Ashtavakra geeta in hindi.अष्टावक्र गीता सम्पूर्ण हिंदी में: –

Ashtavakra geeta in hindi.अष्टावक्र गीता सम्पूर्ण हिंदी में: –

 

(अष्टावक्र गीता महात्म्य)

*Ashtavakra geeta in hindi*

 अष्टावक्र गीता (Ashtavakr Geeta) के श्लोकों मे गागर मे सागर भरने जैसा बताया गया है। लोक हित के लिए गीता बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रंथ है जिसे पढ़ना भी आवश्यक है।

हिन्दू धर्म मे श्रीमद भगवत गीता को सबसे पवित्र ग्रंथ माना जाता है। लेकिन कहा जाता है, कि महान विद्वान अष्टावक्र के द्वारा लिखी गयी गीता जिसे महागीता के नाम से भी संबोधित किया जाता है।  महागीता मे लिखे गए हर श्लोक मे बहुत ही महान बाते कम शब्दों मे बताई गयी है इसलिए मैं आपको सलाह देता हु आपको एक बार अष्टवक्र गीता का अध्ययन जरूर करना चाहिए।अष्टावक्र गीता, अद्वैत वेदान्त का एक अमूल्य ग्रंथ है. यह ऋषि अष्टावक्र और राजा जनक के बीच हुए संवाद के रूप में है. इस ग्रंथ में ज्ञान, वैराग्य, मुक्ति, और समाधिस्थ योगी की दशा का विस्तार से वर्णन है. अष्टावक्र गीता को भारतीय पौराणिक साहित्य का एक रत्न माना जाता है. यह ग्रंथ आध्यात्मिक ज्ञान का भंडार है और जीवन, मन, और ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने में मदद करता है.

(अष्टावक्र गीता के अध्याय)

नीचे दिये गए लिंक्स के माध्यम से आप अष्टावक्र गीता के सभी अध्याय आसानी से पढ़ सकते हैं।

Ashtavakra geeta in hindi

(1.) अष्टावक्र गीता पहला अध्याय”

(2.) अष्टावक्र गीता दूसरा अध्याय”

(3.) अष्टावक्र गीता तीसरा अध्याय”

(4.) अष्टावक्र गीता चौथा अध्याय ”

(5.) अष्टावक्र गीता पांचवा अध्याय ”

(6.) अष्टावक्र गीता छठवां अध्याय”

(7.) अष्टावक्र गीता सातवां अध्याय”

(8.) अष्टावक्र गीता आठवाँ  अध्याय”

(9.) अष्टावक्र गीता नवां अध्याय”

(10.) अष्टावक्र गीता दसवां अध्याय”

(11.) अष्टावक्र गीता ग्यारहवां अध्याय”

(12.) अष्टावक्र गीता बारहवाँ अध्याय”

(13.) अष्टावक्र गीता तेरहवाँ अध्याय”

(14.) अष्टावक्र गीता चौदहवाँ अध्याय” 

(15.) अष्टावक्र गीता पंद्रहवाँ अध्याय”

(16.) अष्टावक्र गीता सोलहवां अध्याय”

(17.) अष्टावक्र गीता सत्रहवाँ अध्याय”

(18.) अष्टावक्र गीता अध्याय अठारहवाँ भाग 1″

(18.) अष्टावक्र गीता अध्याय अठारहवाँ  भाग 2″

(19.) अष्टावक्र गीता उन्नीसवाँ अध्याय”

(20.) अष्टावक्र गीता बीसवाँ अध्याय”


Ashtavakra geeta

*Ashtavakra geeta in hindi*

 

जनक उवाच – कथं ज्ञानमवाप्नोति, कथं मुक्तिर्भविष्यति।

वैराग्य च कथं प्राप्तमेतद ब्रूहि मम प्रभो॥१-१॥

वयोवृद्ध राजा जनक, बालक अष्टावक्र से पूछते हैं – हे प्रभु, ज्ञान की प्राप्ति कैसे होती है, मुक्ति कैसे प्राप्त होती है, वैराग्य कैसे प्राप्त किया जाता है, ये सब मुझे बताएं॥१॥

Old king Janak asks the young Ashtavakra – How knowledge is attained, how liberation is attained and how non-attachment is attained, please tell me all this.॥1॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


अष्टावक्र उवाच – मुक्तिमिच्छसि चेत्तात्, विषयान विषवत्त्यज।
क्षमार्जवदयातोष, सत्यं पीयूषवद्भज॥१-२॥
श्री अष्टावक्र उत्तर देते हैं – यदि आप मुक्ति चाहते हैं तो अपने मन से विषयों (वस्तुओं के उपभोग की इच्छा) को विष की तरह त्याग दीजिये। क्षमा, सरलता, दया, संतोष तथा सत्य का अमृत की तरह सेवन कीजिये॥२॥

Sri Ashtavakra answers – If you wish to attain liberation, give up the passions (desires for sense objects) as poison. Practice forgiveness, simplicity, compassion, contentment and truth as nectar.॥2॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


न पृथ्वी न जलं नाग्निर्न वायुर्द्यौर्न वा भवान्।
एषां साक्षिणमात्मानं चिद्रूपं विद्धि मुक्तये॥१-३॥
आप न पृथ्वी हैं, न जल, न अग्नि, न वायु अथवा आकाश ही हैं। मुक्ति के लिए इन तत्त्वों के साक्षी, चैतन्यरूप आत्मा को जानिए॥३॥

You are neither earth, nor water, nor fire, nor air or space. To liberate, know the witness of all these as conscious self.॥3॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


यदि देहं पृथक् कृत्य चिति विश्राम्य तिष्ठसि।
अधुनैव सुखी शान्तो बन्धमुक्तो भविष्यसि॥१-४॥
यदि आप स्वयं को इस शरीर से अलग करके, चेतना में विश्राम करें तो तत्काल ही सुख, शांति और बंधन मुक्त अवस्था को प्राप्त होंगे॥४॥

If you detach yourself from the body and rest in consciousness, you will become content, peaceful and free from bondage immediately.॥4॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


न त्वं विप्रादिको वर्ण: नाश्रमी नाक्षगोचर:।
असङगोऽसि निराकारो विश्वसाक्षी सुखी भव॥१-५॥
आप ब्राह्मण आदि सभी जातियों अथवा ब्रह्मचर्य आदि सभी आश्रमों से परे हैं तथा आँखों से दिखाई न पड़ने वाले हैं। आप निर्लिप्त, निराकार और इस विश्व के साक्षी हैं, ऐसा जान कर सुखी हो जाएँ॥५॥

You do not belong to ‘Brahman’ or any other caste, you do not belong to ‘Celibate’ or any other stage, nor are you anything that the eyes can see. You are unattached, formless and witness of everything – so be happy.॥5॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


धर्माधर्मौ सुखं दुखं मानसानि न ते विभो।
न कर्तासि न भोक्तासि मुक्त एवासि सर्वदा॥१-६॥
धर्म, अधर्म, सुख, दुःख मस्तिष्क से जुड़ें हैं, सर्वव्यापक आप से नहीं। न आप करने वाले हैं और न भोगने वाले हैं, आप सदा मुक्त ही हैं॥६॥

Righteousness, unrighteousness, pleasure and pain are connected with the mind and not with the all-pervading you. You are neither the doer nor the reaper of the actions, so you are always almost free.॥6॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


एको द्रष्टासि सर्वस्य मुक्तप्रायोऽसि सर्वदा।
अयमेव हि ते बन्धो द्रष्टारं पश्यसीतरम्॥१-७॥
आप समस्त विश्व के एकमात्र दृष्टा हैं, सदा मुक्त ही हैं, आप का बंधन केवल इतना है कि आप दृष्टा किसी और को समझते हैं॥७॥

You are the solitary witness of all that is, almost always free. Your only bondage is understanding the seer to be someone else.॥7॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


अहं कर्तेत्यहंमान महाकृष्णाहिदंशितः।
नाहं कर्तेति विश्वासामृतं पीत्वा सुखं भव॥१-८॥
अहंकार रूपी महासर्प के प्रभाववश आप ‘मैं कर्ता हूँ’ ऐसा मान लेते हैं। ‘मैं कर्ता नहीं हूँ’, इस विश्वास रूपी अमृत को पीकर सुखी हो जाइये॥८॥

Ego poisons you to believe: “I am the doer”. Believe “I am not the doer”. Drink this nectar and be happy.॥8॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


एको विशुद्धबोधोऽहं इति निश्चयवह्निना।
प्रज्वाल्याज्ञानगहनं वीतशोकः सुखी भव॥१-९॥
मैं एक, विशुद्ध ज्ञान हूँ, इस निश्चय रूपी अग्नि से गहन अज्ञान वन को जला दें, इस प्रकार शोकरहित होकर सुखी हो जाएँ॥९॥

The resolution “I am single, pure knowledge” consumes even the dense ignorance like fire. Be beyond disappointments and be happy.॥9॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


यत्र विश्वमिदं भाति कल्पितं रज्जुसर्पवत्।
आनंदपरमानन्दः स बोधस्त्वं सुखं चर॥१-१०॥
जहाँ ये विश्व रस्सी में सर्प की तरह अवास्तविक लगे, उस आनंद, परम आनंद की अनुभूति करके सुख से रहें ॥१०॥

Feel the ecstasy, the supreme bliss where this world appears unreal like a snake in a rope, know this and move happily.॥10॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


मुक्ताभिमानी मुक्तो हि बद्धो बद्धाभिमान्यपि।
किवदन्तीह सत्येयं या मतिः सा गतिर्भवेत्॥१-११॥
स्वयं को मुक्त मानने वाला मुक्त ही है और बद्ध मानने वाला बंधा हुआ ही है, यह कहावत सत्य ही है कि जैसी बुद्धि होती है वैसी ही गति होती है॥११॥

If you think you are free you are free. If you think you are bound you are bound. It is rightly said: You become what you think.॥11॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


आत्मा साक्षी विभुः पूर्ण एको मुक्तश्चिदक्रियः।
असंगो निःस्पृहः शान्तो भ्रमात्संसारवानिव॥१-१२॥
आत्मा साक्षी, सर्वव्यापी, पूर्ण, एक, मुक्त, चेतन, अक्रिय, असंग, इच्छा रहित एवं शांत है। भ्रमवश ही ये सांसारिक प्रतीत होती है॥१२॥

The soul is witness, all-pervading, infinite, one, free, inert, neutral, desire-less and peaceful. Only due to illusion it appears worldly.॥12॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


कूटस्थं बोधमद्वैत- मात्मानं परिभावय।
आभासोऽहं भ्रमं मुक्त्वा भावं बाह्यमथान्तरम्॥१-१३॥
अपरिवर्तनीय, चेतन व अद्वैत आत्मा का चिंतन करें और ‘मैं’ के भ्रम रूपी आभास से मुक्त होकर, बाह्य विश्व की अपने अन्दर ही भावना करें॥१३॥

Meditate on unchanging, conscious and non-dual Self. Be free from the illusion of ‘I’ and think this external world as part of you.॥13॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


देहाभिमानपाशेन चिरं बद्धोऽसि पुत्रक।
बोधोऽहं ज्ञानखंगेन तन्निष्कृत्य सुखी भव॥१-१४॥
हे पुत्र! बहुत समय से आप ‘मैं शरीर हूँ’ इस भाव बंधन से बंधे हैं, स्वयं को अनुभव कर, ज्ञान रूपी तलवार से इस बंधन को काटकर सुखी हो जाएँ॥१४॥

O son, you have become habitual of thinking- “I am body” since long. Experience the Self and by this sword of knowledge cut that bondage and be happy.॥14॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


निःसंगो निष्क्रियोऽसि त्वं स्वप्रकाशो निरंजनः।
अयमेव हि ते बन्धः समाधिमनुतिष्ठति॥१-१५॥
आप असंग, अक्रिय, स्वयं-प्रकाशवान तथा सर्वथा-दोषमुक्त हैं। आपका ध्यान द्वारा मस्तिस्क को शांत रखने का प्रयत्न ही बंधन है॥१५॥

You are free, still, self-luminous, stainless. Trying to keep yourself peaceful by meditation is your bondage.॥15॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


त्वया व्याप्तमिदं विश्वं त्वयि प्रोतं यथार्थतः।
शुद्धबुद्धस्वरुपस्त्वं मा गमः क्षुद्रचित्तताम्॥१-१६॥
यह विश्व तुम्हारे द्वारा व्याप्त किया हुआ है, वास्तव में तुमने इसे व्याप्त किया हुआ है। तुम शुद्ध और ज्ञानस्वरुप हो, छोटेपन की भावना से ग्रस्त मत हो॥१६॥

You have pervaded this entire universe; really, you have pervaded it all. You are pure knowledge, don’t get disheartened.॥16॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


निरपेक्षो निर्विकारो निर्भरः शीतलाशयः।
अगाधबुद्धिरक्षुब्धो भव चिन्मात्रवासन:॥१-१७॥
आप इच्छारहित, विकाररहित, घन (ठोस), शीतलता के धाम, अगाध बुद्धिमान हैं, शांत होकर केवल चैतन्य की इच्छा वाले हो जाइये॥१७॥

You are desire-less, changeless, solid and abode to calmness, unfathomable intelligent. Be peaceful and desire nothing but consciousness.॥17॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


साकारमनृतं विद्धि निराकारं तु निश्चलं।
एतत्तत्त्वोपदेशेन न पुनर्भवसंभव:॥१-१८॥
आकार को असत्य जानकर निराकार को ही चिर स्थायी मानिये, इस तत्त्व को समझ लेने के बाद पुनः जन्म लेना संभव नहीं है॥१८॥

Know that form is unreal and only the formless is permanent. Once you know this, you will not take birth again.॥18॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


यथैवादर्शमध्यस्थे रूपेऽन्तः परितस्तु सः।
तथैवाऽस्मिन् शरीरेऽन्तः परितः परमेश्वरः॥१-१९॥
जिस प्रकार दर्पण में प्रतिबिंबित रूप उसके अन्दर भी है और बाहर भी, उसी प्रकार परमात्मा इस शरीर के भीतर भी निवास करता है और उसके बाहर भी॥१९॥

Just as form exists inside a mirror and outside it, Supreme Self exists both within and outside the body.॥19॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


एकं सर्वगतं व्योम बहिरन्तर्यथा घटे।
नित्यं निरन्तरं ब्रह्म सर्वभूतगणे तथा॥१-२०॥
जिस प्रकार एक ही आकाश पात्र के भीतर और बाहर व्याप्त है, उसी प्रकार शाश्वत और सतत परमात्मा समस्त प्राणियों में विद्यमान है॥२०॥

Just as the same space exists both inside and outside a jar, the eternal, continuous God exists in all.॥20॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


जनक उवाच – अहो निरंजनः शान्तो बोधोऽहं प्रकृतेः परः।

एतावंतमहं कालं मोहेनैव विडम्बितः॥२-१॥

राजा जनक कहते हैं – आश्चर्य! मैं निष्कलंक, शांत, प्रकृति से परे, ज्ञान स्वरुप हूँ, इतने समय तक मैं मोह से संतप्त किया गया॥१॥

King Janaka says: Amazingly, I am flawless, peaceful, beyond nature and of the form of knowledge.
It is ironical to be deluded all this time.॥1॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


यथा प्रकाशयाम्येको देहमेनो तथा जगत्।
अतो मम जगत्सर्वम- थवा न च किंचन॥२-२॥

जिस प्रकार मैं इस शरीर को प्रकाशित करता हूँ, उसी प्रकार इस विश्व को भी। अतः मैं यह समस्त विश्व ही हूँ अथवा कुछ भी नहीं॥२॥

As I illumine this body, so I illumine the world. Therefore, either the whole world is mine or nothing is.॥2॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


सशरीरमहो विश्वं परित्यज्य मयाऽधुना।
कुतश्चित् कौशलादेव परमात्मा विलोक्यते॥२-३॥

अब शरीर सहित इस विश्व को त्याग कर किसी कौशल द्वारा ही मेरे द्वारा परमात्मा का दर्शन किया जाता है॥३॥

Now abandoning this world along with the body, Lord is seen through some skill.॥3॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


यथा न तोयतो भिन्नास्- तरंगाः फेन बुदबुदाः।
आत्मनो न तथा भिन्नं विश्वमात्मविनिर्गतम् ॥२-४॥

जिस प्रकार पानी लहर, फेन और बुलबुलों से पृथक नहीं है उसी प्रकार आत्मा भी स्वयं से निकले इस विश्व से अलग नहीं है॥४॥

Just as waves, foam and bubbles are not different from water, similarly all this world which has emanated from self, is not different from self.॥4॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


तंतुमात्रो भवेदेव पटो यद्वद्विचारितः।
आत्मतन्मात्रमेवेदं तद्वद्विश्वं विचारितम्॥२-५॥

जिस प्रकार विचार करने पर वस्त्र तंतु (धागा) मात्र ही ज्ञात होता है, उसी प्रकार यह समस्त विश्व आत्मा मात्र ही है॥५॥

On reasoning, cloth is known to be just thread, similarly all this world is self only.॥5॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


यथैवेक्षुरसे क्लृप्ता तेन व्याप्तैव शर्करा।
तथा विश्वं मयि क्लृप्तं मया व्याप्तं निरन्तरम्॥२-६॥

जिस प्रकार गन्ने के रस से बनी शक्कर उससे ही व्याप्त होती है, उसी प्रकार यह विश्व मुझसे ही बना है और निरंतर मुझसे ही व्याप्त है॥६॥

Just as the sugar made from sugarcane juice has the same flavor, similarly this world is made out from me and is constantly pervaded by me.॥6॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


आत्माऽज्ञानाज्जगद्भाति आत्मज्ञानान्न भासते।
रज्जवज्ञानादहिर्भाति तज्ज्ञानाद्भासते न हि॥ २-७॥

आत्मा अज्ञानवश ही विश्व के रूप में दिखाई देती है, आत्म-ज्ञान होने पर यह विश्व दिखाई नहीं देता है। रस्सी अज्ञानवश सर्प जैसी दिखाई देती है, रस्सी का ज्ञान हो जाने पर सर्प दिखाई नहीं देता है॥७॥

Due to ignorance, self appears as the world; on realizing self it disappears. Due to oversight a rope appears as a snake and on correcting it, snake does not appear any longer.॥7॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


प्रकाशो मे निजं रूपं नातिरिक्तोऽस्म्यहं ततः।
यदा प्रकाशते विश्वं तदाऽहंभास एव हि॥ २-८॥

प्रकाश मेरा स्वरुप है, इसके अतिरिक्त मैं कुछ और नहीं हूँ। वह प्रकाश जैसे इस विश्व को प्रकाशित करता है वैसे ही इस “मैं” भाव को भी॥८॥

Light is my very nature and I am nothing else besides that. That light illumines the ego as it illumines the world.॥8॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


अहो विकल्पितं विश्वंज्ञानान्मयि भासते।
रूप्यं शुक्तौ फणी रज्जौ वारि सूर्यकरे यथा॥ २-९॥

आश्चर्य, यह कल्पित विश्व अज्ञान से मुझमें दिखाई देता है जैसे सीप में चाँदी, रस्सी में सर्प और सूर्य किरणों में पानी॥९॥

Amazingly, this imagined world appears in me due to ignorance, as silver in sea-shell, a snake in the rope, water in the sunlight.॥9॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


मत्तो विनिर्गतं विश्वं मय्येव लयमेष्यति।
मृदि कुम्भो जले वीचिः कनके कटकं यथा॥ २-१०॥

मुझसे उत्पन्न हुआ विश्व मुझमें ही विलीन हो जाता है जैसे घड़ा मिटटी में, लहर जल में और कड़ा सोने में विलीन हो जाता है॥१०॥

This world is originated from me and gets absorbed in me, like a jug back into clay, a wave into water, and a bracelet into gold.॥10॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


अहो अहं नमो मह्यं विनाशो यस्य नास्ति मे।
ब्रह्मादिस्तंबपर्यन्तं जगन्नाशोऽपि तिष्ठतः॥ २-११॥

आश्चर्य है, मुझको नमस्कार है, समस्त विश्व के नष्ट हो जाने पर भी जिसका विनाश नहीं होता, जो तृण से ब्रह्मा तक सबका विनाश होने पर भी विद्यमान रहता है॥११॥

Amazing! Salutations to me who is indestructible and remains even after the destruction of the whole world from Brahma down to the grass.॥11॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


अहो अहं नमो मह्यं एकोऽहं देहवानपि।
क्वचिन्न गन्ता नागन्ता व्याप्य विश्वमवस्थितः॥ २-१२॥

आश्चर्य है, मुझको नमस्कार है, मैं एक हूँ, शरीर वाला होते हुए भी जो न कहीं जाता है और न कहीं आता है और समस्त विश्व को व्याप्त करके स्थित है॥१२॥

Amazing! Salutations to me who is one,who appears with body, neither goes nor come anywhere and pervades all the world.॥12॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


अहो अहं नमो मह्यं दक्षो नास्तीह मत्समः।
असंस्पृश्य शरीरेण येन विश्वं चिरं धृतम्॥२-१३॥

आश्चर्य है, मुझको नमस्कार है, जो कुशल है और जिसके समान कोई और नहीं है, जिसने इस शरीर को बिना स्पर्श करते हुए इस विश्व को अनादि काल से धारण किया हुआ है॥१३॥

Amazing! Salutations to me who is skilled and there is no one else like him, who without even touching this body, holds all the world.॥13॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


अहो अहं नमो मह्यं यस्य मे नास्ति किंचन।
अथवा यस्य मे सर्वं यद् वाङ्मनसगोचरम्॥२-१४॥

आश्चर्य है, मुझको नमस्कार है, जिसका यह कुछ भी नहीं है अथवा जो भी वाणी और मन से समझ में आता है वह सब जिसका है॥१४॥

Amazing! Salutations to me who either does not possess anything or possesses anything that could be referred by speech and mind.॥14॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


ज्ञानं ज्ञेयं तथा ज्ञाता त्रितयं नास्ति वास्तवं।
अज्ञानाद् भाति यत्रेदं सोऽहमस्मि निरंजनः॥ २-१५॥

ज्ञान, ज्ञेय और ज्ञाता यह तीनों वास्तव में नहीं हैं, यह जो अज्ञानवश दिखाई देता है वह निष्कलंक मैं ही हूँ॥१५॥

Knowledge, object of knowledge and the knower, these three do not exist in reality. The flawless self appears as these three due to ignorance.॥15॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


द्वैतमूलमहो दुःखं नान्य- त्तस्याऽस्ति भेषजं।
दृश्यमेतन् मृषा सर्वं एकोऽहं चिद्रसोमलः॥ २-१६॥
द्वैत (भेद) सभी दुखों का मूल कारण है।
इसकी इसके अतिरिक्त कोई और औषधि नहीं है कि यह सब जो दिखाई दे रहा है वह सब असत्य है।
मैं एक, चैतन्य और निर्मल हूँ॥१६॥Definitely, duality (distinction) is the fundamental reason of suffering.
There is no other remedy for it other than knowing that all that is visible, is unreal, and that I am one, pure consciousness.॥16॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


बोधमात्रोऽहमज्ञानाद् उपाधिः कल्पितो मया।
एवं विमृशतो नित्यं निर्विकल्पे स्थितिर्मम॥ २-१७॥

मैं केवल ज्ञान स्वरुप हूँ, अज्ञान से ही मेरे द्वारा स्वयं में अन्य गुण कल्पित किये गए हैं, ऐसा विचार करके मैं सनातन और कारणरहित रूप से स्थित हूँ॥१७॥

I am of the nature of light only, due to ignorance I have imagined other attributes in me. By reasoning thus, I exist eternally and without cause.॥17॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


न मे बन्धोऽस्ति मोक्षो वा भ्रान्तिः शान्तो निराश्रया।
अहो मयि स्थितं विश्वं वस्तुतो न मयि स्थितम्॥२-१८॥

न मुझे कोई बंधन है और न कोई मुक्ति का भ्रम। मैं शांत और आश्रयरहित हूँ। मुझमें स्थित यह विश्व भी वस्तुतः मुझमें स्थित नहीं है॥१८॥

For me there is neither bondage nor liberation. I am peaceful and without support. This world though imagined in me, does not exist in me in reality.॥18॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


सशरीरमिदं विश्वं न किंचिदिति निश्चितं।
शुद्धचिन्मात्र आत्मा च तत्कस्मिन् कल्पनाधुना॥२-१९।

यह निश्चित है कि इस शरीर सहित यह विश्व अस्तित्वहीन है, केवल शुद्ध, चैतन्य आत्मा का ही अस्तित्व है। अब इसमें क्या कल्पना की जाये॥१९॥

Definitely this world along with this body is non-existent. Only pure, conscious self exists. What else is there to be imagined now?॥19॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


शरीरं स्वर्गनरकौ बन्धमोक्षौ भयं तथा।
कल्पनामात्रमेवैतत् किं मे कार्यं चिदात्मनः॥ २-२०॥

शरीर, स्वर्ग, नरक, बंधन, मोक्ष और भय ये सब कल्पना मात्र ही हैं, इनसे मुझ चैतन्य स्वरुप का क्या प्रयोजन है॥२०॥

The body, heaven and hell, bondage and liberation, and fear, these are all unreal. What is my connection with them who is conscious.॥20॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


अहो जनसमूहेऽपि न द्वैतं पश्यतो मम।
अरण्यमिव संवृत्तं क्व रतिं करवाण्यहम्॥२-२१॥

आश्चर्य कि मैं लोगों के समूह में भी दूसरे को नहीं देखता हूँ, वह भी निर्जन ही प्रतीत होता है। अब मैं किससे मोह करूँ॥२१॥

Amazingly, I do not see duality in a crowd, it also appear desolate. Now who is there to have an attachment with.॥21॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


नाहं देहो न मे देहो जीवो नाहमहं हि चित्।
अयमेव हि मे बन्ध आसीद्या जीविते स्पृहा॥ २-२२॥

न मैं शरीर हूँ न यह शरीर ही मेरा है, न मैं जीव हूँ , मैं चैतन्य हूँ। मेरे अन्दर जीने की इच्छा ही मेरा बंधन थी॥२२॥

I am not the body, nor is the body mine. I am consciousness. My only bondage is the thirst for life.॥22॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


अहो भुवनकल्लोलै- र्विचित्रैर्द्राक् समुत्थितं।
मय्यनंतमहांभोधौ चित्तवाते समुद्यते॥ २-२३॥

आश्चर्य, मुझ अनंत महासागर में चित्तवायु उठने पर ब्रह्माण्ड रूपी विचित्र तरंगें उपस्थित हो जाती हैं॥२३॥

Amazingly, as soon as the mental winds arise in the infinite ocean of myself, many waves of surprising worlds come into existence.॥23॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


मय्यनंतमहांभोधौ चित्तवाते प्रशाम्यति।
अभाग्याज्जीववणिजो जगत्पोतो विनश्वरः॥ २-२४॥

मुझ अनंत महासागर में चित्तवायु के शांत होने पर जीव रूपी वणिक का संसार रूपी जहाज जैसे दुर्भाग्य से नष्ट हो जाता है॥२४॥

As soon as these mental winds subside in the infinite ocean of myself, the world boat of trader-like ‘jeeva’ gets destroyed as if by misfortune.॥24॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


मय्यनन्तमहांभोधा- वाश्चर्यं जीववीचयः।
उद्यन्ति घ्नन्ति खेलन्ति प्रविशन्ति स्वभावतः॥२-२५॥

आश्चर्य, मुझ अनंत महासागर में जीव रूपी लहरें उत्पन्न होती हैं, मिलती हैं, खेलती हैं और स्वभाव से मुझमें प्रवेश कर जाती हैं॥२५॥

Amazingly, in the infinite ocean of myself, the waves of life arise, meet, play and disappear naturally.॥25॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


अष्टावक्र उवाच – अविनाशिनमात्मानं एकं विज्ञाय तत्त्वतः।
तवात्मज्ञानस्य धीरस्य कथमर्थार्जने रतिः॥३- १॥
अष्टावक्र कहते हैं – आत्मा को अविनाशी और एक जानो । उस आत्म-ज्ञान को प्राप्त कर, किसी बुद्धिमान व्यक्ति की रूचि धन अर्जित करने में कैसे हो सकती है॥१॥

Ashtavakra says – Know self as indestructible and one. How could a wise man having self-knowledge can like acquiring wealth?॥1॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


आत्माज्ञानादहो प्रीतिर्विषयभ्रमगोचरे।
शुक्तेरज्ञानतो लोभो यथा रजतविभ्रमे॥३- २॥
स्वयं के अज्ञान से भ्रमवश विषयों से लगाव हो जाता है जैसे सीप में चाँदी का भ्रम होने पर उसमें लोभ उत्पन्न हो जाता है॥२॥

Not knowing self leads to attachment in false sense objects just as mistakenly understanding mother of pearl as silver invokes greed.॥2॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


विश्वं स्फुरति यत्रेदं तरङ्गा इव सागरे।
सोऽहमस्मीति विज्ञाय किं दीन इव धावसि॥३- ३॥
सागर से लहरों के समान जिससे यह विश्व उत्पन्न होता है, वह मैं ही हूँ जानकर तुम एक दीन जैसे कैसे भाग सकते हो॥३॥

This world originates from self like waves from the sea. Recognizing, “I am That”, why run like a poor?॥3॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


श्रुत्वापि शुद्धचैतन्य आत्मानमतिसुन्दरं।
उपस्थेऽत्यन्तसंसक्तो मालिन्यमधिगच्छति॥३- ४॥
यह सुनकर भी कि आत्मा शुद्ध, चैतन्य और अत्यंत सुन्दर है तुम कैसे जननेंद्रिय में आसक्त होकर मलिनता को प्राप्त हो सकते हो॥४॥

After hearing self to be pure, conscious and very beautiful, how can you be attracted to sexual objects and get impure?॥4॥


*Ashtavakra geeta in hindi*


सर्वभूतेषु चात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।
मुनेर्जानत आश्चर्यं ममत्वमनुवर्तते॥३- ५॥

सभी प्राणियों में स्वयं को और स्वयं में सब प्राणियों को जानने वाले मुनि में  ममता की भावना का बने रहना आश्चर्य ही है॥५॥

For a sage who knows himself to be is in all beings and all beings in him, retaining attachment is surprising!॥5॥


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आस्थितः परमाद्वैतं मोक्षार्थेऽपि व्यवस्थितः।
आश्चर्यं कामवशगो विकलः केलिशिक्षया॥३- ६॥
एक ब्रह्म का आश्रय लेने वाले और मोक्ष के अर्थ का ज्ञान रखने वाले का आमोद-प्रमोद द्वारा उत्पन्न कामनाओं से विचलित होना आश्चर्य ही है॥६॥
For the one aspiring for highest non-dual Lord and fully aware of the meaning of liberation,

subjugation to desires is surprising.॥6॥


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उद्भूतं ज्ञानदुर्मित्रम- वधार्यातिदुर्बलः।
आश्चर्यं काममाकाङ्क्षेत् कालमन्तमनुश्रितः॥३- ७॥
अंत समय के निकट पहुँच चुके व्यक्ति का उत्पन्न ज्ञान के अमित्र काम की इच्छा रखना, जिसको धारण करने में वह अत्यंत अशक्त है, आश्चर्य ही है॥७॥

For a person having reached his last time, incapable of enjoying and knowing it to be enemy of the gained knowledge, it is surprising to be after sexual desires.॥7॥


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इहामुत्र विरक्तस्य नित्यानित्यविवेकिनः।
आश्चर्यं मोक्षकामस्य मोक्षाद् एव विभीषिका॥३- ८॥
इस लोक और परलोक से विरक्त, नित्य और अनित्य का ज्ञान रखने वाले और मोक्ष की कामना रखने वालों का मोक्ष से डरना, आश्चर्य ही है॥८॥

Suprise, unattached to this and the other world, those who can discriminate between the permanent and the impermanent, and wish to liberate are afraid of liberation.॥8॥


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धीरस्तु भोज्यमानोऽपि पीड्यमानोऽपि सर्वदा।
आत्मानं केवलं पश्यन् न तुष्यति न कुप्यति॥३- ९॥
सदा केवल आत्मा का दर्शन करने वाले बुद्धिमान व्यक्ति भोजन कराने पर या पीड़ित करने पर न प्रसन्न होते हैं और न क्रोध ही करते हैं॥९॥

The wise who always see self only, are neither pleased nor get angry whether they are feted or tormented.॥9॥


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चेष्टमानं शरीरं स्वं पश्यत्यन्यशरीरवत्।
संस्तवे चापि निन्दायां कथं क्षुभ्येत् महाशयः॥३- १०॥
अपने कार्यशील शरीर को दूसरों के शरीरों की तरह देखने वाले महापुरुषों को प्रशंसा या निंदा कैसे विचलित कर सकती है॥१०॥

How can noble men be perturbed by praise or blame who see their bodies alike to others.॥10॥


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मायामात्रमिदं विश्वं पश्यन् विगतकौतुकः।
अपि सन्निहिते मृत्यौ कथं त्रस्यति धीरधीः॥३- ११॥
समस्त जिज्ञासाओं से रहित, इस विश्व को माया में कल्पित देखने वाले, स्थिर प्रज्ञा वाले व्यक्ति को आसन्न मृत्यु भी कैसे भयभीत कर सकती है॥११॥

Devoid of any questions, seeing this world as imagined in Maya, how can one with resolute intelligence be fearful of even the incident death?॥11॥


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निःस्पृहं मानसं यस्य नैराश्येऽपि महात्मनः।
तस्यात्मज्ञानतृप्तस्य तुलना केन जायते॥३- १२॥
निराशा में भी समस्त इच्छाओं से रहित, स्वयं के ज्ञान से प्रसन्न महात्मा की तुलना किससे की जा सकती है॥१२॥

Who can be compared to the saint, free from desires even in disappointment and satisfied with the knowledge of self?॥12॥


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स्वभावाद् एव जानानो दृश्यमेतन्न किंचन।
इदं ग्राह्यमिदं त्याज्यं स किं पश्यति धीरधीः॥३- १३॥
स्वभाव से ही विश्व को दृश्यमान जानो, इसका कुछ भी अस्तित्व नहीं है। यह ग्रहण करने योग्य है और यह त्यागने योग्य, देखने वाला स्थिर प्रज्ञायुक्त व्यक्ति क्या देखता है?॥१३॥

Know this world to be visible due to its very nature, it is non-existent actually. How can a person with resolute intelligence discriminate things as to be taken or to be rejected?॥13॥


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अंतस्त्यक्तकषायस्य निर्द्वन्द्वस्य निराशिषः।
यदृच्छयागतो भोगो न दुःखाय न तुष्टये॥३- १४॥

विषयों की आतंरिक आसक्ति का त्याग करने वाले, संदेह से परे, बिना किसी इच्छा वाले व्यक्ति को स्वतः आने वाले भोग न दुखी कर सकते है और न सुखी॥१४॥

One who has given up inner passions, is beyond doubts and is without any desires does not feel pain or pleasure due to random events.॥14॥


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