Bhagwat puran mahima : !! भागवत पुराण महात्म्य!!श्रीमद भागवत महापुराण हिंदी अर्थ सहित (Shrimad bhagwat puran In Hindi Meaning)
(स्वयं श्रीभगवान्के श्रीमुखसे ब्रह्माजीके प्रति कथित)
श्रीमद्भागवतं नाम पुराणं लोकविश्रुतम् ।
संस्कृत श्लोक: –
शृणुयाच्छ्रद्धया युक्तो मम सन्तोषकारणम् ।।१।।
लोकविख्यात श्रीमद्भागवत नामक पुराणका
प्रतिदिन श्रद्धायुक्त होकर श्रीमद भागवत पुराण श्रवण करना ,चाहिये यही मेरे संतोषका कारण है।
संस्कृत श्लोक: –
नित्यं भागवतं यस्तु पुराणं पठते नरः ।प्रत्यक्षरं भवेत्तस्य कपिलादानजं फलम् ।।२।।
जो मनुष्य प्रतिदिन भागवतपुराणका पाठ करता है,उसे एक-एक अक्षरके उच्चारणके साथ कपिला गौ दान देनेका पुण्य होता है।
संस्कृत श्लोक: –
श्लोकार्थं श्लोकपादं वा नित्यं भागवतोद्भवम् ।पठते शृणुयाद् यस्तु गोसहस्रफलं लभेत् ।।३।।
जो प्रतिदिन भागवतके आधे श्लोक या चौथाईश्लोकका पाठ अथवा श्रवण करता है,उसे एक हजार गोदानका फल मिलता है।
संस्कृत श्लोक: –
यः पठेत् प्रयतो नित्यं श्लोकं भागवतं सुत अष्टादशपुराणानां फलमाप्नोति मानवः ।।४।।
पुत्र ! जो प्रतिदिन पवित्रचित्त होकर भागवत के एक श्लोकका पाठ करता है, वह मनुष्य अठारह पुराणोंके पाठका फल पा लेता है।
संस्कृत श्लोक: –
नित्यं मम कथा यत्र तत्र तिष्ठन्ति वैष्णवाः ।कलिबाह्या नरास्ते वै येऽर्चयन्ति सदा मम ।।५।।
जहाँ नित्य मेरी कथा होती है, वहाँ विष्णुपार्षद प्रह्लाद आदि विद्यमान रहते हैं, जो मनुष्य सदा मेरे भागवतशास्त्रकी पूजा करते हैं, वे कलिके अधिकारसे अलग हैं, उनपर कलिका वश नहीं चलता ।
संस्कृत श्लोक: –
वैष्णवानां तु शास्त्राणि येऽर्चयन्ति गृहे नराःlसर्वपापविनिर्मुक्ता भवन्ति सुरवन्दिताः ।।६।।
जो मानव अपने घरमें वैष्णवशास्त्रोंकी पूजा करते हैं, वे सब पापोंसे मुक्त होकर देवताओं द्वारा वन्दित होते हैं।
संस्कृत श्लोक: –
येऽर्चयन्ति गृहे नित्यं शास्त्रं भागवतं कलौ ।आस्फोटयन्ति वल्गन्ति तेषां प्रीतो भवाम्यहम् ।।७।।
जो लोग कलियुगमें अपने घरके भीतर प्रतिदिन भागवतशास्त्रकी पूजा करते हैं,वे [कलिसे निडर होकर]ताल ठोंकते और उछलते-कूदते हैं, मैं उनपर बहुत प्रसन्न रहता हूँ।
संस्कृत श्लोक: –
यावद्दिनानि हे पुत्र शास्त्रं भागवतं गृहे ।तावत् पिबन्ति पितरः क्षीरं सर्पिर्मधूदकम् ।।८।।
पुत्र ! मनुष्य जितने दिनोंतक अपने घरमें भागवतशास्त्र रखता है, उतने समयतक उसके पितर दूध, घी, मधु और मीठा जल पीते हैं।
संस्कृत श्लोक: –
यच्छन्ति वैष्णवे भक्त्या शास्त्रं भागवतं हि ये! कल्पकोटिसहस्राणि मम लोके वसन्ति ते ।।९।।
जो लोग विष्णुभक्त पुरुषको भक्तिपूर्वक भागवतशास्त्र समर्पण करते हैं, वे हजारों करोड़ कल्पोंतक (अनन्तकालतक) मेरे वैकुण्ठधाममें वास करते हैं।
संस्कृत श्लोक: –
येऽर्चयन्ति सदा गेहे शास्त्रं भागवतं नराः ।प्रीणितास्तैश्च विबुधा यावदाभूतसंप्लवम् ।।१०।।
जो लोग सदा अपने घरमें भागवतशास्त्रका पूजन करते हैं, वे मानो एक कल्पतकके लिए सम्पूर्ण देवताओंको तृप्त कर देते हैं।
संस्कृत श्लोक: –
श्लोकार्थं श्लोकपादं वा वरं भागवतं गृहे ।शतशोऽथ सहखैश्च किमन्यैः शास्त्रसंग्रहैः ।।११।।
यदि अपने घरपर भागवतका आधा श्लोक या चौथाई श्लोक भी रहे, तो यह बहुत उत्तम बात है, उसे छोड़कर सैकड़ों और हजारों तरहके अन्य ग्रन्थोंके संग्रहसे भी क्या लाभ है?
संस्कृत श्लोक: –
न यस्य तिष्ठते शास्त्रं गृहे भागवतं कलौ । न तस्य पुनरावृत्तिर्याम्यपाशात् कदाचन ।।१२।।
कलियुगमें जिस मनुष्यके घरमें भागवतशास्त्र मौजूद नहीं है, उसको यमराजके पाशसे कभी छुटकारा नहीं मिलता ।
संस्कृत श्लोक: –
कथं स वैष्णवो ज्ञेयः शास्त्रं भागवतं कलौ ।गृहे न तिष्ठते यस्य श्वपचादधिको हि सः ।।१३।।
इस कलियुगमें जिसके घर भागवतशास्त्र मौजूद नहीं है, उसे कैसे वैष्णव समझा जाय? वह तो चाण्डालसे भी बढ़कर नीच है!
संस्कृत श्लोक: –
सर्वस्वेनापि लोकेश कर्तव्यः शास्त्रसंग्रहः ।वैष्णवस्तु सदा भक्त्या तुष्ट्यर्थं मम पुत्रक ।।१४।।
लोकेश ब्रह्मा ! पुत्र ! मनुष्यको सदा मुझे भक्ति-पूर्वक संतुष्ट करनेके लिये अपना सर्वस्व देकर भी वैष्णवशास्त्रोंका संग्रह करना चाहिये ।
संस्कृत श्लोक: –
यत्र यत्र भवेत् पुण्यं शास्त्रं भागवतं कलौ ।तत्र तत्र सदैवाहं भवामि त्रिदशैः सह ।।१५।।
कलियुगमें जहाँ-जहाँ पवित्र भागवतशास्त्र रहता है, वहाँ-वहाँ सदा ही मैं देवताओंके साथ उपस्थित रहता हूँ।
संस्कृत श्लोक: –
तत्र सर्वाणि तीर्थानि नदीनदसरांसि च ।यज्ञाः सप्तपुरी नित्यं पुण्याः सर्वे शिलोच्चयाः ।।१६।।
यही नहीं-वहाँ नदी, नद और सरोवररूपमें प्रसिद्ध सभी तीर्थ वास करते हैं; सम्पूर्ण यज्ञ, सात पुरियाँ और सभी पावन पर्वत वहाँ नित्य निवास करते हैं।
संस्कृत श्लोक: –
श्रोतव्यं मम शास्त्रं हि यशोधर्मजयार्थिना !पापक्षयार्थं लोकेश मोक्षार्थं धर्मबुद्धिना ।।१७।।
लोकेश! यश, धर्म और विजयके लिये तथा पापक्षय एवं मोक्षकी प्राप्तिके लिये धर्मात्मा मनुष्यको सदा ही मेरे भागवत शास्त्रका श्रवण करना चाहिये ।
संस्कृत श्लोक: –
श्रीमद्भागवतं पुण्यमायुरारोग्यपुष्टिदम् । पठनाच्छ्रवणाद् वापि सर्वपापैः प्रमुच्यते ।।१८।।
यह पावन पुराण श्रीमद्भागवत आयु,आरोग्य और पुष्टिको देनेवाला है; इसका पाठ अथवा श्रवण करनेसे मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है।
संस्कृत श्लोक: –
न शृण्वन्ति न हृष्यन्ति श्रीमद्भागवतं परम् ।सत्यं सत्यं हि लोकेश तेषां स्वामी सदा यमः ।।१९।।
लोकेश ! जो इस परम उत्तम भागवतको न तो सुनते हैं और न सुनकर प्रसन्न ही होते हैं,उनके स्वामी सदा यमराज ही हैं- वे सदा यमराजके ही वशमें रहते हैं- यह मैं सत्य-सत्य कह रहा हूँ।
संस्कृत श्लोक: –
न गच्छति यदा मर्त्यः श्रोतुं भागवतं सुत ।एकादश्यां विशेषेण नास्ति पापरतस्ततः ।।२०।।
पुत्र ! जो मनुष्य सदा ही- विशेषतः एकादशीको भागवत सुनने नहीं जाता, उससे बढ़कर पापी कोई नहीं है।
संस्कृत श्लोक: –
श्लोकं भागवतं चापि श्लोकार्थं पादमेव वा ।लिखितं तिष्ठते यस्य गृहे तस्य वसाम्यहम् ।।२१।।
जिसके घरमें एक श्लोक, आधा श्लोक अथवा श्लोकका एक ही चरण लिखा रहता है, उसके घरमें मैं निवास करता हूँ।
संस्कृत श्लोक: –
सर्वाश्रमाभिगमनं सर्वतीर्थावगाहनम् ।न तथा पावनं नृणां श्रीमद्भागवतं यथा ।।२२।।
मनुष्यके लिये सम्पूर्ण पुण्य-आश्रमोंकी यात्रा या सम्पूर्ण तीर्थोंमें स्नान करना भी वैसा पवित्रकारक नहीं है, जैसा श्रीमद्भागवत है।
संस्कृत श्लोक: –
यत्र यत्र चतुर्वक्त्र श्रीमद्भागवतं भवेत् ।गच्छामि तत्र तत्राहं गौर्यथा सुतवत्सला ।।२३।।
चतुर्मुख ! जहाँ-जहाँ भागवतकी कथा होती है, वहाँ-वहाँ मैं उसी प्रकार जाता हूँ, जैसे पुत्रवत्सला गौ अपने बछड़ेके पीछे-पीछे जाती है।
संस्कृत श्लोक: –
मत्कथावाचकं नित्यं मत्कथाश्रवणे रतम् ।मत्कथाप्रीतमनसं नाहं त्यक्ष्यामि तं नरम् ।। २४।।
जो मेरी कथा कहता है, जो सदा उसे सुननेमें लगा रहता है तथा जो मेरी कथासे मन-सुननेमें प्रसन्न होता है, उस मनुष्यका मैं कभी त्याग नहीं करता ।
संस्कृत श्लोक: –
श्रीमद्भागवतं पुण्यं दृष्ट्वा नोत्तिष्ठते हि यः ।सांवत्सरं तस्य पुण्यं विलयं याति पुत्रक ।।२५।।
पुत्र ! जो परम पुण्यमय श्रीमद्भागवतशास्त्रको देखकर अपने आसनसे उठकर खड़ा नहीं हो जाता, उसका एक वर्षका पुण्य नष्ट हो जाता है।
संस्कृत श्लोक: –
श्रीमद्भागवतं दृष्ट्वा प्रत्युथानाभिवादनैः ।सम्मानयेत तं दृष्ट्वा भवेत् प्रीतिर्ममातुला ।।२६।।
जो श्रीमद्भागवतपुराणको देखकर खड़ा होने और प्रणाम करने आदिके द्वारा उसका सम्मान करता है, उस मनुष्यको देखकर मुझे अनुपम आनन्द मिलता है।
संस्कृत श्लोक: –
दृष्ट्वा भागवतं दूरात् प्रक्रमेत् सम्मुखं हि यः ।पदे पदेऽश्वमेधस्य फलं प्राप्नोत्यसंशयम् ।।२७।।
जो श्रीमद्भागवतको दूरसे ही देखकर उसके सम्मुख जाता है, वह एक-एक पगपर अश्वमेध यज्ञके पुण्यको प्राप्त करता है- इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
संस्कृत श्लोक: –
उत्थाय प्रणमेद् यो वै श्रीमद्भागवतं नरः ।धनपुत्रांस्तथा दारान् भक्तिं च प्रददाम्यहम् ।।२८।।
जो मानव खड़ा होकर श्रीमद्भागवतको प्रणाम करता है, उसे मैं धन, स्त्री, पुत्र और अपनी भक्ति प्रदान करता हूँ।
संस्कृत श्लोक: –
महाराजोपचारैस्तु श्रीमद्भागवतं सुत ।शृण्वन्ति ये नरा भक्त्या तेषां वश्यो भवाम्यहम् ।।२९।।
हे पुत्र ! जो लोग महाराजोचित सामग्रियोंसे युक्त होकर भक्तिपूर्वक श्रीमद्भागवतकी कथा सुनते हैं, मैं उनके वशीभूत हो जाता हूँ।
संस्कृत श्लोक: –
ममोत्सवेषु सर्वेषु श्रीमद्भागवतं परम् ।शृण्वन्ति ये नरा भक्त्या मम प्रीत्यै च सुव्रत ।।३०।।वस्त्रालङ्करणैः पुष्पैर्धूपदीपोपहारकैः ।वशीकृतो ह्यहं तैश्च सत्स्त्रिया सत्पतिर्यथा ।।३१।।
सुव्रत ! जो लोग मेरे पर्वोंसे सम्बन्ध रखनेवाले सभी उत्सवोंमें मेरी प्रसन्नताके लिये वस्त्र,आभूषण, पुष्प, धूप और दीप आदि उपहार अर्पण करते हुए परम उत्तम श्रीमद्भागवतपुराणका भक्तिपूर्वक श्रवण करते हैं, वे मुझे उसी प्रकार अपने वशमें कर लेते हैं, जैसे पतिव्रता स्त्री अपने साधुस्वभाववाले पतिको वशमें कर लेती है। (स्कन्दपुराण, विष्णुखण्ड, मार्गशीर्षमाहात्म्य अ० १६)
संस्कृत श्लोक: –
यं प्रव्रजन्तमनुपेतमपेतकृत्यं द्वैपायनो विरहकातर आजुहाव ।पुत्रेति तन्मयतया तरवोऽभिनेदु- स्तं सर्वभूतहृदयं मुनिमानतोऽस्मि ।।(१।२।२)
जिस समय श्रीशुकदेवजीका यज्ञोपवीत-संस्कार भी नहीं हुआ था,सुतरां लौकिक- वैदिक कर्मोंके अनुष्ठानका अवसर भी नहीं आया था,उन्हें अकेले ही संन्यास लेनेके उद्देश्यसे जाते देखकर उनके पिता व्यासजी विरहसे कातर होकर पुकारने लगे- ‘बेटा! बेटा !’ उस समय तन्मय होनेके कारण श्रीशुकदेवजीकी ओरसे वृक्षोंने उत्तर दिया। ऐसे, सबके हृदयमें विराजमान श्रीशुकदेव मुनिको मैं नमस्कार करता हूँ।
संस्कृत श्लोक: –
यः स्वानुभावमखिलश्रुतिसारमेक- मध्यात्मदीपमतितितीर्षतां तमोऽन्धम् ।संसारिणां करुणयाऽऽह पुराणगुह्यं तं व्याससूनुमुपयामि गुरुं मुनीनाम् ।।(१।२।३)
यह श्रीमद्भागवत अत्यन्त गोपनीय रहस्यात्मक पुराण है।यह भगवत्स्वरूपका अनुभव करानेवाला और समस्त वेदोंका सार है।संसारमें फँसे हुए जो लोग इस घोर अज्ञानान्धकारसे पार जाना चाहते हैं,उनके लिये आध्यात्मिक तत्त्वोंको प्रकाशित करनेवाला यह एक अद्वितीय दीपक है, वास्तवमें उन्हींपर करुणा करके बड़े-बड़े मुनियोंके आचार्य श्रीशुकदेवजीने इसका वर्णन किया है। मैं उनकी शरण ग्रहण करता हूँ।
संस्कृत श्लोक: –
स्वसुखनिभृतचेतास्तद्व्युदस्तान्यभावो!ऽप्यजितरुचिरलीलाकृष्टसारस्तदीयम् ।व्यतनुत कृपया यस्तत्त्वदीपं पुराणं तमखिलवृजिनघ्नं व्याससूनुं नतोऽस्मि ।।(१२।१२।६८)
श्रीशुकदेवजी महाराज अपने आत्मानन्दमें ही निमग्न थे।इस अखण्ड अद्वैत स्थितिसे उनकी भेददृष्टि सर्वथा निवृत्त हो चुकी थी।फिर भी मुरलीमनोहर श्यामसुन्दरकी मधुमयी, मंगलमयी मनोहारिणी लीलाओंने उनकी वृत्तियोंको अपनी ओर आकर्षित कर लिया और उन्होंने जगत्के प्राणियोंपर कृपा करके भगवत्तत्त्वको प्रकाशित करनेवाले इस महापुराणका विस्तार किया।
मैं उन्हीं सर्वपापहारी व्यासनन्दन भगवान् श्रीशुकदेवजीके चरणोंमें नमस्कार करता हूँ !श्रीमद्भागवतकी महिमा मैं क्या लिखूँ? उसके आदिके तीन श्लोकोंमें जो महिमा कह दी गयी है, उसके बराबर कौन कह सकता है?उन तीनों श्लोकोंको कितनी ही बार पढ़ चुकनेपर भी जब उनकास्मरण होता है, मनमें अद्भुत भाव उदित होते हैं। कोई अनुवाद
उन श्लोकोंकी गम्भीरता और मधुरताको पा नहीं सकता।
उन तीनों श्लोकोंसे मनको निर्मल करके फिर इस प्रकार भगवान्का ध्यान कीजिये –
संस्कृत श्लोक: –
ध्यायतश्चरणाम्भोजं भावनिर्जितचेतसा ।
औत्कण्ठ्याश्रुकलाक्षस्य हृद्यासीन्मे शनैर्हरिः ।।
प्रेमातिभरनिर्भिन्नपुलकाङ्गोऽतिनिर्वृतः ।
आनन्दसम्प्लवे लीनो नापश्यमुभयं मुने ।।
रूपं भगवतो यत्तन्मनः कान्तं शुचापहम् ।
अपश्यन् सहसोत्तस्थे वैक्लव्याद् दुर्मना इव ।।
मुझको श्रीमद्भागवतमें अत्यन्त प्रेम है।मेरा विश्वास और अनुभव है कि इसके पढ़नेऔर सुननेसे मनुष्यको ईश्वरका सच्चा ज्ञान प्राप्त
होता है और उनके चरणकमलोंमें अचल भक्ति होती है।इसके पढ़नेसे मनुष्यको दृढ़ निश्चय हो जाता है किइस संसारको रचने और पालन करनेवाली कोई सर्वव्यापक शक्ति है-
एक अनन्त त्रिकाल सच, चेतन शक्ति दिखात सिरजत,पालत, हरत, जग, महिमा बरनि न जात ।। इसी एक शक्तिकोलोग ईश्वर, ब्रह्म, परमात्मा इत्यादि अनेक नामोंसे पुकारते हैं।
भागवतके पहले ही श्लोकमें वेदव्यासजीने ईश्वरके स्वरूपका वर्णनकिया है कि जिससे इस संसारकी सृष्टि, पालन और संहार होते हैं,
जो त्रिकालमें सत्य है- अर्थात् जो सदा रहा भी, है भी और रहेगाभी और जो अपने प्रकाशसे अन्धकारको सदा दूर रखता है, उसपरम सत्यका हम ध्यान करते हैं। उसी स्थानमें श्रीमद्भागवतका
स्वरूप भी इस प्रकारसे संक्षेपमें वर्णित है कि इस भागवतमें- जोदूसरोंकी बढ़ती देखकर डाह नहीं करते, ऐसे साधुजनोंका सब प्रकारकेस्वार्थसे रहित परम धर्म और वह जाननेके योग्य ज्ञान वर्णित है जो
वास्तवमें सब कल्याणका देनेवाला और आधिभौतिक, आधिदैविकऔर आध्यात्मिक-इन तीनों प्रकारके तापोंको मिटानेवाला है।और ग्रन्थोंसे क्या, जिन सुकृतियोंने पुण्यके कर्म कर रखे हैं
और जो श्रद्धासे भागवतको पढ़ते या सुनते हैं, वे इसका सेवनकरनेके समयसे ही अपनी भक्तिसे ईश्वरको अपने हृदयमेंअविचलरूपसे स्थापित कर लेते हैं। ईश्वरका ज्ञान और उनमेंभक्तिका परम साधन-ये दो पदार्थ जब किसी प्राणीको प्राप्त हो
गये तो कौन-सा पदार्थ रह गया, जिसके लिये मनुष्य कामना करेऔर ये दोनों पदार्थ श्रीमद्भागवतसे पूरी मात्रामें प्राप्त होते हैं।इसीलिये यह पवित्र ग्रन्थ मनुष्यमात्रका उपकारी है, जबतक मनुष्य
भागवतको पढ़े नहीं और उसकी इसमें श्रद्धा न हो, तबतक वहसमझ नहीं सकता कि ज्ञान-भक्ति-वैराग्यका यह कितना विशाल समुद्र है।
भागवतके पढ़नेसे उसको यह विमल ज्ञान हो जाता है कि एक ही परमात्माप्राणी-प्राणीमें बैठा हुआ है और जब उसको यह ज्ञान हो जाता है, तब वहअधर्म करनेका मन नहीं करता; क्योंकि दूसरोंको चोट पहुँचाना अपनेको
चोट पहुँचानेके समान हो जाता है। इसका ज्ञान होनेसे मनुष्य सत्य धर्ममेंस्थिर हो जाता है, स्वभावहीसे दया-धर्मका पालन करने लगता है और किसी
अहिंसक प्राणीके ऊपर वार करनेकी इच्छा नहीं करता। मनुष्योंमें परस्पर प्रेमऔर प्राणिमात्रके प्रति दयाका भाव स्थापित करनेके लिये इससे बढ़कर कोई
साधन नहीं। वर्तमान समयमें, जब संसारके बहुत अधिक भागोंमें भयंकर युद्धछिड़ा हुआ है, मनुष्यमात्रको इस पवित्र धर्मका उपदेश अत्यन्त कल्याणकारी होगा।
जो भगवद्भक्त हैं और श्रीमद्भागवतके महत्त्वको जानते हैं, उनका यह कर्तव्य हैकि मनुष्यके लोक और परलोक दोनोंके बनानेवाले इस पवित्र ग्रन्थका सब देशोंकी
भाषाओंमें अनुवाद कर इसका प्रचार करें!