चाणक्य नीति पहला अध्याय:-chanakya niti chapter 1.

चाणक्य नीति पहला अध्याय1:-chanakya niti chapter 1. (पहला अध्याय) प्रणम्य शिरसा विष्णु प्रैलोक्याधिपति प्रभुम् । नानाशास्त्रोद्धृतं वक्ष्ये राजनीतिसमुच्चयम् ।।१।। अर्थ– तीनो लोको के स्वामी सर्वशक्तिमान भगवान विष्णु को नमन करते हुए मै एक राज्य के लिए नीति शास्त्र के सिद्धांतों को कहता हूँ। मै यहसूत्र अनेक शाखों का आधार ले कर कह रहा हूँ। Meaning: … Read more

विदुर नीति  आठवाँ अध्याय :-Vidur niti chapter 8.

विदुर नीति  आठवाँ अध्याय :-Vidur niti chapter 8. (आठवां अध्याय ) योऽभ्यर्थितः सद्भिरसज्जमानः करोत्यर्थं शक्तिमहापयित्वा। क्षिप्रं यशस्तं समुपैति सन्तमलं प्रसन्ना हि सुखाय सन्तः ॥ १ ॥ विदुरजी कहते हैं-जो सज्जन पुरुषों से आदर पाकर आसक्तिरहित हो अपनी शक्ति के अनुसार अर्थ-साधन करता रहता है, उस श्रेष्ठ पुरुष को शीघ्र ही सुयश की प्राप्ति होती है, … Read more

विदुर नीति  सातवां अध्याय :-Vidur niti chapter 7.

विदुर नीति  सातवां अध्याय :-Vidur niti chapter 7. (सातवां अध्याय) धृतराष्ट्र उवाच। अनीश्वरोऽयं पुरुषो भवाभवे सूत्रप्रोता दारुमयीव योषा। धात्रा हि दिष्टस्य वशे किलायं तस्माद्वद त्वं श्रवणे घृतोऽहम् ॥ १ ॥ धृतराष्ट्र ने कहा-विदुर ! यह पुरुष ऐश्वर्य की प्राप्ति और नाश में स्वतनत्र नहीं है । अरह्माने धागे से बँधी हुई कठपूतली की भाँति इसे … Read more

विदुर नीति  छठवाँ अध्याय :-Vidur niti chapter 6.

विदुर नीति  छठवाँ अध्याय :-Vidur niti chapter 6. (छठवाँ अध्याय) ऊर्ध्वं प्राणा ह्युत्क्रामन्ति यूनः स्थविर आयति । प्रत्युत्थानाभिवादाभ्यां पुनस्तान्पतिपद्यते ॥ १ ॥ विदुरजी कहते हैं- समय नवयुवक व्यक्ति के प्राण ऊपर को उठने लगते हैं, फिर जब वह वृद्ध के स्वागत में उठकर खड़ा होता और प्रणाम करता है, तो पुनः प्राणो को वास्तविक स्थिति … Read more

विदुर नीति  पाँचवाँ अध्याय :-Vidur niti chapter 5.

विदुर नीति  पाँचवाँ अध्याय :-Vidur niti chapter 5. विदुर उवाच । सप्तदशेमान्राजेन्द्र मनुः स्वायम्भुवोऽब्रवीत् । वैचित्रवीर्य पुरुषानाकाशं मुष्टिभिर्घ्नतः ॥ १ ॥ तानेविन्द्रस्य हि धनुरनाम्यं नमतोऽब्रवीत् । अथो मरीचिनः पादाननाम्यान्नमतस्तथा ॥ २ ॥ यश्चाशिष्यं शासति यश् च कुप्यते यश्चातिवेलं भजते द्विषन्तम् । स्त्रियश्च योऽरक्षति भद्रमस्तु ते यश्चायाच्यं याचति यश् च कत्थते ॥ ३ ॥ यश्चाभिजातः प्रकरोत्यकार्यं … Read more

विदुर नीति चौथा अध्याय :-Vidur niti chapter 4.

विदुर नीति चौथा अध्याय :-Vidur niti chapter 4.   (चौथा अध्याय ) विदुर उवाच। अत्रैवोदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम्। आत्रेयस्य च संवादं साध्यानां चेति नः श्रुतम् ॥ १ ॥ विदुरजी कहते हैं- इस विषय में दरतात्रेय और साध्य देवताओं के संवाद रूप इस प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया करते हैं यह मेरा भी सुना हुआ है॥ १ ॥ … Read more

विदुर नीति तीसरा अध्याय :-Vidur niti chapter 3.

विदुर नीति तीसरा अध्याय :-Vidur niti chapter 3. ( तीसरा अध्याय )   धृतराष्ट्र उवाच । ब्रूहि भूयो महाबुद्धे धर्मार्थसहितं वचः । शृण्वतो नास्ति मे तृप्तिर्विचित्राणीह भाषसे ॥ १ ॥ धृतराष्ट्र ने कहा- महाबुद्धे । तुम पुनः धर्म और अर्थ से युक्त बातें कहो, इन्हें सुनकर मुझे तृप्ति नहों होतो । इस बिषय में तुम … Read more

विदुर नीति दूसरा अध्याय :-Vidur niti chapter 2.

विदुर नीति दूसरा अध्याय :-Vidur niti chapter 2. ( दूसरा अध्याय ) धृतराष्ट्र उवाच । जाग्रतो दह्यमानस्य यत्कार्यमनुपश्यसि । तद्ब्रूहि त्वं हि नस्तात धर्मार्थकुशलः शुचिः ॥ १ ॥ धृतराष्ट्र बोले- तात ! मैं चिन्ता से जलता हुआ अभी तक जाग रहा हूँ, तुम मेरे करने योग्य जो कार्य समझो, उसे बताओ; क्योंकि हम लोगों में … Read more

विदुर नीति पहला अध्याय :-Vidur niti chapter 1  .

विदुर नीति पहला अध्याय :-Vidur niti chapter 1  . (पहला अध्याय:) वैशंपायन उवाच । द्वाःस्थं प्राह महाप्राज्ञो धृतराष्ट्रो महीपतिः । विदुरं द्रष्टुमिच्छामि तमिहानय माचिरम् ॥ १ ॥ वैशम्पायनजी कहते हैं- [संजय के चले जाने पर] महाबुद्धिमान् राजा धृतराष्ट्र ने द्वारपाल से कहा- मैं विदुर से मिलना चाहता हूँ। उन्हें यहाँ शीघ्र बुला लाओ’॥ १ ॥ … Read more

अष्टावक्र गीता अध्याय 20 :-Ashtavakra geeta chapter 20.

अष्टावक्र गीता अध्याय 20 :-Ashtavakra geeta chapter 20. (अध्याय 20. ) जनक उवाच – क्व भूतानि क्व देहो वा क्वेन्द्रियाणि क्व वा मनः। क्व शून्यं क्व च नैराश्यं मत्स्वरूपे निरंजने॥२०-१॥ राजा जनक कहते हैं – मेरे निष्कलंक स्वरुप में पाँच महाभूत कहाँ हैं या शरीर कहाँ है और इन्द्रियाँ या मन कहाँ हैं, शून्य कहाँ … Read more

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