चाणक्य नीति सोलहवां अध्याय:Chanakya Niti chapter 16.

चाणक्य नीति सोलहवां अध्याय:Chanakya Niti chapter 16.

(अध्याय सोलहवां)

जल्पन्ति सार्धमन्येन पश्यन्त्यन्यं सविभ्रमाः ।

हृदये चिन्तयन्तयन्यं न स्त्रीणामेकतो रतिः ।।

अर्थ– स्त्री (यहाँ लम्पट स्त्री या पुरुष अभिप्रेत है) का ह्रदय पूर्ण नहीं है वह बटा हुआ है. जब वह एक आदमी से बात करती है तो दुसरे की ओर वासना से देखती है और मन में तीसरे को चाहती है.

Meaning– The heart of a woman is not united; it is divided. While she is talking with one man, she looks lustfully at another and thinks fondly of a third in her heart.

यो मोहयन्मन्यते मूढो रत्तेयं मयि कामिनी ।
स तस्य वशगो भूत्वा नृत्येत् क्रीडा शकुन्तवत् ।।
अर्थ– मुर्ख को लगता है की वह हसीन लड़की उसे प्यार करती है. वह उसका गुलाम बन जाता है और उसके इशारो पर नाचता है.

Meaning– The fool (mudha) who fancies that a charming young lady loves him, becomes her slave and he dances like a shakuntal bird tied to a string.

कोऽर्थान्प्राप्य न गर्वितो विषयिणः कस्यापदोऽस्तंगताः ।
स्त्रीभिः कस्य न खण्डितं भुवि मनः को नाम राज्ञप्रियः ।।
कः कालस्य न गोचरत्वमगमत् कोऽर्थो गतो गौरवम् ।
को वा दुर्जनदुर्गुणेषु पतितः क्षेमेण यातः पथि ।।
अर्थ– ऐसा यहाँ कौन है जिसमे दौलत पाने के बाद मस्ती नहीं आई. क्या कोई बेलगाम आदमी अपने संकटों पर रोक लगा पाया. इस दुनिया में किस आदमी को औरत ने कब्जे में नहीं किया. किस के ऊपर राजा की हरदम मेहेरबानी रही. किसके ऊपर समय के प्रकोप नहीं हुए. किस भिखारी को यहाँ शोहरत मिली. किस आदमी ने दुष्ट के दुर्गुण पाकर सुख को प्राप्त किया.

Meaning– Who is there who, having become rich, has not become proud? Which licentious (Free) man has put an end to his calamities (A grievous disaster)? Which man in this world has not been overcome by a woman? Who is always loved by the king? Who is there who has not been overcome by the ravages of time? Which beggar has attained glory? Who has become happy by contracting the vices of the wicked?

गुणैरुत्तमतां यान्ति नोच्चैरासनसंस्थितैः ।
प्रसादशिखरस्थोऽपि किं काको गरुडायते ।।
गुणाः सर्वत्र पूज्यन्ते न महत्योऽपि सम्पदः ।
पूर्णेन्दु किं तथा वन्द्यो निष्कलङ्को यथा कुशः ।।
अर्थ– व्यक्ति को महत्ता उसके गुण प्रदान करते है वह जिन पदों पर काम करता है सिर्फ उससे कुछ नहीं होता. क्या आप एक कौवे को गरुड़ कहेंगे यदि वह एक ऊँची ईमारत के छत पर जाकर बैठता है.

Meaning– A man attains greatness by his merits, not simply by occupying an exalted seat. Can we call a crow an eagle (garuda) simply because he sits on the top of a tall building.

परमोक्तगुणो यस्तु निर्गुणोऽपि गुणी भवेत् ।
इन्द्रोऽपि लघुतां याति स्वयं प्रख्यापितैर्गुणैः ।।
अर्थ– जो व्यक्ति गुणों से रहित है लेकिन जिसकी लोग सराहना करते है वह दुनिया में काबिल माना जा सकता है. लेकिन जो आदमी खुद की ही डींगे हाकता है वो अपने आप को दुसरे की नजरो में गिराता है भले ही वह स्वर्ग का राजा इंद्र हो.

Meaning– The man who is praised by others as great is regarded as worthy though he may be really void of all merit. But the man who sings his own praises lowers himself in the estimation of others though he should be Indra (the possessor of all excellences).

विवेकिनमनुप्राप्तो गुणो याति मनोज्ञताम् ।
सुतरां रत्नमाभाति चामीकरनियोजितम् ।।
गुणं सर्वत्र तुल्योऽपि सीदत्येको निराश्रयः ।
अनर्घ्यमपि माणिक्यं हेमाश्रयमपेक्षते ।।
अर्थ– यदि एक विवेक संपन्न व्यक्ति अच्छे गुणों का परिचय देता है तो उसके गुणों की आभा को रत्न जैसी मान्यता मिलती है. एक ऐसा रत्न जो प्रज्वलित है और सोने के अलंकर में मढने पर और चमकता है.

Meaning– If good qualities should characterise a man of discrimination, the brilliance of his qualities will be recognised just as a gem which is essentially bright really shines when fixed in an ornament of gold.

अतिक्लेशेन ये चार्थाः धर्मस्यातिक्रमेण तु ।
शत्रूणां प्रणिपातेन ते ह्यर्थाः न भवन्तु मे ।।
अर्थ– वह व्यक्ति जो सर्व गुण संपन्न है अपने आप को सिद्ध नहीं कर सकता है जबतक उसे समुचित संरक्षण नहीं मिल जाता. उसी प्रकार जैसे एक मणि तब तक नहीं निखरता जब तक उसे आभूषण में सजाया ना जाए.

Meaning– Even one who by his qualities appears to be all knowing suffers without patronage; the gem, though precious, requires a gold setting.

किं तया क्रियते लक्ष्मया या वधूरिव केवला ।
या तु वेश्यैव सामान्यपथिकैरपि भुज्यते ।।
अर्थ– मुझे वह दौलत नहीं चाहिए जिसके लिए कठोर यातना सहनी पड़े, या सदाचार का त्याग करना पड़े या अपने शत्रु की चापलूसी करनी पड़े.

Meaning– I do not deserve that wealth which is to be attained by enduring much suffering, or by transgressing the rules of virtue, or by flattering an enemy.

धनेषु जीवितव्येषु स्त्रीषु चाहारकर्मषु ।
अतृप्ता प्राणिनः सर्वे याता यास्यन्ति यान्ति च ।।
अर्थ– जो अपनी दौलत, पकवान और औरते भोगकर संतुष्ट नहीं हुए ऐसे बहोत लोग पहले मर चुके है. अभी भी मर रहे है और भविष्य में भी मरेंगे.

Meaning– Those who were not satiated with the enjoyment of wealth, food and women have all passed away; there are others now passing away who have likewise remained unsatiated; and in the future still others will pass away feeling themselves unsatiated.

क्षीयन्ते सर्वदानानि यज्ञहोमबलि क्रियाः ।
न क्षीयते पात्रदानम भयं सर्वदेहिनाम् ।।
अर्थ– सभी परोपकार और तप तात्कालिक लाभ देते है. लेकिन सुपात्र को जो दान दिया जाता है और सभी जीवो को जो संरक्षण प्रदान किया जाता है उसका पुण्य कभी नष्ट नहीं होता.

Meaning– All charities and sacrifices (performed for fruitive gain) bring only temporary results, but gifts made to deserving persons (those who are Krishna consciousness) and protection offered to all creatures shall never perish.

तृणं लघु तृणात्तूलं तूलादपि च याचकः ।
वायुना किं न जीतोऽसौ मामयं याचयिष्यति ।।
अर्थ– घास का तिनका हल्का है. कपास उससे भी हल्का है. भिखारी तो अनंत गुना हल्का है. फिर हवा का झोका उसे उड़ाके क्यों नहीं ले जाता. क्योकि वह डरता है कही वह भीख न मांग ले.

Meaning– A blade of grass is light, cotton is lighter, the beggar is infinitely lighter still. Why then does not the wind carry him away? Because it fears that he may ask alms of him.

वरं वनं व्याघ्रगजेन्द्रसेवितं
द्रुमालयं पक्वफलाम्बुसेवनं ।
तृणेषु शय्या शतजीर्णवल्कलं
न बन्धुमध्ये धनहीन जीवनम् ।।
अर्थ– बेइज्जत होकर जीने से अच्छा है की मर जाए. मरने में एक क्षण का दुःख होता है पर बेइज्जत होकर जीने में हर रोज दुःख उठाना पड़ता है.

Meaning– It is better to die than to preserve this life by incurring disgrace. The loss of life causes but a moment’s grief, but disgrace brings grief every day of one’s life.

प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति मानवाः ।
तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ।।
अर्थ– सभी जीव मीठे वचनों से आनंदित होते है. इसीलिए हम सबसे मीठे वचन कहे. मीठे वचन की कोई कमी नहीं है.

Meaning– All the creatures are pleased by loving words; and therefore we should address words that are pleasing to all, for there is no lack of sweet words.

संसार कटु वृक्षस्य द्वे फले ह्यमृतोपमे ।
सुभाषितं च सुस्वादुः सङ्गति सज्जने जने ।।
अर्थ– इस दुनिया के वृक्ष को दो मीठे फल लगे है. मधुर वचन और सत्संग.

Meaning– There are two nectarean fruits hanging from the tree of this world: one is the hearing of sweet words (such as Krishna-katha) and the other, the society of saintly men.

जन्मजन्मनि चाभ्यस्तं दानमध्ययनं तपः ।
तेनैवाभ्यासयोगेन देहि वाऽभ्यस्यते ।।
अर्थ– पहले के जन्मो की अच्छी आदते जैसे दान, विद्यार्जन और तप इस जनम में भी चलती रहती है. क्योकि सभी जनम एक श्रुंखला से जुड़े है.

Meaning– The good habits of charity, learning and austerity practised during many past lives continue to be cultivated in this birth by virtue of the link (yoga) of this present life to the previous ones.

पुस्तकेषु च या विद्या परहस्तेषु च यद्धनम् ।
उत्पन्नेषु च कार्येषु न सा विद्या न तद्धनम् ।।
अर्थ– जिसका ज्ञान किताबो में सिमट गया है और जिसने अपनी दौलत दुसरो के सुपुर्द कर दी है वह जरुरत आने पर ज्ञान या दौलत कुछ भी इस्तमाल नहीं कर सकता.
Meaning– One whose knowledge is confined to books and whose wealth is in the possession of others, can use neither his knowledge nor wealth when the need for them arises.

(चाणक्य नीति सोलहवां अध्याय समाप्त)

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