गरुडपुराण-श्रवणका फल:-benifit of garud puran.

(गरुडपुराण-श्रवणका फल)

(Benifit of garud puran)

श्रीभगवानुवाच:

इत्याख्यातं मया  तार्थ्य सर्वमेवौर्ध्वदैहिकम् । दशाहाभ्यन्तरे श्रुत्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ १ ॥पितृमुक्तिप्रदायकम् । पुत्रवाञ्छितदं चैव परत्रेह च सुखप्रदम् ॥ २ ॥

ये नास्तिकनराधमाः । तेषां जलमपेयं स्यात् सुरातुल्यं न संशयः ॥ ३ ॥ इदं चामुष्मिकं कर्म इदं कर्म न कुर्वन्ति देवताः पितरश्चैव नैव पश्यन्ति तद्गृहम् । भवन्ति तेषां कोपेन पुत्राः पौत्राश्च दुर्गताः ॥ ४ ॥

ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शूद्राश्चैवेतरेऽपि च । ते चाण्डालसमा ज्ञेयाः सर्वे प्रेतक्रियां विना ॥ ५ ॥

 

:-श्रीभगवान्ने कहा- हे तार्थ्य! इस प्रकार मैंने और्ध्वदैहिक कृत्योंके विषयमें सब कुछ कह दिया। (मरणाशौचमें) दस दिनके अंदर इसे सुनकर व्यक्ति सभी पापोंसे मुक्त हो जाता है ॥ १ ॥ यह परलोकसम्बन्धी कर्म पितरोंको मुक्ति प्रदान करनेवाला है और परलोकमें तथा इस लोकमें भी पुत्रको वांछित फल देकर सुख प्रदान करनेवाला है ॥ २ ॥ जो नास्तिक अधम व्यक्ति प्रेतका यह और्ध्वदैहिक कर्म नहीं करते, उनका जल सुराके समान अपेय है, इसमें कोई संशय नहीं ॥ ३ ॥ देवता और पितृगण उसके घरकी ओर नहीं देखते (अर्थात् दोनोंकी ही कृपादृष्टि उनपर नहीं होती) और उनके (पितरोंके) कोपसे पुत्र-पौत्रादिकी भी दुर्गति होती है ॥ ४॥ प्रेतक्रियाके बिना ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और इतरजनोंको भी चाण्डालके समान जानना चाहिये ॥ ५॥

प्रेतकल्पमिदं पुण्यं शृणोति श्रावयेच्च यः । उभौ तौ पापनिर्मुक्तौ दुर्गतिं नैव गच्छतः ॥ ६ ॥ मातापित्रोश्च मरणे सौपर्णं शृणुते तु यः । पितरौ मुक्तिमापन्नौ सुतः संततिमान् भवेत् ॥ ७ ॥ न श्रुतं गारुडं येन गयाश्राद्धं च नो कृतम् । वृषोत्सर्गः कृतो नैव न च मासिकवार्षिके ॥ ८ ॥ स कथं कथ्यते पुत्रः कथं मुच्येत् ऋणत्रयात् । मातरं पितरं चैव कथं तारयितुं क्षमः ॥ ९ ॥ तस्मात् सर्वप्रयत्नेन श्रोतव्यं गारुडं किल । धर्मार्थकाममोक्षाणां दायकं दुःखनाशनम् ॥ १०॥ पुराणं गारुडं पुण्यं पवित्रं पापनाशनम् । शृण्वतां कामनापूरं श्रोतव्यं सर्वदैव हि ॥ ११॥ ब्राह्मणो लभते विद्यां क्षत्रियः पृथिवीं लभेत् । वैश्यो धनिकतामेति शूद्रः शुद्धयति पातकात् ॥ १२ ॥

जो इस पुण्यप्रद प्रेतकल्पको सुनता और सुनाता है- वे दोनों ही पापसे मुक्त होकर दुर्गतिको नहीं प्राप्त होते हैं ॥ ६ ॥ माता और पिताके मरणमें जो पुत्र गरुडपुराण सुनता है, उसके माता-पिताकी मुक्ति होती है और पुत्रको संततिकी प्राप्ति होती है ॥ ७ ॥ जिस पुत्रने (माता-पिताकी मृत्यु होनेके अनन्तर) गरुडपुराणका श्रवण नहीं किया, गयाश्राद्ध नहीं किया, वृषोत्सर्ग नहीं किया, मासिक तथा वार्षिक श्राद्ध नहीं किया, वह कैसे पुत्र कहा जा सकता है और ऋणत्रयसे उसे कैसे मुक्ति प्राप्त हो सकती है और वह पुत्र माता-पिताको तारनेमें कैसे समर्थ हो सकता है ? ॥ ८-९ ॥ इसलिये सभी प्रकारके प्रयत्नोंको करके धर्म, अर्थ, काम तथा  मोक्षरूप पुरुषार्थचतुष्टयको देनेवाले तथा सर्वविध दुःखका विनाश करनेवाले गरुडपुराणको अवश्य सुनना चाहिये ॥ १० ॥ यह गरुडपुराण पुण्यप्रद, पवित्र तथा पापनाशक है, सुननेवालोंकी कामनाओंको पूर्ण करनेवाला है, अतः सदा ही इसे सुनना चाहिये ॥ ११ ॥ इस पुराणको सुनकर ब्राह्मण विद्या प्राप्त करता है, क्षत्रिय पृथिवी प्राप्त करता है, वैश्य धनाढ्य होता है और शूद्र पातकोंसे शुद्ध हो जाता है ॥ १२॥

श्रुत्वा दानानि देयानि वाचकायाखिलानि च । पूर्वोक्तशयनादीनि नान्यथा सफलं भवेत् ॥ १३॥ पुराणं पूजयेत् पूर्वं वाचकं तदनन्तरम् । वस्त्रालङ्कारगोदानैर्दक्षिणाभिश्च सादरम् ॥ १४॥ अन्नैश्च हेमदानैश्च भूमिदानैश्च भूरिभिः । पूजयेद्वाचकं भक्त्या बहुपुण्यफलाप्तये ॥ १५ ॥ वाचकस्यार्चनेनैव पूजितोऽहं न संशयः । सन्तुष्टे तुष्टितां यामि वाचके नात्र संशयः ॥ १६ ॥ ॥ इति गरुडपुराणश्रवणफलं समाप्तम् ॥ ॥ इति श्रीगरुडपुराणं समाप्तम् ॥

इस गरुडपुराणको सुनकर सुनानेवाले आचार्यको पूर्वोक्त शय्यादानादि सम्पूर्ण दान देने चाहिये अन्यथा इसका श्रवण फलदायक नहीं होता ॥ १३ ॥ पहले पुराणकी पूजा करनी चाहिये तदनन्तर वस्त्र, अलंकार, गोदान और दक्षिणा आदि देकर आदरपूर्वक वाचककी पूजा करनी चाहिये ॥ १४ ॥ प्रचुर पुण्यफलकी प्राप्तिके लिये प्रभूत अन्न, स्वर्ण और भूमिदानके द्वारा श्रद्धाभक्तिपूर्वक वाचककी पूजा करनी चाहिये। वाचककी पूजासे ही मेरी पूजा हो जाती है, इसमें संशय नहीं और वाचकके संतुष्ट होनेपर मैं भी संतुष्ट हो जाता हूँ, इसमें भी कोई संशय नहीं ॥ १५-१६ ॥

॥ इस प्रकार गरुडपुराणके श्रवणका फल सम्पूर्ण हुआ ॥ ॥ इस प्रकार गरुडपुराण सारोद्धार सम्पूर्ण हुआ ॥


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