अष्टावक्र गीता अध्याय 11- :-Ashtavakra geeta chapter 11.

अष्टावक्र गीता अध्याय 11- :-Ashtavakra geeta chapter 11.   (अध्याय11) अष्टावक्र उवाच – भावाभावविकारश्च स्वभावादिति निश्चयी। निर्विकारो गतक्लेशः सुखेनैवोपशाम्यति॥११- १॥ श्री अष्टावक्र कहते हैं – भाव(सृष्टि, स्थिति) और अभाव(प्रलय, मृत्यु) रूपी विकार स्वाभाविक हैं, ऐसा निश्चित रूप से जानने वाला विकाररहित, दुखरहित होकर सुख पूर्वक शांति को प्राप्त हो जाता है॥१॥ Sri Ashtavakra says – … Read more

अष्टावक्र गीता अध्याय 10- :-Ashtavakra geeta chapter 10.

अष्टावक्र गीताअध्याय 10- :-Ashtavakra geeta chapter 10.   (अध्याय10) अष्टावक्र उवाच – विहाय वैरिणं कामम- र्थं चानर्थसंकुलं। धर्ममप्येतयोर्हेतुं सर्वत्रानादरं कुरु॥१०- १॥ श्री अष्टावक्र कहते हैं – कामना और अनर्थों के समूह धन रूपी शत्रुओं को त्याग दो, इन दोनों के त्याग रूपी धर्म से युक्त होकर सर्वत्र विरक्त (उदासीन) हो जाओ॥१॥ Sri Ashtavakra says – … Read more

अष्टावक्र गीता नवां अध्याय- :-Ashtavakra geeta chapter 9.

अष्टावक्र गीता नवां अध्याय- :-Ashtavakra geeta chapter 9.   ( नवां अध्याय) अष्टावक्र उवाच – कृताकृते च द्वन्द्वानि कदा शान्तानि कस्य वा। एवं ज्ञात्वेह निर्वेदाद् भव त्यागपरोऽव्रती॥९- १॥ श्री अष्टावक्र कहते हैं – यह कार्य करने योग्य है अथवा न करने योग्य और ऐसे ही अन्य द्वंद्व (हाँ या न रूपी संशय) कब और किसके … Read more

अष्टावक्र गीता आठवाँ  अध्याय- :-Ashtavakra geeta in hindi chapter 8.

अष्टावक्र गीता आठवाँ  अध्याय- :-Ashtavakra geeta in hindi chapter 8.   (आठवाँ  अध्याय) अष्टावक्र उवाच – तदा बन्धो यदा चित्तं किन्चिद् वांछति शोचति। किंचिन् मुंचति गृण्हाति किंचिद् हृष्यति कुप्यति॥८-१॥   श्री अष्टावक्र कहते हैं – तब बंधन है जब मन इच्छा करता है, शोक करता है, कुछ त्याग करता है, कुछ ग्रहण करता है, कभी … Read more

अष्टावक्र गीता सातवां अध्याय- :-Ashtavakra geeta chapter 7.

अष्टावक्र गीता सातवां अध्याय- :-Ashtavakra geeta chapter 7. (अध्याय 7) जनक उवाच – मय्यनंतमहांभोधौ विश्वपोत इतस्ततः। भ्रमति स्वांतवातेन न ममास्त्यसहिष्णुता॥७- १॥ राजा जनक कहते हैं – मुझ अनंत महासागर में विश्व रूपी जहाज अपनी अन्तः वायु से इधर – उधर घूमता है पर इससे मुझमें विक्षोभ नहीं होता है॥१॥ King Janaka says: In infinite ocean … Read more

अष्टावक्र गीता छठवां अध्याय- :-Ashtavakra geeta chapter 6.

अष्टावक्र गीता छठवां अध्याय- :-Ashtavakra geeta chapter 6.   ( छठवां अध्याय) अष्टावक्र उवाच – आकाशवदनन्तोऽहं घटवत् प्राकृतं जगत्। इति ज्ञानं तथैतस्य न त्यागो न ग्रहो लयः॥६- १॥ अष्टावक्र कहते हैं – आकाश के समान मैं अनंत हूँ और यह जगत घड़े के समान महत्त्वहीन है, यह ज्ञान है। इसका न त्याग करना है और … Read more

अष्टावक्र गीता पांचवा अध्याय :-Ashtavakra geeta chapter 5.

अष्टावक्र गीता पांचवा अध्याय :-Ashtavakra geeta chapter 5.   (पांचवा अध्याय) अष्टावक्र उवाच – न ते संगोऽस्ति केनापि किं शुद्धस्त्यक्तुमिच्छसि। संघातविलयं कुर्वन्- नेवमेव लयं व्रज॥५- १॥ अष्टावक्र कहते हैं – तुम्हारा किसी से भी संयोग नहीं है, तुम शुद्ध हो, तुम क्या त्यागना चाहते हो, इस (अवास्तविक) सम्मिलन को समाप्त कर के ब्रह्म से योग … Read more

अष्टावक्र गीता चौथा अध्याय :-Ashtavakra geeta chapter 4.

अष्टावक्र गीता चौथा अध्याय :-Ashtavakra geeta chapter 4. (चौथा अध्याय) अष्टावक्र उवाच – हन्तात्मज्ञस्य धीरस्य खेलतो भोगलीलया। न हि संसारवाहीकै- र्मूढैः सह समानता॥४- १॥ अष्टावक्र कहते हैं – स्वयं को जानने वाला बुद्धिमान व्यक्ति इस संसार की परिस्थितियों को खेल की तरह लेता है, उसकी सांसारिक परिस्थितियों का बोझ (दबाव) लेने वाले मोहित व्यक्ति के … Read more

अष्टावक्र गीता तीसरा अध्याय :-Ashtavakra geeta chapter 3.

अष्टावक्र गीता तीसरा अध्याय :-Ashtavakra geeta chapter 3. (तीसरा अध्याय) अष्टावक्र उवाच – अविनाशिनमात्मानं एकं विज्ञाय तत्त्वतः। तवात्मज्ञानस्य धीरस्य कथमर्थार्जने रतिः॥३- १॥ अष्टावक्र कहते हैं – आत्मा को अविनाशी और एक जानो । उस आत्म-ज्ञान को प्राप्त कर, किसी बुद्धिमान व्यक्ति की रूचि धन अर्जित करने में कैसे हो सकती है॥१॥ Ashtavakra says – Know … Read more

अष्टावक्र गीता दूसरा अध्याय:-Ashtavakra geeta chapter 2.

अष्टावक्र गीता दूसरा अध्याय:-Ashtavakra geeta chapter 2. ||दूसरा अध्याय|| जनक उवाच – अहो निरंजनः शान्तो बोधोऽहं प्रकृतेः परः। एतावंतमहं कालं मोहेनैव विडम्बितः॥२-१॥ राजा जनक कहते हैं – आश्चर्य! मैं निष्कलंक, शांत, प्रकृति से परे, ज्ञान स्वरुप हूँ, इतने समय तक मैं मोह से संतप्त किया गया॥१॥ King Janaka says: Amazingly, I am flawless, peaceful, beyond … Read more

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