चाणक्य नीति सत्रहवां अध्याय:Chanakya Niti chapter 17.

चाणक्य नीति सत्रहवां अध्याय:Chanakya Niti chapter 17. (सत्रहवां अध्याय) पुस्तकं प्रत्याधीतं नाधीतं गुरुसन्निधौ । सभामध्ये न शोभन्ते जारगर्भा इव स्त्रियः ।। अर्थ– वह विद्वान जिसने असंख्य किताबो का अध्ययन बिना सदगुरु के आशीर्वाद से कर लिया वह विद्वानों की सभा में एक सच्चे विद्वान के रूप में नहीं चमकता है. उसी प्रकार जिस प्रकार एक … Read more

चाणक्य नीति सोलहवां अध्याय:Chanakya Niti chapter 16.

चाणक्य नीति सोलहवां अध्याय:Chanakya Niti chapter 16. (अध्याय सोलहवां) जल्पन्ति सार्धमन्येन पश्यन्त्यन्यं सविभ्रमाः । हृदये चिन्तयन्तयन्यं न स्त्रीणामेकतो रतिः ।। अर्थ– स्त्री (यहाँ लम्पट स्त्री या पुरुष अभिप्रेत है) का ह्रदय पूर्ण नहीं है वह बटा हुआ है. जब वह एक आदमी से बात करती है तो दुसरे की ओर वासना से देखती है और … Read more

चाणक्य नीति पंद्रहवां अध्याय:Chanakya Niti chapter 15.

चाणक्य नीति पंद्रहवां अध्याय:Chanakya Niti chapter 15. (अध्याय पंद्रहवां) यस्य चितं द्रवीभूतं कृपया सर्वजन्तुषु । तस्य ज्ञानेन मोक्षेण किं जटाभस्मलेपनैः ।।१।। अर्थ– वह व्यक्ति जिसका ह्रदय हर प्राणी मात्र के प्रति करुणा से पिघलता है. उसे जरुरत क्या है किसी ज्ञान की, मुक्ति की, सर के ऊपर जटाजूट रखने की और अपने शारीर पर राख … Read more

चाणक्य नीति चौदहवां अध्याय:Chanakya Niti chapter 14.

चाणक्य नीति चौदहवां अध्याय:Chanakya Niti chapter 14. (अध्याय चौदहवां) आत्मापराधवृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम् । दारिद्र्य-रोग-दुःखानि बन्धनव्यसनानि च ।।१।। अर्थ– गरीबी, दुःख और एक बंदी का जीवन यह सब व्यक्ति के किए हुए पापो का ही फल है. Meaning– Poverty, disease, sorrow, imprisonment and other evils are the fruits borne by the tree of one’s own sins. … Read more

चाणक्य नीति तेरहवां अध्याय:-Chanakya Niti chapter 13.

चाणक्य नीति तेरहवां अध्याय:-Chanakya Niti chapter 13. (अध्याय तेरहवां ) मुहूर्त्तं माप जीवेच्च नरः शुक्लेण कर्मणा । न कल्पमापि कष्टेन लोकद्वयविरोधिना ।।१।। अर्थ– यदि आदमी एक पल के लिए भी जिए तो भी उस पल को वह शुभ कर्म करने में खर्च करे. एक कल्प तक जी कर कोई लाभ नहीं. दोनों लोक इस लोक … Read more

चाणक्य नीति बारहवां अध्याय:-Chanakya Niti chapter 12.

चाणक्य नीति बारहवां अध्याय:-Chanakya Niti chapter 12. (अध्याय  बारहवां) सानन्दं सदनं सुतास्तु सधियः कांता प्रियालापिनी इच्छापूर्तिधनं स्वयोषितिरतिः स्वाज्ञापराः सेवकाः । आतिथ्यं शिवपूजनं प्रतिदिनं मिष्टान्नपानं गृहे साधोः सुड्गमुपासते च सततं धन्यो गृहस्थाश्रमः ।।१।। अर्थ– वह गृहस्थ भगवान् की कृपा को पा चुका है जिसके घर में आनंददायी वातावरण है. जिसके बच्चे गुणी है. जिसकी पत्नी मधुर … Read more

चाणक्य नीति ग्यारहवां अध्याय:-Chanakya Niti chapter 11.

चाणक्य नीति ग्यारहवां अध्याय:-Chanakya Niti chapter 11. ( ग्यारहवां अध्याय) दातृत्वं प्रियवक्तृत्वं धीरत्वमुचितज्ञता । अभ्यासेन न लभ्यन्ते चत्वारः सहजा गुणाः ।।१।। अर्थ– उदारता, वचनों में मधुरता, साहस, आचरण में विवेक ये बाते कोई पा नहीं सकता ये मूल में होनी चाहिए. Meaning– Generosity, pleasing address, courage and propriety of conduct are not acquired, but are … Read more

चाणक्य नीति दसवां अध्याय:-Chanakya Niti chapter 10.

चाणक्य नीति दसवां अध्याय:-Chanakya Niti chapter 10. (दसवां अध्याय) अथ वृध्द चाणक्यस्योत्तरार्ध्दम् । धनहीनो न हीनश्च धनिकः स सुनिश्चयः । विद्यारत्नेन हीनो यः स हीनः सर्ववस्तुषु ।।१।। अर्थ– जिसके पास धन नहीं है वो गरीब नहीं है, वह तो असल में रहीस है, यदि उसके पास विद्या है. लेकिन जिसके पास विद्या नहीं है वह … Read more

चाणक्य नीति नवां अध्याय – Chanakya Niti chapter 9.

चाणक्य नीति नवां अध्याय – Chanakya Niti chapter 9. (आठवां अध्याय) मुक्तिमिच्छासि चेत्तात ! विषयान् विषवत्त्यज । क्षमाऽऽर्जवं दया शौचं सत्यं पीयूषवत्पिब ।।१।। अर्थ– तात, यदि तुम जन्म मरण के चक्र से मुक्त होना चाहते हो तो जिन विषयो के पीछे तुम इन्द्रियों की संतुष्टि के लिए भागते फिरते हो उन्हें ऐसे त्याग दो जैसे … Read more

चाणक्य नीति आठवां अध्याय – Chanakya Niti chapter 8.

चाणक्य नीति आठवां अध्याय – Chanakya Niti chapter 8. (आठवां अध्याय) अधमा धनमिइच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः । उत्तमा मानमिच्छन्ति मानो हि महतां धनम् ।।१।। अर्थ– नीच वर्ग के लोग दौलत चाहते है, मध्यम वर्ग के दौलत और इज्जत, लेकिन उच्च वर्ग के लोग सम्मान चाहते है क्यों की सम्मान ही उच्च लोगो की असली … Read more

error: Content is protected !!