Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 10(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धःदशमोऽध्यायःराजा जनमेजयद्वारा प्रह्लादके साथ नर-नारायणके युद्धका कारण पूछना, व्यासजीद्वारा उत्तरमें संसारके मूल कारण अहंकारका निरूपण करना तथा महर्षि भृगुद्वारा भगवान् विष्णुको शाप देनेकी कथा)

Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 10(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धःदशमोऽध्यायःराजा जनमेजयद्वारा प्रह्लादके साथ नर-नारायणके युद्धका कारण पूछना, व्यासजीद्वारा उत्तरमें संसारके मूल कारण अहंकारका निरूपण करना तथा महर्षि भृगुद्वारा भगवान् विष्णुको शाप देनेकी कथा) [अथ दशमोऽध्यायः]   :-जनमेजय बोले- हे व्यासजी ! इस कथानकमें मुझे यह महान् संशय हो रहा है कि जब वे नर- नारायण शान्तस्वभाव, … Read more

Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 9(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धःनवमोऽध्यायः प्रह्लादजीका तीर्थयात्राके क्रममें नैमिषारण्य पहुँचना और वहाँ नर-नारायणसे उनका घोर युद्ध, भगवान् विष्णुका आगमन और उनके द्वारा प्रह्लादको नर-नारायणका परिचय देना)

Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 9(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धःनवमोऽध्यायः प्रह्लादजीका तीर्थयात्राके क्रममें नैमिषारण्य पहुँचना और वहाँ नर-नारायणसे उनका घोर युद्ध, भगवान् विष्णुका आगमन और उनके द्वारा प्रह्लादको नर-नारायणका परिचय देना) [अथ नवमोऽध्यायः] व्यासजी बोले- [हे राजन् !] इस प्रकार तीर्थके कृत्य सम्पन्न करते हुए हिरण्यकशिपुपुत्र प्रह्लादको अपने समक्ष एक विशाल छायासम्पन्न वटवृक्ष दिखायी पड़ा ॥ … Read more

Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 8(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धःअथाष्टमोऽध्यायःव्यासजीद्वारा राजा जनमेजयको प्रह्लादकी कथा सुनाना और इस प्रसंगमें च्यवनऋषिके पाताललोक जानेका वर्णन)

Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 8(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धःअथाष्टमोऽध्यायःव्यासजीद्वारा राजा जनमेजयको प्रह्लादकी कथा सुनाना और इस प्रसंगमें च्यवनऋषिके पाताललोक जानेका वर्णन) [अथाष्टमोऽध्यायः]   :-सूतजी बोले- परीक्षित्-पुत्र राजा जनमेजयके यह पूछनेपर सत्यवतीसुत विप्र व्यासजीने विस्तारपूर्वक सारा वृत्तान्त बताया ॥ १ ॥   धर्मपरायण राजा जनमेजय भी उत्तरापुत्र अपने पिता परीक्षित्की कुत्सित चेष्टाको सोच-सोचकर अत्यन्त दुःखी हो … Read more

Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 7(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धःसप्तमोऽध्यायःअप्सराओंके प्रस्तावसे नारायणके मनमें ऊहापोह और नरका उन्हें समझाना तथा अहंकारके कारण प्रह्लादके साथ हुए युद्धका स्मरण कराना)

Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 7(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धःसप्तमोऽध्यायःअप्सराओंके प्रस्तावसे नारायणके मनमें ऊहापोह और नरका उन्हें समझाना तथा अहंकारके कारण प्रह्लादके साथ हुए युद्धका स्मरण कराना) [अथ सप्तमोऽध्यायः] :-व्यासजी बोले- उन देवांगनाओंका वचन सुनकर धर्मपुत्र प्रतापी नारायण अपने मनमें विचार करने लगे कि इस समय मुझे क्या करना चाहिये ? यदि मैं इस समय विषयभोगमें … Read more

Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 6(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धःषष्ठोऽध्यायःकामदेवद्वारा नर-नारायणके समीप वसन्त ऋतुकी सृष्टि, नारायणद्वारा उर्वशीकी उत्पत्ति, अप्सराओंद्वारा नारायणसे स्वयंको अंगीकार करनेकी प्रार्थना)

Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 6(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धःषष्ठोऽध्यायःकामदेवद्वारा नर-नारायणके समीप वसन्त ऋतुकी सृष्टि, नारायणद्वारा उर्वशीकी उत्पत्ति, अप्सराओंद्वारा नारायणसे स्वयंको अंगीकार करनेकी प्रार्थना)   [अथ षष्ठोऽध्यायः]  -व्यासजी बोले – सर्वप्रथम उस पर्वतश्रेष्ठ गन्ध- मादनपर वसन्त पहुँचा। उस पर्वतपर स्थित सभी वृक्ष पुष्पित हो गये और उनपर भ्रमरोंके समूह मँडराने लगे ॥ १ ॥ आम, मौलसिरी, … Read more

Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 5(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धःपञ्चमोऽध्यायःनर-नारायणकी तपस्यासे चिन्तित होकर इन्द्रका उनके पास जाना और मोहिनी माया प्रकट करना तथा उससे भी अप्रभावित रहनेपर कामदेव, वसन्त और अप्सराओंको भेजना)

Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 5(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धःपञ्चमोऽध्यायःनर-नारायणकी तपस्यासे चिन्तित होकर इन्द्रका उनके पास जाना और मोहिनी माया प्रकट करना तथा उससे भी अप्रभावित रहनेपर कामदेव, वसन्त और अप्सराओंको भेजना) [अथ पञ्चमोऽध्यायः] :-व्यासजी बोले- हे नृपोत्तम ! अब अधिक कहनेसे क्या लाभ ? इस संसारमें कहीं बिरला ही ऐसा कोई धर्मात्मा पुरुष होगा जो … Read more

Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 4(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धःचतुर्थोऽध्यायःव्यासजीद्वारा जनमेजयको मायाकी प्रबलता समझाना)

Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 4(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धःचतुर्थोऽध्यायःव्यासजीद्वारा जनमेजयको मायाकी प्रबलता समझाना) [अथ चतुर्थोऽध्यायः] :-राजा बोले- हे महाभाग ! इस आख्यानको सुनकर मैं बड़े आश्चर्यमें पड़ गया हूँ। हे महामते ! यह संसार पापका मूर्तरूप है। इसके बन्धनसे मनुष्य किस प्रकार मुक्त हो सकता है ? ॥ १ ॥ जब तीनों लोकोंका वैभव पास … Read more

Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 3(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धःतृतीयोऽध्यायःवसुदेव और देवकीके पूर्वजन्मकी कथा)

Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 3(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धःतृतीयोऽध्यायःवसुदेव और देवकीके पूर्वजन्मकी कथा) [अथ तृतीयोऽध्यायः] :-व्यासजी बोले – [हे राजन् !] भगवान् विष्णुके विभिन्न अवतार ग्रहण करने तथा इसी प्रकार सभी देवताओंके भी अंशावतार ग्रहण करनेके बहुतसे कारण हैं ॥ १॥ अब वसुदेव, देवकी तथा रोहिणीके अवतारोंका कारण यथार्थ रूपसे सुनिये ॥ २ ॥ एक … Read more

Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 2(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धःद्वितीयोऽध्यायःव्यासजीका जनमेजयको कर्मकी प्रधानता समझाना)

Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 2(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धःद्वितीयोऽध्यायःव्यासजीका जनमेजयको कर्मकी प्रधानता समझाना) [अथ द्वितीयोऽध्यायः] :-सूतजी बोले- हे मुनियो! ऐसा पूछे जानेपर पुराणवेत्ता, वाणीविशारद सत्यवती-पुत्र महर्षि व्यासने शान्त स्वभाववाले परीक्षित्-पुत्र जनमेजयसे उनके सन्देहोंको दूर करनेवाले वचन कहे – ॥ १३ ॥ व्यासजी बोले- हे राजन् ! इस विषयमें क्या कहा जाय। कर्मोंकी बड़ी गहन गति … Read more

Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 1(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धः अथ प्रथमोऽध्यायःवसुदेव, देवकी आदिके कष्टोंके कारणके सम्बन्धमें जनमेजयका प्रश्न)

॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥ ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ Devi bhagwat puran skandh 4 chapter 1(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण चतुर्थः स्कन्धः अथ प्रथमोऽध्यायःवसुदेव, देवकी आदिके कष्टोंके कारणके सम्बन्धमें जनमेजयका प्रश्न) [अथ प्रथमोऽध्यायः] :-जनमेजय बोले- हे वासवेय! हे मुनिवर ! हे सर्वज्ञाननिधे ! हे अनघ ! हमारे कुलकी वृद्धि करनेवाले हे स्वामिन् ! मैं [श्रीकृष्णके विषयमें] … Read more

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