चाणक्य नीति नवां अध्याय – Chanakya Niti chapter 9.

चाणक्य नीति नवां अध्याय – Chanakya Niti chapter 9.

(आठवां अध्याय)

मुक्तिमिच्छासि चेत्तात ! विषयान् विषवत्त्यज ।
क्षमाऽऽर्जवं दया शौचं सत्यं पीयूषवत्पिब ।।१।।

अर्थ– तात, यदि तुम जन्म मरण के चक्र से मुक्त होना चाहते हो तो जिन विषयो के पीछे तुम इन्द्रियों की संतुष्टि के लिए भागते फिरते हो उन्हें ऐसे त्याग दो जैसे तुम विष को त्याग देते हो. इन सब को छोड़कर हे तात तितिक्षा, ईमानदारी का आचरण, दया, शुचिता और सत्य इसका अमृत पियो.

Meaning– My dear child, if you desire to be free from the cycle of birth and death, then abandon the objects of sense gratification as poison. Drink instead the nectar of forbearance, upright conduct, mercy, cleanliness and truth.

परस्परस्य मर्माणि ये भाषन्ते नराधमाः ।
त एव विलयं यान्ति वल्मीकोदरसर्पवत् ।।२।।
अर्थ– वो कमीने लोग जो दूसरो की गुप्त खामियों को उजागर करते हुए फिरते है, उसी तरह नष्ट हो जाते है जिस तरह कोई साप चीटियों के टीलों में जा कर मर जाता है.
Meaning– Those base men who speak of the secret faults of others destroy themselves like serpents who stray onto anthills.
गन्धः सुवर्णे फलभिक्षुदंडे- नाऽकारि पुष्पं खलु चन्दनस्य ।
विद्वान् धनी भूपतिदीर्घजीवी धातुः पुरा कोऽपि न बुध्दिदोऽभूत् ।।३।।
अर्थ– शायद किसीने ब्रह्माजी, जो इस सृष्टि के निर्माता है, को यह सलाह नहीं दी की वह … सुवर्ण को सुगंध प्रदान करे. गन्ने के झाड को फल प्रदान करे. चन्दन के वृक्ष को फूल प्रदान करे. विद्वान् को धन प्रदान करे. राजा को लम्बी आयु प्रदान करे.

Meaning– Perhaps nobody has advised Lord Brahma, the creator, to impart perfume to gold; fruit to the sugarcane; flowers to the sandalwood tree; wealth to the learned; and long life to the king.

सर्वौषधीनाममृतं प्रधानम् सर्वेषु सौख्येष्वशनं प्रधानम् ।
सर्वेन्द्रियाणां नयनं प्रधानं सर्वेषु गात्रेषु शिरः प्रधानम् ।।४।।
अर्थ– अमृत सबसे बढ़िया औषधि है. इन्द्रिय सुख में अच्छा भोजन सर्वश्रेष्ठ सुख है. नेत्र सभी इन्द्रियों में श्रेष्ठ है. मस्तक शरीर के सभी भागो मे श्रेष्ठ है.
Meaning– Nectar (amrita) is the best among medicines; eating good food is the best of all types of material happiness; the eye is the chief among all organs; and the head occupies the chief position among all parts of the body.
दुतो न सञ्चरति खे न चलेच्च वार्ता ।
पुर्व न जल्पितमिदं न च सड्गमोऽस्ति ।
व्योम्नि स्थितं रविशाशग्रहणं प्रशस्तं
जानाति यो द्विजवरः सकथं न विद्वान् ।।५।।
अर्थ– कोई संदेशवाहक आकाश में जा नहीं सकता और आकाश से कोई खबर आ नहीं सकती. वहा रहने वाले लोगो की आवाज सुनाई नहीं देती. और उनके साथ कोई संपर्क नहीं हो सकता. इसीलिए वह ब्राह्मण जो सूर्य और चन्द्र ग्रहण की भविष्य वाणी करता है, उसे विद्वान मानना चाहिए.
Meaning– No messenger can travel about in the sky and no tidings come from there. The voice of its inhabitants as never heard, nor can any contact be established with them. Therefore the brahmana who predicts the eclipse of the sun and moon which occur in the sky must be considered as a vidwan (man of great learning).
विद्यार्थी सेवकः पान्थः क्षुधार्तो भयकातरः ।
भाण्डारी प्रतिहारी च सप्त सुप्तान् प्रबोधयेत् ।।६।।
अर्थ– इन सातो को जगा दे यदि ये सो जाए…
१. विद्यार्थी
२. सेवक
३. पथिक
४. भूखा आदमी
५. डरा हुआ आदमी
६. खजाने का रक्षक
७. खजांची

Meaning– The student, the servant, the traveller, the hungry person, the frightened man, the treasury guard, and the steward: these seven ought to be awakened if they fall asleep.

अहिं नृपं च शार्दुलं बरटि बालकं तथा ।
परश्वानं च मूर्ख च सप्त सुप्तान्न बोधयेत् ।।७।।
अर्थ– इन सातो को नींद से नहीं जगाना चाहिए…
१. साप
२. राजा
३. बाघ
४. डंख करने वाला कीड़ा
५. छोटा बच्चा
६. दुसरो का कुत्ता
७. मुर्ख

Meaning– The serpent, the king, the tiger, the stinging wasp, the small child, the dog owned by other people, and the fool: these seven ought not to be awakened from sleep.

अर्थाधीताश्चयै र्वेदास्तथा शूद्रान्न भोजिनः ।
ते द्विजाः किं करिष्यन्ति निर्विषा इव पन्नगाः ।।८।।
अर्थ– जिन्होंने वेदों का अध्ययन पैसा कमाने के लिए किया और जो नीच काम करने वाले लोगो का दिया हुआ अन्न खाते है उनके पास कौनसी शक्ति हो सकती है. वो ऐसे भुजंगो के समान है जो दंश नहीं कर सकते.

Meaning– Of those who have studied the Vedas for material rewards, and those who accept foodstuffs offered by shudras, what potency have they? They are just like serpents without fangs.

यस्मिन रुष्टे भयं नास्ति तुष्टे नैव धनागमः ।
निग्रहाऽनुग्रहोनास्ति स रुष्टः किं करिष्यति ।।९।।
अर्थ– जिसके डाटने से सामने वाले के मन में डर नहीं पैदा होता और प्रसन्न होने के बाद जो सामने वाले को कुछ देता नहीं है. वो ना किसी की रक्षा कर सकता है ना किसी को नियंत्रित कर सकता है. ऐसा आदमी भला क्या कर सकता है.

Meaning– He who neither rouses fear by his anger, nor confers a favour when he is pleased can neither control nor protect. What can he do?

निविषेणापि सर्पेण कर्तव्या महती फणा ।
विषमस्तु न चाप्यस्तु घटाटोप भयंकरः ।।१०।।
अर्थ– यदि नाग अपना फना खड़ा करे तो भले ही वह जहरीला ना हो तो भी उसका यह करना सामने वाले के मन में डर पैदा करने को पर्याप्त है. यहाँ यह बात कोई माइना नहीं रखती की वह जहरीला है की नहीं.

Meaning– The serpent may, without being poisonous, raise high its hood, but the show of terror is enough to frighten people — whether he be venomous or not.

प्रारर्द्यूतप्रसंगेन मध्यान्हे स्त्रीप्रसंगतः ।
रात्रौ चौरप्रसंगेन कालो गच्छति धीमताम् ।।११।।
अर्थ– सुबह उठकर दिन भर जो दाव आप लगाने वाले है उसके बारे में सोचे. दोपहर को अपनी माँ को याद करे. रात को चोरो को ना भूले.

Meaning– Wise men spend their mornings in discussing gambling, the afternoon discussing the activities of women, and the night hearing about the activities of theft. (The first item above refers to the gambling of King Yuddhisthira, the great devotee of Krishna. The second item refers to the glorious deeds of mother Sita, the consort of Lord Ramachandra. The third item hints at the adorable childhood pastimes of Sri Krishna who stole butter from the elderly cowherd ladies of Gokula. Hence Chanakya Pandits advises wise persons to spend the morning absorbed in Mahabharata, the afternoon studying Ramayana, and the evening devotedly hearing the Srimad-Bhagvatam.)

स्वहस्तग्रथिता माला स्वहस्ताद घृष्टचन्दनम् ।
स्वहस्तलिखितं शक्रस्यापि श्रियं हरेत् ।।
इक्षुदंडास्तिलाः शुद्राः कान्ता कांचनमोदिनी ।
चन्दनं दधि ताम्बूलं मर्दनं गुणवर्ध्दनम् ।।१२।।
अर्थ– आपको इन्द्र के समान वैभव प्राप्त होगा यदि आप.. अपने भगवान् के गले की माला अपने हाथो से बनाये. अपने भगवान् के लिए चन्दन अपने हाथो से घिसे. अपने हाथो से पवित्र ग्रंथो को लिखे.

Meaning– By preparing a garland for a Deity with one’s own hand; by grinding sandal paste for the Lord with one’s own hand; and by writing sacred texts with one’s own hand — one becomes blessed with opulence equal to that of Indra.

दरिद्रता धीरतया विराजते ।
कुवस्त्रता शुभ्रतया विराजते ।।
कदन्नता चोष्णतया विराजते ।
कुरूपता शीलतया विराजते ।।१३।।
अर्थ– गरीबी पर धैर्य से मात करे. पुराने वस्त्रो को स्वच्छ रखे. बासी अन्न को गरम करे. अपनी कुरूपता पर अपने अच्छे व्यवहार से मात करे.

Meaning– Poverty is set off by fortitude; shabby garments by keeping them clean; bad food by warming it; and ugliness by good behaviour.

(चाणक्य नीति नवां अध्याय)

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