणना नहीं हो सकती; तथापि मैं प्रधान-प्रधान शिवलिंगोंका परिचय देता हूँ। मुनिश्रेष्ठ शौनक !

इस भूतलपर जो मुख्य-मुख्य ज्योतिर्लिंग हैं, उनका आज मैं वर्णन करता हूँ। उनका नाम  सुननेमात्रसे पाप दूर हो जाता है। सौराष्ट्रमें सोमनाथ, श्रीशैलपर मल्लिकार्जुन, उज्जैनीमें महाकाल, ओंकारतीर्थमें परमेश्वर, हिमालयके शिखरपर केदार, डाकिनीमें भीमशंकर, वाराणसीमें विश्वनाथ, गोदावरीके तटपर त्र्यम्बक, चिताभूमिमें वैद्यनाथ, दारुकावनमें नागेश, सेतुबन्धमें रामेश्वर तथा शिवालयमें घुश्मेश्वरका स्मरण करे।

 

जो प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर इन बारह नामोंका पाठ करता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो सम्पूर्ण सिद्धियोंका फल प्राप्त कर लेता है। मुनीश्वरो ! जिस-जिस मनोरथको पानेकी इच्छा रखकर श्रेष्ठ मनुष्य इन बारह नामोंका पाठ करेंगे, वे इस लोक और परलोकमें उस मनोरथको अवश्य प्राप्त करेंगे। जो शुद्ध अन्तःकरणवाले पुरुष निष्कामभावसे इन नामोंका पाठ करेंगे, उन्हें कभी माताके गर्भमें निवास नहीं करना पड़ेगा।

 

इन सबके पूजनमात्रसे ही इहलोकमें समस्त वर्णोंके लोगोंके दुःखोंका नाश हो जाता है और परलोकमें उन्हें अवश्य मोक्ष प्राप्त होता है। इन बारह ज्योतिर्लिंगोंका नैवेद्य यत्नपूर्वक ग्रहण करना (खाना) चाहिये। ऐसा करने- वाले पुरुषके सारे पाप उसी क्षण जलकर भस्म हो जाते हैं।

यह मैंने ज्योतिर्लिंगोंके दर्शन और पूजनका फल बताया। अब ज्योतिर्लिंगोंके उपलिंग बताये जाते हैं। मुनीश्वरो ! ध्यान देकर सुनो। सोमनाथका जो उपलिंग है, उसका नाम अन्तकेश्वर है। वह उपलिंग मही नदी और समुद्रके संगमपर स्थित है। मल्लिकार्जुनसे प्रकट उपलिंग रुद्रेश्वरके नामसे प्रसिद्ध है। वह भृगुकक्षमें स्थित है और उपासकोंको सुख देनेवाला है।

 

महाकालसम्बन्धी उपलिंग दुग्धेश्वर या दूधनाथके नामसे प्रसिद्ध है। वह नर्मदाके तटपर है तथा समस्त पापोंका निवारण करनेवाला कहा गया है। ओंकारेश्वर- सम्बन्धी उपलिंग कर्दमेश्वरके नामसे प्रसिद्ध है। वह बिन्दु सरोवरके तटपर है और उपासकको सम्पूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करता है। केदारेश्वरसम्बन्धी उपलिंग भूतेश्वरके नामसे प्रसिद्ध है और यमुनातटपर स्थित है।

 

जो लोग उसका दर्शन और पूजन करते हैं, उनके बड़े- से-बड़े पापोंका वह निवारण करनेवाला बताया गया है। भीमशंकरसम्बन्धी उपलिंग भीमेश्वरके नामसे प्रसिद्ध है। वह भी सह्य पर्वतपर ही स्थित है और महान् बलकी वृद्धि करनेवाला है। नागेश्वरसम्बन्धी उपलिंगका नाम भी भूतेश्वर ही है, वह मल्लिका सरस्वतीके तटपर स्थित है और दर्शन करनेमात्रसे सब पापोंको हर लेता है।

 

रामेश्वरसे प्रकट हुए उपलिंगको गुप्तेश्वर और घुश्मेश्वरसे प्रकट हुए उपलिंगको व्याघ्नेश्वर कहा गया है। ब्राह्मणो ! इस प्रकार यहाँ मैंने ज्योतिर्लिंगोंके उपलिंगोंका परिचय दिया।ये दर्शनमात्रसे पापहारी तथा सम्पूर्ण अभीष्टके दाता होते हैं। मुनिवरो ! ये मुख्यताको प्राप्त हुए प्रधान-प्रधान शिवलिंग बताये गये। अब अन्य प्रमुख शिवलिंगोंका वर्णन सुनो।

(अध्याय १)

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