Shiv puran(सम्पूर्ण शिव पुराण)
(श्रीगणेशाय नमः)
(श्रीशिवपुराण-माहात्म्य)
“भवाब्धिमग्नं दीनं मां समुद्धर भवार्णवात्।
कर्मग्राहगृहीताङ्गं दासोऽहं तव शङ्कर ।।”
(श्री शिवपुराण-माहात्म्य)
(1.)प्रथम अध्याय:शौनकजी के साधन विषयक प्रश्न करने पर सूतजी का उन्हें शिवपुराण की उत्कृष्ट महिमा सुनाना)
(2.)अध्याय 2 और 3 शिवपुराणके श्रवणसे देवराजको शिवलोककी प्राप्ति तथा चंचुलाका पापसे भय एवं संसार से वैराग्य)
(4.)अध्याय 4 चंचुलाकी प्रार्थनासे ब्राह्मणका उसे पूरा शिवपुराण सुनाना और समयानुसार शरीर छोड़कर शिवलोकमें जा चंचुलाका पार्वतीजीकी सखी एवं सुखी होना)
(5.)अध्याय 5 चंचुलाके प्रयत्नसे पार्वतीजीकी आज्ञा पाकर तुम्बुरुका विन्ध्यपर्वतपर शिवपुराणकी कथा सुनाकर बिन्दुगका पिशाचयोनिसे उद्धार करना तथा उन दोनों दम्पतिका शिवधाममें सुखी होना)
(6.)अध्याय 6 और 7 शिवपुराणके श्रवणकी विधि तथा श्रोताओंके पालन करनेयोग्य नियमोंका वर्णन)
(श्रीशिवमहापुराण विद्येश्वरसंहिता)
(1.)प्रथम अध्याय प्रयागमें सूतजीसे मुनियोंका तुरंत पापनाश करनेवाले साधनके विषयमें प्रश्न)
(2.)अध्याय 2 शिवपुराणका परिचय)
(3.)अध्याय 3 और 4 साध्य-साधन आदिका विचार तथा श्रवण, कीर्तन और मनन- इन तीन साधनोंकी श्रेष्ठताका प्रतिपादन)
(5.)अध्याय 5 से 8 भगवान् शिवके लिंग एवं साकार विग्रहकी पूजाके रहस्य तथा महत्त्वका वर्णन)
(9.)अध्याय 9महेश्वरका ब्रह्मा और विष्णुको अपने निष्कल और सकल स्वरूपका परिचय देते हुए लिंगपूजनका महत्त्व बताना)
(10.)अध्याय 10 पाँच कृत्योंका प्रतिपादन, प्रणव एवं पंचाक्षर-मन्त्रकी महत्ता, ब्रह्मा- विष्णुद्वारा भगवान् शिवकी स्तुति तथा उनका अन्तर्धान)
(11.)अध्याय 11 शिवलिंगकी स्थापना, उसके लक्षण और पूजनकी विधिका वर्णन तथा शिवपदकी प्राप्ति करानेवाले सत्कर्मोंका विवेचन)
(12.)अध्याय 12 मोक्षदायक पुण्यक्षेत्रोंका वर्णन, कालविशेषमें विभिन्न नदियोंके जलमें स्नानके उत्तम फलका निर्देश तथा तीर्थोंमें पापसे बचे रहनेकी चेतावनी)
(13.)अध्याय 13 सदाचार, शौचाचार, स्नान, भस्मधारण, संध्यावन्दन, प्रणव-जप, गायत्री-जप, दान, न्यायतः धनोपार्जन तथा अग्निहोत्र आदिकी विधि एवं महिमाका वर्णन)
(14.)अध्याय 14अग्नियज्ञ, देवयज्ञ और ब्रह्मयज्ञ आदिका वर्णन, भगवान् शिवके द्वारा सातों वारोंका निर्माण तथा उनमें देवाराधनसे विभिन्न प्रकारके फलोंकी प्राप्तिका कथन)
(15.)अध्याय 15 देश, काल, पात्र और दान आदिका विचार)
(16.)अध्याय 16 पृथ्वी आदिसे निर्मित देवप्रतिमाओंके पूजनकी विधि, उनके लिये नैवेद्यका विचार, पूजनके विभिन्न उपचारोंका फल, विशेष मास, वार, तिथि एवं नक्षत्रोंके योगमें पूजनका विशेष फल तथा लिंगके वैज्ञानिक स्वरूपका विवेचन)
(17.)अध्याय 17 षड्लिंगस्वरूप प्रणवका माहात्म्य, उसके सूक्ष्म रूप (ॐकार) और स्थूल रूप (पंचाक्षरमन्त्र) का विवेचन, उसके जपकी विधि एवं महिमा, कार्यब्रह्मके लोकोंसे लेकर कारणरुद्रके लोकोंतकका विवेचन करके कालातीत, पंचावरणविशिष्ट शिवलोकके अनिर्वचनीय वैभवका निरूपण तथा शिव- भक्तोंके सत्कारकी महत्ता)
(18.)अध्याय 18 बन्धन और मोक्षका विवेचन, शिवपूजाका उपदेश, लिंग आदिमें शिवपूजनका विधान, भस्मके स्वरूपका निरूपण और महत्त्व, शिव एवं गुरु शब्दकी व्युत्पत्ति तथा शिवके भस्मधारणका रहस्य)
(19.)अध्याय 19 और 20 पार्थिवलिंगके निर्माणकी रीति तथा वेद-मन्त्रोंद्वारा उसके पूजनकी विस्तृत एवं संक्षिप्त विधिका वर्णन)
(21.)अध्याय 21 और 22 पार्थिवपूजाकी महिमा, शिवनैवेद्यभक्षणके विषयमें निर्णय तथा बिल्वका माहात्म्य)
(23.)अध्याय 23 और 24 शिवनाम-जप तथा भस्मधारणकी महिमा, त्रिपुण्ड्रके देवता और स्थान आदिका प्रतिपादन)
(25.)अध्याय 25 रुद्राक्षधारणकी महिमा तथा उसके विविध भेदोंका वर्णन)
(रुद्रसंहिता, प्रथम (सृष्टि) खण्ड)
(1.)अध्याय 1 और 2 प्रश्नके उत्तरमें नारद-ब्रह्म-संवादकी अवतारणा करते हुए सूतजीका उन्हें नारदमोहका प्रसंग सुनाना; कामविजयके गर्वसे युक्त हुए नारदका शिव, ब्रह्मा तथा विष्णुके पास जाकर अपने तपका प्रभाव बताना)
(2.)अध्याय: 3 मायानिर्मित नगरमें शीलनिधिकी कन्यापर मोहित हुए नारदजीका भगवान् विष्णुसे उनका रूप माँगना, भगवान्का अपने रूपके साथ उन्हें वानरका-सा मुँह देना, कन्याका भगवान्को वरण करना और कुपित हुए नारदका शिवगणोंको शाप देना)
(4.)अध्याय: 4 नारदजीका भगवान् विष्णुको क्रोधपूर्वक फटकारना और शाप देना; फिर मायाके दूर हो जानेपर पश्चात्तापपूर्वक भगवान्के चरणोंमें गिरना और शुद्धिका उपाय पूछना तथा भगवान् विष्णुका उन्हें समझा-बुझाकर शिवका माहात्म्य जाननेके लिये ब्रह्माजीके पास जानेका आदेश और शिवके भजनका उपदेश देना)
(5.)अध्याय: 5 नारदजीका शिवतीर्थोंमें भ्रमण, शिवगणोंको शापोद्धारकी बात बताना तथा ब्रह्मलोकमें जाकर ब्रह्माजीसे शिवतत्त्वके विषयमें प्रश्न करना)
(6.)अध्याय: 6 महाप्रलयकालमें केवल सद्ब्रह्मकी सत्ताका प्रतिपादन, उस निर्गुण- निराकार ब्रह्मसे ईश्वरमूर्ति (सदाशिव) का प्राकट्य, सदाशिवद्वारा स्वरूपभूता शक्ति (अम्बिका) का प्रकटीकरण, उन दोनोंके द्वारा उत्तम क्षेत्र (काशी या आनन्दवन) का प्रादुर्भाव, शिवके वामांगसे परम पुरुष (विष्णु) का आविर्भाव तथा उनके सकाशसे प्राकृत तत्त्वोंकी क्रमशः उत्पत्तिका वर्णन)
(7.)अध्याय: 7 भगवान् विष्णुकी नाभिसे कमलका प्रादुर्भाव, शिवेच्छावश ब्रह्माजीका उससे प्रकट होना, कमलनालके उद्गमका पता लगानेमें असमर्थ ब्रह्माका तप करना, श्रीहरिका उन्हें दर्शन देना, विवादग्रस्त ब्रह्मा- विष्णुके बीचमें अग्नि-स्तम्भका प्रकट होना तथा उसके ओर- छोरका पता न पाकर उन दोनोंका उसे प्रणाम करना)
(8.)अध्याय:8 ब्रह्मा और विष्णुको भगवान् शिवके शब्दमय शरीरका दर्शन)
(9.)अध्याय:9 उमासहित भगवान् शिवका प्राकट्य, उनके द्वारा अपने स्वरूपका विवेचन तथा ब्रह्मा आदि तीनों देवताओंकी एकताका प्रतिपादन)
(10.)अध्याय:10 श्रीहरिको सृष्टिकी रक्षाका भार एवं भोग-मोक्ष-दानका अधिकार दे भगवान् शिवका अन्तर्धान होना)
(11.)अध्याय:11 शिवपूजनकी विधि तथा उसका फल)
(12.)अध्याय:12 भगवान् शिवकी श्रेष्ठता तथा उनके पूजनकी अनिवार्य आवश्यकताका प्रतिपादन)
(13.)अध्याय:13 शिवपूजनकी सर्वोत्तम विधिका वर्णन)
(14.)अध्याय:14 विभिन्न पुष्पों, अन्नों तथा जलादिकी धाराओंसे शिवजीकी पूजाका माहात्म्य)
(15.)अध्याय:15 सृष्टिका वर्णन)
(16.)अध्याय:16 स्वायम्भुव मनु और शतरूपाकी, ऋषियोंकी तथा दक्षकन्याओंकी संतानोंका वर्णन तथा सती और शिवकी महत्ताका प्रतिपादन)
(17.)अध्याय:17 यज्ञदत्तकुमारको भगवान् शिवकी कृपासे कुबेरपदकी प्राप्ति तथा उनकी भगवान् शिवके साथ मैत्री)
(18.)अध्याय:18 भगवान् शिवका कैलास पर्वतपर गमन तथा सृष्टिखण्डका
(रुद्रसंहिता, द्वितीय (सती) खण्ड)
(1.)अध्याय:1 और 2 नारदजीके प्रश्न और ब्रह्माजीके द्वारा उनका उत्तर, सदाशिवसे त्रिदेवोंकी उत्पत्ति तथा ब्रह्माजीसे देवता आदिकी सृष्टिके पश्चात् एक नारी और एक पुरुषका प्राकट्य)
(3.)अध्याय:3 से 5 कामदेवके नामोंका निर्देश, उसका रतिके साथ विवाह तथा कुमारी संध्याका चरित्र – वसिष्ठ मुनिका चन्द्रभाग पर्वतपर उसको तपस्याकी विधि बताना)
(6.)अध्याय:6 संध्याकी तपस्या, उसके द्वारा भगवान् शिवकी स्तुति तथा उससे संतुष्ट हुए शिवका उसे अभीष्ट वर दे मेधातिथिके यज्ञमें भेजनाब्रह्माजी कहते हैं- मेरे पुत्रोंमें श्रेष्ठ)
(7.)अध्याय:7 से 10 संध्याकी आत्माहुति, उसका अरुन्धतीके रूपमें अवतीर्ण होकर मुनिवर वसिष्ठके साथ विवाह करना, ब्रह्माजीका रुद्रके विवाहके लिये प्रयत्न और चिन्ता तथा भगवान् विष्णुका उन्हें ‘शिवा’ की आराधनाके लिये उपदेश देकर चिन्तामुक्त करना)
(11.)अध्याय:11 और 12 दक्षकी तपस्या और देवी शिवाका उन्हें वरदान देना)
(13.)अध्याय:13 ब्रह्माजीकी आज्ञासे दक्षद्वारा मैथुनी सृष्टिका आरम्भ, अपने पुत्र हर्यश्वों और शबलाश्वोंको निवृत्तिमार्गमें भेजनेके कारण दक्षका नारदको शाप देना)
(14.)अध्याय:14 दक्षकी साठ कन्याओंका विवाह, दक्ष और वीरिणीके यहाँ देवी शिवाका अवतार, दक्षद्वारा उनकी स्तुति तथा सतीके सद्गुणों एवं चेष्टाओंसे माता-पिताकी प्रसन्नता)
(15.)अध्याय:15 सतीकी तपस्यासे संतुष्ट देवताओंका कैलासमें जाकर भगवान् शिवका स्तवन करना)
(16.)अध्याय:16 ब्रह्माजीका रुद्रदेवसे सतीके साथ विवाह करनेका अनुरोध, श्रीविष्णुद्वारा अनुमोदन और श्रीरुद्रकी इसके लिये स्वीकृति)
(17.)अध्याय:17 सतीको शिवसे वरकी प्राप्ति तथा भगवान् शिवका ब्रह्माजीको दक्षके पास भेजकर सतीका वरण करना)
(18.)अध्याय:18 ब्रह्माजीसे दक्षकी अनुमति पाकर देवताओं और मुनियोंसहित भगवान् शिवका दक्षके घर जाना, दक्षद्वारा सबका सत्कार तथा सती और शिवका विवाह)
(19.)अध्याय:19 और 20 सती और शिवके द्वारा अग्निकी परिक्रमा, श्रीहरिद्वारा शिवतत्त्वका वर्णन, शिवका ब्रह्माजीको दिये हुए वरके अनुसार वेदीपर सदाके लिये अवस्थान तथा शिव और सतीका विदा हो कैलासपर जाना)
(21.)अध्याय:21 से 23 सतीका प्रश्न तथा उसके उत्तरमें भगवान् शिवद्वारा ज्ञान एवं नवधा भक्तिके स्वरूपका विवेचन)
(24.)अध्याय 24 दण्डकारण्यमें शिवको श्रीरामके प्रति मस्तक झुकाते देख सतीका मोह तथा शिवकी आज्ञासे उनके द्वारा श्रीरामकी परीक्षा)
(25.)अध्याय 25 श्रीशिवके द्वारा गोलोकधाममें श्रीविष्णुका गोपेशके पदपर अभिषेक तथा उनके प्रति प्रणामका प्रसंग सुनाकर श्रीरामका सतीके मनका संदेह दूर करना, सतीका शिवके द्वारा मानसिक त्याग)
(26.)अध्याय 26 प्रयागमें समस्त महात्मा मुनियोंद्वारा किये गये यज्ञमें दक्षका भगवान् शिवको तिरस्कारपूर्वक शाप देना तथा नन्दीद्वारा ब्राह्मणकुलको शाप-प्रदान, भगवान् शिवका नन्दीको शान्त करना)
(27.)अध्याय 27 दक्षके द्वारा महान् यज्ञका आयोजन, उसमें ब्रह्मा, विष्णु, देवताओं और ऋषियोंका आगमन, दक्षद्वारा सबका सत्कार, यज्ञका आरम्भ, दधीचिद्वारा भगवान् शिवको बुलानेका अनुरोध और दक्षके विरोध करनेपर शिव-भक्तोंका वहाँसे निकल जाना)
(28.)अध्याय 28 दक्षयज्ञका समाचार पा सतीका शिवसे वहाँ चलनेके लिये अनुरोध, दक्षके शिवद्रोहको जानकर भगवान् शिवकी आज्ञासे देवी सतीका पिताके यज्ञमण्डपकी ओर शिवगणोंके साथ प्रस्थान)
(29.)अध्याय 29 यज्ञशालामें शिवका भाग न देखकर सतीके रोषपूर्ण वचन, दक्षद्वारा शिवकी निन्दा सुन दक्ष तथा देवताओंको धिक्कार-फटकारकर सतीद्वारा अपने प्राण त्यागका निश्चय)
(30.)अध्याय 30 सतीका योगाग्निसे अपने शरीरको भस्म कर देना, दर्शकोंका हाहाकार, शिवपार्षदोंका प्राणत्याग तथा दक्षपर आक्रमण, ऋभुओंद्वारा उनका भगाया जाना तथा देवताओंकी चिन्ता)
(31.)अध्याय 31आकाशवाणीद्वारा दक्षकी भर्त्सना, उनके विनाशकी सूचना तथा समस्त देवताओंको यज्ञमण्डपसे निकल जानेकी प्रेरणा)
(32.)अध्याय 32 गणोंके मुखसे और नारदसे भी सतीके दग्ध होनेकी बात सुनकर दक्षपर कुपित हुए शिवका अपनी जटासे वीरभद्र और महाकालीको प्रकट करके उन्हें यज्ञविध्वंस करने और विरोधियोंको जला डालनेकी आज्ञा देना)
(33.)अध्याय 33 और 34 प्रमथगणोंसहित वीरभद्र और महाकालीका दक्षयज्ञ-विध्वंसके लिये प्रस्थान, दक्ष तथा देवताओंको अपशकुन एवं उत्पातसूचक लक्षणोंका दर्शन एवं भय होना)
(35.)अध्याय 35 दक्षके यज्ञकी रक्षाके लिये भगवान् विष्णुसे प्रार्थना, भगवान्का शिवद्रोहजनित संकटको टालनेमें अपनी असमर्थता बताते हुए दक्षको समझाना तथा सेनासहित वीरभद्रका आगमन)
(36.)अध्याय 36 और 37 देवताओंका पलायन, इन्द्र आदिके पूछनेपर बृहस्पतिका रुद्रदेवकी अजेयता बताना, वीरभद्रका देवताओंको युद्धके लिये ललकारना, श्रीविष्णु और वीरभद्रकी बातचीत तथा विष्णु आदिका अपने लोकमें जाना एवं दक्ष और यज्ञका विनाश करके वीरभद्रका कैलासको लौटना)
(38.)अध्याय 38 श्रीविष्णुकी पराजयमें दधीचि मुनिके शापको कारण बताते हुए दधीचि और क्षुवके विवादका इतिहास, मृत्युंजय-मन्त्रके अनुष्ठानसे दधीचिकी अवध्यता तथा श्रीहरिका क्षुवको दधीचिकी पराजयके लिये यत्न करनेका आश्वासन)
(39.)अध्याय 39 श्रीविष्णु और देवताओंसे अपराजित दधीचिका उनके लिये शाप और क्षुवपर अनुग्रह)
(40.)अध्याय 40 देवताओंसहित ब्रह्माका विष्णुलोकमें जाकर अपना दुःख निवेदन करना, श्रीविष्णुका उन्हें शिवसे क्षमा माँगनेकी अनुमति दे उनको साथ ले कैलासपर जाना तथा भगवान् शिवसे मिलना)
(41.)अध्याय 41 और 42 देवताओंद्वारा भगवान् शिवकी स्तुति, भगवान् शिवका देवता आदिके अंगोंके ठीक होने और दक्षके जीवित होनेका वरदान देना, श्रीहरि आदिके साथ यज्ञमण्डपमें पधारकर शिवका दक्षको जीवित करना तथा दक्ष और विष्णु आदिके द्वारा उनकी स्तुति)
(43.)अध्याय 43 भगवान् शिवका दक्षको अपनी भक्तवत्सलता, ज्ञानी भक्तकी श्रेष्ठता तथा तीनों देवताओंकी एकता बताना, दक्षका अपने यज्ञको पूर्ण करना, सब देवता आदिका अपने-अपने स्थानको जाना, सतीखण्डका उपसंहार और माहात्म्य)
(रुद्रसंहिता, तृतीय (पार्वती) खण्ड)
(1.)अध्याय 1 और 2 हिमालयके स्थावर-जंगम द्विविध स्वरूप एवं दिव्यत्वका वर्णन, मेनाके साथ उनका विवाह तथा मेना आदिको पूर्वजन्ममें प्राप्त हुए सनकादिके शाप एवं वरदानका कथन)
(3.)अध्याय 3 देवताओंका हिमालयके पास जाना और उनसे सत्कृत हो उन्हें उमाराधनकी विधि बता स्वयं भी एक सुन्दर स्थानमें जाकर उनकी स्तुति करना)
(4.)अध्याय 4 उमादेवीका दिव्यरूपसे देवताओंको दर्शन देना, देवताओंका उनसे अपना अभिप्राय निवेदन करना और देवीका अवतार लेनेकी बात स्वीकार करके देवताओंको आश्वासन देना)
(5.)अध्याय 5 मेनाको प्रत्यक्ष दर्शन देकर शिवादेवीका उन्हें अभीष्ट वरदानसे संतुष्ट करना तथा मेनासे मैनाकका जन्म)
(6.)अध्याय 6 देवी उमाका हिमवान्के हृदय तथा मेनाके गर्भमें आना, गर्भस्था देवीका देवताओंद्वारा स्तवन, उनका दिव्यरूपमें प्रादुर्भाव, माता मेनासे बातचीत तथा नवजात कन्याके रूपमें परिवर्तित होना)
(7.)अध्याय 7 और 8 पार्वतीका नामकरण और विद्याध्ययन, नारदका हिमवान्के यहाँ जाना, पार्वतीका हाथ देखकर भावी फल बताना, चिन्तित हुए हिमवान्को आश्वासन दे पार्वतीका विवाह शिवजीके साथ करनेको कहना और उनके संदेहका निवारण करना)
(9.)अध्याय 9 और 10 मेना और हिमालयकी बातचीत, पार्वती तथा हिमवान्के स्वप्न तथा भगवान् शिवसे ‘मंगल’ ग्रहकी उत्पत्तिका प्रसंग)
(11.)अध्याय 11 भगवान् शिवका गंगावतरण तीर्थमें तपस्याके लिये आना, हिमवान्द्वारा उनका स्वागत, पूजन और स्तवन तथा भगवान् शिवकी आज्ञाके अनुसार उनका उस स्थानपर दूसरोंको न जाने देनेकी व्यवस्था करना)
(12.)अध्याय 12 हिमवान्का पार्वतीको शिवकी सेवामें रखनेके लिये उनसे आज्ञा माँगना और शिवका कारण बताते हुए इस प्रस्तावको अस्वीकार कर देना)
(13.) अध्याय 13 पार्वती और शिवका दार्शनिक संवाद, शिवका पार्वतीको अपनी सेवाके लिये आज्ञा देना तथा पार्वतीद्वारा भगवान्की प्रतिदिन सेवा)
(14.)अध्याय 14 से 16 तारकासुरके सताये हुए देवताओंका ब्रह्माजीको अपनी कष्टकथा सुनाना, ब्रह्माजीका उन्हें पार्वतीके साथ शिवके विवाहके लिये उद्योग करनेका आदेश देना, ब्रह्माजीके समझानेसे तारकासुरका स्वर्गको छोड़ना और देवताओंका वहाँ रहकर लक्ष्यसिद्धिके लिये यत्नशील होना)
(17.)अध्याय 17 इन्द्रद्वारा कामका स्मरण, उसके साथ उनकी बातचीत तथा उनके कहनेसे कामका शिवको मोहनेके लिये प्रस्थान)
(18.)अध्याय 18 और 19 रुद्रकी नेत्राग्निसे कामका भस्म होना, रतिका विलाप, देवताओंकी प्रार्थनासे शिवका कामको द्वापरमें प्रद्युम्नरूपसे नूतन शरीरकी प्राप्तिके लिये वर देना और रतिका शम्बर-नगरमें जाना)
(20.)अध्याय 20 और 21 ब्रह्माजीका शिवकी क्रोधाग्निको वडवानलकी संज्ञा दे समुद्रमें स्थापित करके संसारके भयको दूर करना, शिवके विरहसे पार्वतीका शोक तथा नारदजीके द्वारा उन्हें तपस्याके लिये उपदेशपूर्वक पंचाक्षर-मन्त्रकी प्राप्ति)
(22.)अध्याय 22 श्रीशिवकी आराधनाके लिये पार्वतीजीकी दुष्कर तपस्या)
(23.)अध्याय 23पार्वतीकी तपस्याविषयक दृढ़ता, उनका पहलेसे भी उग्र तप, उससे त्रिलोकीका संतप्त होना तथा समस्त देवताओंके साथ ब्रह्मा और विष्णुका भगवान् शिवके स्थानपर जाना)
(24.)अध्याय 24 देवताओंका भगवान् शिवसे पार्वतीके साथ विवाह करनेका अनुरोध, भगवान्का विवाहके दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करनेपर स्वीकार कर लेना)
(25.)अध्याय 25 भगवान् शिवकी आज्ञासे सप्तर्षियोंका पार्वतीके आश्रमपर जा उनके शिवविषयक अनुरागकी परीक्षा करना और भगवान्को सब वृत्तान्त बताकर स्वर्गको जाना)
(26.)अध्याय 26 भगवान् शंकरका जटिल तपस्वी ब्राह्मणके रूपमें पार्वतीके आश्रमपर जाना, उनसे सत्कृत हो उनकी तपस्याका कारण पूछना तथा पार्वतीजीका अपनी सखी विजयासे सब कुछ कहलाना)
(27.)अध्याय 27 पार्वतीकी बात सुनकर जटाधारी ब्राह्मणका शिवकी निन्दा करते हुए पार्वतीको उनकी ओरसे मनको हटा लेनेका आदेश देना)
(28.)अध्याय 28 पार्वतीजीका परमेश्वर शिवकी महत्ताका प्रतिपादन करना, रोषपूर्वक जटिल ब्राह्मणको फटकारना, सखीद्वारा उन्हें फिर बोलनेसे रोकना तथा भगवान् शिवका उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दे अपने साथ चलनेके लिये कहना)
(29.)अध्याय 29 शिव और पार्वतीकी बातचीत, शिवका पार्वतीके अनुरोधको स्वीकार करना)
(30.)अध्याय 30 पार्वतीका पिताके घरमें सत्कार, महादेवजीकी नटलीलाका चमत्कार, उनका मेना आदिसे पार्वतीको माँगना और माता-पिताके इनकार करनेपर अन्तर्धान हो जाना)
(31.)अध्याय 31 देवताओंके अनुरोधसे वैष्णव ब्राह्मणके वेषमें शिवजीका हिमवान्के घर जाना और शिवकी निन्दा करके पार्वतीका विवाह उनके साथ न करनेको कहना)
(32.)अध्याय 32 और 33 मेनाका कोपभवनमें प्रवेश, भगवान् शिवका हिमवान्के पास सप्तर्षियोंको भेजना तथा हिमवान्द्वारा उनका सत्त्कार, सप्तर्षियों तथा अरुन्धतीका और महर्षि वसिष्ठका मेना और हिमवान्को समझाकर पार्वतीका विवाह भगवान् शिवके साथ करनेके लिये कहना)
(34.)अध्याय 34 से 36 सप्तर्षियोंके समझाने तथा मेरु आदिके कहनेसे पत्नीसहित हिमवान्का शिवके साथ अपनी पुत्रीके विवाहका निश्चय करना तथा सप्तर्षियोंका शिवके पास जा उन्हें सब बात बताकर अपने धामको जाना)
(37.)अध्याय 37 और 38 हिमवान्का भगवान् शिवके पास लग्नपत्रिका भेजना, विवाहके लिये आवश्यक सामान जुटाना, मंगलाचारका आरम्भ करना, उनका निमन्त्रण पाकर पर्वतों और नदियोंका दिव्यरूपमें आना, पुरीकी सजावट तथा विश्वकर्माद्वारा दिव्यमण्डप एवं देवताओंके निवासके लिये दिव्यलोकोंका निर्माण करवाना)
(39.)अध्याय 39 भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना)
(40.)अध्याय 40 भगवान् शिवका बारात लेकर हिमालयपुरीकी ओर प्रस्थान)
(41.)अध्याय 41 से 43 हिमवान्द्वारा शिवकी बारातकी अगवानी तथा सबका अभिनन्दन एवं वन्दन, मेनाका नारदजीको बुलाकर उनसे बारातियोंका परिचय पाना तथा शिव और उनके गणोंको देखकर भयसे मूच्छित होना)
(44.)अध्याय 44 मेनाका विलाप, शिवके साथ कन्याका विवाह न करनेका हठ, देवताओं तथा श्रीविष्णुका उन्हें समझाना तथा उनका सुन्दर रूप धारण करनेपर ही शिवको कन्या देनेका विचार प्रकट करना)
(45.)अध्याय 45 भगवान् शिवका अपने परम सुन्दर दिव्य रूपको प्रकट करना, मेनाकी प्रसन्नता और क्षमा-प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियोंका शिवके रूपका दर्शन करके जन्म और जीवनको सफल मानना)
(46.)अध्याय 46 मेनाद्वारा द्वारपर भगवान् शिवका परिछन, उनके रूपको देखकर संतोषका अनुभव, अन्यान्य युवतियोंद्वारा वरकी प्रशंसा, पार्वतीका अम्बिका- पूजनके लिये बाहर निकलना तथा देवताओं और भगवान् शिवका उनके सुन्दर रूपको देखकर प्रसन्न होना)
(47.)अध्याय 47 वरपक्षके आभूषणोंसे विभूषित शिवाकी नीराजना, कन्यादानके समय वरके साथ सब देवताओंका हिमाचलके घरके आँगनमें विराजना तथा वर-वधूके द्वारा एक-दूसरेका पूजन)
(48.)अध्याय 48 शिव-पार्वतीके विवाहका आरम्भ, हिमालयके द्वारा शिवके गोत्रके विषयमें प्रश्न होनेपर नारदजीके द्वारा उत्तर, हिमालयका कन्यादान करके शिवको दहेज देना तथा शिवाका अभिषेक)
(49.)अध्याय 49 से 51 शिवके विवाहका उपसंहार, उनके द्वारा दक्षिणा-वितरण, वर-वधूका कोहबर और वासभवनमें जाना, वहाँ स्त्रियोंका उनसे लोकाचारका पालन कराना, रतिकी प्रार्थनासे शिवद्वारा कामको जीवनदान एवं वर-प्रदान, वर-वधूका एक-दूसरेको मिष्टान्न भोजन कराना और शिवका जनवासेमें लौटना)
(52.)अध्याय 52 रातको परम सुन्दर सजे हुए वासगृहमें शयन करके प्रातःकाल भगवान् शिवका जनवासेमें आगमन)
(53.)अध्याय 53 चतुर्थीकर्म, बारातका कई दिनोंतक ठहरना, सप्तर्षियोंके समझानेसे हिमालयका बारातको विदा करनेके लिये राजी होना, मेनाका शिवको अपनी कन्या सौंपना तथा बारातका पुरीके बाहर जाकर ठहरना)
(54.)अध्याय 54 मेनाकी इच्छाके अनुसार एक ब्राह्मण-पत्नीका पार्वतीको पतिव्रतधर्मका उपदेश देना)
(55.)अध्याय 55 शिव-पार्वती तथा उनकी बारातकी विदाई, भगवान् शिवका समस्त देवताओंको विदा करके कैलासपर रहना और पार्वतीखण्डके श्रवणकी महिमा)
(रुद्रसंहिता, चतुर्थ (कुमार) खण्ड)
(1.)अध्याय 1 से 8 देवताओंद्वारा स्कन्दका शिव-पार्वतीके पास लाया जाना, उनका लाड़- प्यार, देवोंके माँगनेपर शिवजीका उन्हें तारक-वधके लिये स्वामी कार्तिकको देना, कुमारकी अध्यक्षतामें देव-सेनाका प्रस्थान, महीसागर-संगमपर तारकासुरका आना और दोनों सेनाओंमें मुठभेड़, वीरभद्रका तारकके साथ घोर संग्राम, पुनः श्रीहरि और तारकमें भयानक युद्ध)
(9.)अध्याय 9 से 12 ब्रह्माजीकी आज्ञासे कुमारका युद्धके लिये जाना, तारकके साथ उनका भीषण संग्राम और उनके द्वारा तारकका वध, तत्पश्चात् देवोंद्वारा कुमारका अभिनन्दन और स्तवन, कुमारका उन्हें वरदान देकर कैलासपर जा शिव-पार्वतीके पास निवास करना)
(13.)अध्याय 13 से 18 शिवाका अपनी मैलसे गणेशको उत्पन्न करके द्वारपाल-पदपर नियुक्त करना, गणेशद्वारा शिवजीके रोके जानेपर उनका शिवगणोंके साथ भयंकर संग्राम, शिवजीद्वारा गणेशका शिरश्छेदन, कुपित हुई शिवाका शक्तियोंको उत्पन्न करना और उनके द्वारा प्रलय मचाया जाना, देवताओं और ऋषियोंका स्तवनद्वारा पार्वतीको प्रसन्न करना, उनके द्वारा पुत्रको जिलाये जानेकी बात कही जानेपर शिवजीके आज्ञानुसार हाथीका सिर लाया जाना और उसे गणेशके धड़से जोड़कर उन्हें जीवित करना)
(19.)अध्याय 19 पार्वतीद्वारा गणेशजीको वरदान, देवोंद्वारा उन्हें अग्रपूज्य माना जाना, शिवजीद्वारा गणेशको सर्वाध्यक्ष पद प्रदान और गणेशचतुर्थीव्रतका वर्णन, तत्पश्चात् सभी देवताओंका उनकी स्तुति करके हर्षपूर्वक अपने-अपने स्थानको लौट जाना)
(20.)अध्याय 20 स्वामिकार्तिक और गणेशकी बाल-लीला, दोनोंका परस्पर विवाहके विषयमें विवाद, शिवजीद्वारा पृथ्वी-परिक्रमाका आदेश, कार्तिकेयका प्रस्थान, गणेशका माता-पिताकी परिक्रमा करके उनसे पृथ्वी-परिक्रमा स्वीकृत कराना, विश्वरूपकी सिद्धि और बुद्धि नामक दोनों कन्याओंके साथ गणेशका विवाह और उनसे क्षेम तथा लाभ नामक दो पुत्रोंकी उत्पत्ति, कुमारका पृथ्वी-परिक्रमा करके लौटना और क्षुब्ध होकर क्रौंचपर्वतपर चला जाना, कुमारखण्डके श्रवणकी महिमा)
(रुद्रसंहिता, पंचम (युद्ध) खण्ड)
(1.)अध्याय 1 तारकपुत्र तारकाक्ष, विद्युन्माली और कमलाक्षकी तपस्या, ब्रह्माद्वारा उन्हें वर-प्रदान, मयद्वारा उनके लिये तीन पुरोंका निर्माण और उनकी सजावट-शोभाका वर्णन)
(2.)अध्याय 2 से 5 तारकपुत्रोंके प्रभावसे संतप्त हुए देवोंकी ब्रह्माके पास करुण पुकार, ब्रह्माका उन्हें शिवके पास भेजना, शिवकी आज्ञासे देवोंका विष्णुकी शरणमें जाना और विष्णुका उन दैत्योंको मोहित करके उन्हें आचारभ्रष्ट करना)
(6.)अध्याय 6 से 8 देवोंका शिवजीके पास जाकर उनका स्तवन करना, शिवजीके त्रिपुरवधके लिये उद्यत न होनेपर ब्रह्मा और विष्णुका उन्हें समझाना, विष्णुके बतलाये हुए शिव-मन्त्रका देवोंद्वारा तथा विष्णुद्वारा जप, शिवजीकी प्रसन्नता और उनके लिये विश्वकर्माद्वारा सर्वदेवमय रथका निर्माण)
(9.)अध्याय 9 से 10 सर्वदेवमय रथका वर्णन, शिवजीका उस रथपर चढ़कर युद्धके लिये प्रस्थान, उनका पशुपति नाम पड़नेका कारण, शिवजीद्वारा गणेशका पूजन और त्रिपुर-दाह, मयदानवका त्रिपुरसे जीवित बच निकलना)
(11.)अध्याय 11 से 12 देवोंके स्तवनसे शिवजीका कोप शान्त होना और शिवजीका उन्हें वर देना, मय दानवका शिवजीके समीप आना और उनसे वर-याचना करना,)
(13.)अध्याय 13 से 29 दम्भकी तपस्या और विष्णुद्वारा उसे पुत्रप्राप्तिका वरदान, शंखचूडका जन्म, तप और उसे वरप्राप्ति, ब्रह्माजीकी आज्ञासे उसका पुष्करमें तुलसीके पास आना और उसके साथ वार्तालाप, ब्रह्माजीका पुनः वहाँ प्रकट होकर दोनोंको आशीर्वाद देना और शंखचूडका गान्धर्व विवाहकी विधिसे तुलसीका पाणिग्रहण करना)
(30.)अध्याय 29 से 30 शंखचूडका असुरराज्यपर अभिषेक और उसके द्वारा देवोंका अधिकार छीना जाना, देवोंका ब्रह्माकी शरणमें जाना, ब्रह्माका उन्हें साथ लेकर विष्णुके पास जाना, विष्णुद्वारा शंखचूडके जन्मका रहस्योद्घाटन और फिर सबका शिवके पास जाना और शिवसभामें उनकी झाँकी करना तथा अपना अभिप्राय प्रकट करना)
(31.)Shiv puran rudra samhita yudh khand chapter 31 to 35 (शिव पुराण रुद्रसंहिता युद्ध खंड अध्याय 31 से 35 देवताओंका रुद्रके पास जाकर अपना दुःख निवेदन करना, रुद्रद्वारा उन्हें आश्वासन और चित्ररथको शंखचूडके पास भेजना, चित्ररथके लौटनेपर रुद्रका गणों, पुत्रों और भद्रकालीसहित युद्धके लिये प्रस्थान, उधर शंखचूडका सेनासहित पुष्पभद्राके तटपर पड़ाव डालना तथा दानवराजके दूत और शिवकी बातचीत)
(36.)Shiv puran rudra samhita yudh khand chapter 36 to 40 (शिव पुराण रुद्रसंहिता युद्ध खंड अध्याय 36 से 40 देवताओं और दानवोंका युद्ध, शंखचूडके साथ वीरभद्रका संग्राम, पुनः उसके साथ भद्रकालीका भयंकर युद्ध करना और आकाशवाणी सुनकर निवृत्त होना, शिवजीका शंखचूडके साथ युद्ध और आकाशवाणी सुनकर युद्धसे निवृत्त हो विष्णुको प्रेरित करना, विष्णुद्वारा शंखचूडके कवच और तुलसीके शीलका अपहरण, फिर रुद्रके हाथों त्रिशूलद्वारा शंखचूडका वध, शंखकी उत्पत्तिका कथन)
(41.)Shiv puran rudra samhita yudh khand chapter 41 (शिव पुराण रुद्रसंहिता युद्ध खंड अध्याय 41 विष्णुद्वारा तुलसीके शील-हरणका वर्णन, कुपित हुई तुलसीद्वारा विष्णुको शाप, शम्भुद्वारा तुलसी और शालग्राम शिलाके माहात्म्यका वर्णन)
(42.)Shiv puran rudra samhita yudh khand chapter 42 (शिव पुराण रुद्रसंहिता युद्ध खंड अध्याय 42 उमाद्वारा शम्भुके नेत्र मूँद लिये जानेपर अन्धकारमें शम्भुके पसीनेसे अन्धकासुरकी उत्पत्ति, हिरण्याक्षकी पुत्रार्थ तपस्या और शिवका उसे पुत्ररूपमें अन्धकको देना, हिरण्याक्षका त्रिलोकीको जीतकर पृथ्वीको रसातलमें ले जाना और वराहरूपधारी विष्णुद्वारा उसका वध)
(43.)Shiv puran rudra samhita yudh khand chapter 43 (शिव पुराण रुद्रसंहिता युद्ध खंड अध्याय 43 हिरण्यकशिपुकी तपस्या और ब्रह्मासे वरदान पाकर उसका अत्याचार, नृसिंहद्वारा उसका वध और प्रह्लादको राज्यप्राप्ति)
(44.) Shiv puran rudra samhita yudh khand chapter 44 to 46 (शिव पुराण रुद्रसंहिता युद्ध खंड अध्याय 44 से 46 भाइयोंके उपालम्भसे अन्धकका तप करना और वर पाकर त्रिलोकीको जीतकर स्वेच्छाचारमें प्रवृत्त होना, उसके मन्त्रियोंद्वारा शिव-परिवारका वर्णन, पार्वतीके सौन्दर्यपर मोहित होकर अन्धकका वहाँ जाना और नन्दीश्वरके साथ युद्ध, अन्धकके प्रहारसे नन्दीश्वरकी मूर्च्छा, पार्वतीके आवाहनसे देवियोंका प्रकट होकर युद्ध करना, शिवका आगमन और युद्ध, शिवद्वारा शुक्राचार्यका निगला जाना, शिवकी प्रेरणासे विष्णुका कालीरूप धारण करके दानवोंके रक्तका पान करना, शिवका अन्धकको अपने त्रिशूलमें पिरोना और युद्धकी समाप्ति)
(47.)Shiv puran rudra samhita yudh khand chapter 47 to 49 (शिव पुराण रुद्रसंहिता युद्ध खंड अध्याय 47 से 49 नन्दीश्वरद्वारा शुक्राचार्यका अपहरण और शिवद्वारा उनका निगला जाना, सौ वर्षके बाद शुक्रका शिवलिंगके रास्ते बाहर निकलना, शिवद्वारा उनका ‘शुक्र’ नाम रखा जाना, शुक्रद्वारा जपे गये मृत्युंजय- मन्त्र और शिवाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रका वर्णन, शिवद्वारा अन्धकको वर-प्रदान)
(50.)Shiv puran rudra samhita yudh khand chapter 50 (शिव पुराण रुद्रसंहिता युद्ध खंड अध्याय 50 शुक्राचार्यकी घोर तपस्या और इनका शिवजीको चित्तरत्न अर्पण करना तथा अष्टमूर्त्यष्टक-स्तोत्रद्वारा उनका स्तवन करना, शिवजीका प्रसन्न होकर उन्हें मृतसंजीवनी विद्या तथा अन्यान्य वर प्रदान करना)
(51.)Shiv puran rudra samhita yudh khand chapter 51 to 54 (शिव पुराण रुद्रसंहिता युद्ध खंड अध्याय 51 से 54 बाणासुरकी तपस्या और उसे शिवद्वारा वर-प्राप्ति, शिवका गणों और पुत्रोंसहित उसके नगरमें निवास करना, बाणपुत्री ऊषाका रातके समय स्वप्नमें अनिरुद्धके साथ मिलन, चित्रलेखाद्वारा अनिरुद्धका द्वारकासे अपहरण, बाणका अनिरुद्धको नागपाशमें बाँधना, दुर्गाके स्तवनसे अनिरुद्धका बन्धनमुक्त होना, नारदद्वारा समाचार पाकर श्रीकृष्णकी शोणितपुरपर चढ़ाई, शिवके साथ उनका घोर युद्ध, शिवकी आज्ञासे श्रीकृष्णका उन्हें जृम्भणास्त्रसे मोहित करके बाणकी सेनाका संहार करना)
(55.)Shiv puran rudra samhita yudh khand chapter 55 or 56 (शिव पुराण रुद्रसंहिता युद्ध खंड अध्याय 55 और 56 श्रीकृष्णद्वारा बाणकी भुजाओंका काटा जाना, सिर काटनेके लिये उद्यत हुए श्रीकृष्णको शिवका रोकना और उन्हें समझाना, श्रीकृष्णका परिवारसमेत द्वारकाको लौट जाना, बाणका ताण्डव नृत्यद्वारा शिवको प्रसन्न करना, शिवद्वारा उसे अन्यान्य वरदानोंके साथ महाकालत्वकी प्राप्ति)
(57.)Shiv puran rudra samhita yudh khand chapter 57(शिव पुराण रुद्रसंहिता युद्ध खंड अध्याय 57 गजासुरकी तपस्या, वर-प्राप्ति और उसका अत्याचार, शिवद्वारा उसका वध, उसकी प्रार्थनासे शिवका उसका चर्म धारण करना और ‘कृत्तिवासा’ नामसे विख्यात होना तथा कृत्तिवासेश्वरलिंगकी स्थापना करना)
(58.)Shiv puran rudra samhita yudh khand chapter 58(शिव पुराण रुद्रसंहिता युद्ध खंड अध्याय 58 दुन्दुभिनिर्हाद नामक दैत्यका व्याघ्ररूपसे शिवभक्तपर आक्रमण करनेका विचार और शिवद्वारा उसका वध)
(59.)Shiv puran rudra samhita yudh khand chapter 59(शिव पुराण रुद्रसंहिता युद्ध खंड अध्याय 59 विदल और उत्पल नामक दैत्योंका पार्वतीपर मोहित होना और पार्वतीका कन्दुकप्रहारद्वारा उनका काम तमाम करना, कन्दुकेश्वरकी स्थापना और उनकी महिमा)
(शतरुद्रसंहिता)
(1.)Shiv puran shatrudra samhita chapter 1 शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अध्याय 1शिवजीके सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अघोर और ईशान नामक पाँच अवतारोंका वर्णन)
(2.)Shiv puran shatrudra samhita chapter 2 or 3(शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अअध्याय 2 और 3 शिवजीकी अष्टमूर्तियोंका तथा अर्धनारीनररूपका सविस्तर वर्णन)
(4.) Shiv puran shatrudra samhita chapter 4 (शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अअध्याय 4 वाराहकल्पमें होनेवाले शिवजीके प्रथम अवतारसे लेकर नवम ऋषभ अवतारतकका वर्णन)
(5.)Shiv puran shatrudra samhita chapter 5 (शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अध्याय 5 शिवजीद्वारा दसवेंसे लेकर अट्ठाईसवें योगेश्वरावतारोंका वर्णन)
(6.)Shiv puran shatrudra samhita chapter 6 (शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अध्याय 6 नन्दीश्वरावतारका वर्णन)
(7.) Shiv puran shatrudra samhita chapter 7 (शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अध्याय 7 नन्दीश्वरके जन्म, वरप्राप्ति, अभिषेक और विवाहका वर्णन)
(8.)Shiv puran shatrudra samhita chapter 8 to 13 (शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अध्याय 8 से 13 कालभैरवका माहात्म्य, विश्वानरकी तपस्या और शिवजीका प्रसन्न होकर उनकी पत्नी शुचिष्मतीके गर्भसे उनके पुत्ररूपमें प्रकट होनेका उन्हें वरदान देना)
(14.) Shiv puran shatrudra samhita chapter 14 or 15 (शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अध्याय 14 और 15 शिवजीका शुचिष्मतीके गर्भसे प्राकट्य, ब्रह्माद्वारा बालकका संस्कार करके ‘गृहपति’ नाम रखा जाना, नारदजीद्वारा उसका भविष्य-कथन, पिताकी आज्ञासे गृहपतिका काशीमें जाकर तप करना, इन्द्रका वर देनेके लिये प्रकट होना, गृहपतिका उन्हें ठुकराना, शिवजीका प्रकट होकर उन्हें वरदान देकर दिक्पालपद प्रदान करना तथा अग्नीश्वरलिंग और अग्निका माहात्म्य)
(16.) Shiv puran shatrudra samhita chapter 16 to 18 (शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अध्याय 16 से 18 शिवजीके महाकाल आदि दस अवतारोंका तथा ग्यारह रुद्र-अवतारोंका वर्णन)
(19.) Shiv puran shatrudra samhita chapter 19 or 20 शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अध्याय 19 और 20 शिवजीके ‘दुर्वासावतार’ तथा ‘हनुमदवतार’ का वर्णन)
(21.) Shiv puran shatrudra samhita chapter 21 to 25 शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अअध्याय21 से 25 शिवजीके पिप्पलाद-अवतारके प्रसंगमें देवताओंकी दधीचि मुनिसे अस्थि-याचना, दधीचिका शरीरत्याग, वज्र-निर्माण तथा उसके द्वारा वृत्रासुरका वध, सुवर्चाका देवताओंको शाप, पिप्पलादका जन्म और उनका विस्तृत वृत्तान्त)
(26.) Shiv puran shatrudra samhita chapter 26 or 27 शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अअध्याय 26 और 27 भगवान् शिवके द्विजेश्वरावतारकी कथा – राजा भद्रायु तथा रानी कीर्तिमालिनीकी धार्मिक दृढ़ताकी परीक्षा)
(28.) Shiv puran shatrudra samhita chapter 28 (शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अअध्याय 28 भगवान् शिवका यतिनाथ एवं हंस नामक अवतार)
(29.) Shiv puran shatrudra samhita chapter 29 (शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अअध्याय 29 भगवान् शिवके कृष्णदर्शन नामक अवतारकी कथा)
(30.) Shiv puran shatrudra samhita chapter 30 (शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अध्याय 30 भगवान् शिवके अवधूतेश्वरावतारकी कथा और उसकी महिमाका वर्णन)
(31.) Shiv puran shatrudra samhita chapter 31 (शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अध्याय 31 भगवान् शिवके भिक्षुवर्यावतारकी कथा, राजकुमार और द्विजकुमारपर कृपा)
(32.) Shiv puran shatrudra samhita chapter 32 (शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अध्याय 32 शिवके सुरेश्वरावतारकी कथा, उपमन्युकी तपस्या और उन्हें उत्तम वरकी प्राप्ति)
(33.) Shiv puran shatrudra samhita chapter 33 to 38 (शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अध्याय 33 से 38 शिवजीके किरातावतारके प्रसंगमें श्रीकृष्णद्वारा द्वैतवनमें दुर्वासाके शापसे पाण्डवोंकी रक्षा, व्यासजीका अर्जुनको शक्रविद्या और पार्थिवपूजनकी विधि बताकर तपके लिये सम्मति देना, अर्जुनका इन्द्रकील पर्वतपर तप, इन्द्रका आगमन और अर्जुनको वरदान, अर्जुनका शिवजीके उद्देश्यसे पुनः तपमें प्रवृत्त होना)
(39.) Shiv puran shatrudra samhita chapter 39 (शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अध्याय 39 किरातावतारके प्रसंगमें मूक नामक दैत्यका शूकररूप धारण करके अर्जुनके पास आना, शिवजीका किरातवेषमें प्रकट होना और अर्जुन तथा किरातवेषधारी शिवद्वारा उस दैत्यका वध)
(40.) Shiv puran shatrudra samhita chapter 40 or 41 (शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अध्याय 40 और 41 अर्जुन और शिवदूतका वार्तालाप, किरातवेषधारी शिवजीके साथ अर्जुनका युद्ध, पहचाननेपर अर्जुनद्वारा शिव-स्तुति, शिवजीका अर्जुनको वरदान देकर अन्तर्धान होना, अर्जुनका आश्रमपर लौटकर भाइयोंसे मिलना, श्रीकृष्णका अर्जुनसे मिलनेके लिये वहाँ पधारना)
(42.) Shiv puran shatrudra samhita chapter 42 (शिव पुराण शतरुद्रसंहिता अध्याय 42 शिवजीके द्वादश ज्योतिर्लिंगावतारोंका सविस्तर वर्णन)
(कोटिरुद्रसंहिता)
(1.) Shiv puran kotirudra samhita chapter 1 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 1 द्वादश ज्योतिर्लिंगों तथा उनके उपलिंगोंका वर्णन एवं उनके दर्शन-पूजनकी महिमा)
(2.) Shiv puran kotirudra samhita chapter 2 to 4 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 2 से 4 काशी आदिके विभिन्न लिंगोंका वर्णन तथा अत्रीश्वरकी उत्पत्तिके प्रसंगमें गंगा और शिवके अत्रिके तपोवनमें नित्य निवास करनेकी कथा)
(5.) Shiv puran kotirudra samhita chapter 5 to 7 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 5 से 7 ऋषिकापर भगवान् शिवकी कृपा, एक असुरसे उसके धर्मकी रक्षा करके उसके आश्रममें ‘नन्दिकेश’ नामसे निवास करना और वर्षमें एक दिन गंगाका भी वहाँ आना)
(8.) Shiv puran kotirudra samhita chapter 8 to 14 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 8 से 14 प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथके प्रादुर्भावकी कथा और उसकी महिमा)
(15.) Shiv puran kotirudra samhita chapter 15 or 16 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 15 और 16 मल्लिकार्जुन और महाकाल नामक ज्योतिर्लिंगोंके आविर्भावकी कथा तथा उनकी महिमा)
(17.) (Shiv puran kotirudra samhita chapter 17 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 17 महाकालके माहात्म्यके प्रसंगमें शिवभक्त राजा चन्द्रसेन तथा गोप-बालक श्रीकरकी कथा)
(18.) (Shiv puran kotirudra samhita chapter 18 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 18 विन्ध्यकी तपस्या, ओंकारमें परमेश्वरलिंगके प्रादुर्भाव और उसकी महिमाका वर्णन)
(19.) (Shiv puran kotirudra samhita chapter 19 to 21 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 19 से 21 केदारेश्वर तथा भीमशंकर नामक ज्योतिर्लिंगोंके आविर्भावकी कथा तथा उनके माहात्म्यका वर्णन)
(22.) (Shiv puran kotirudra samhita chapter 22 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 22 विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग और उनकी महिमाके प्रसंगमें पंचक्रोशीकी महत्ताका प्रतिपादन)
(23.) (Shiv puran kotirudra samhita chapter 23 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 23 वाराणसी तथा विश्वेश्वरका माहात्म्य)
(24.) Shiv puran kotirudra samhita chapter 24 or 25 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 24 और 25 त्र्यम्बक ज्योतिर्लिंगके प्रसंगमें महर्षि गौतमके द्वारा किये गये परोपकारकी कथा, उनका तपके प्रभावसे अक्षय जल प्राप्त करके ऋषियोंकी अनावृष्टिके कष्टसे रक्षा करना; ऋषियोंका छलपूर्वक उन्हें गोहत्यामें फँसाकर आश्रमसे निकालना और शुद्धिका उपाय,)
(26.) Shiv puran kotirudra samhita chapter 26 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 26 पत्नीसहित गौतमकी आराधनासे संतुष्ट हो भगवान् शिवका उन्हें दर्शन देना, गंगाको वहाँ स्थापित करके स्वयं भी स्थिर होना,)
(27.) Shiv puran kotirudra samhita chapter 27 or 28 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 27 और 28 वैद्यनाथेश्वर ज्योतिर्लिंगके प्राकट्यकी कथा तथा महिमा)
(29.) Shiv puran kotirudra samhita chapter 29 or 30 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 29 और 30 नागेश्वर नामक ज्योतिर्लिंगका प्रादुर्भाव और उसकी महिमा)
(31.) Shiv puran kotirudra samhita chapter 31 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 31 रामेश्वर नामक ज्योतिर्लिंगके आविर्भाव तथा माहात्म्यका वर्णन)
(32.) Shiv puran kotirudra samhita chapter 32 or 33 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 32 और 33 घुश्माकी शिवभक्तिसे उसके मरे हुए पुत्रका जीवित होना, घुश्मेश्वर शिवका प्रादुर्भाव तथा उनकी महिमाका वर्णन)
(34.) Shiv puran kotirudra samhita chapter 34 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 34 शंकरजीकी आराधनासे भगवान् विष्णुको सुदर्शन चक्रकी प्राप्ति तथा उसके द्वारा दैत्योंका संहार)
(35.) Shiv puran kotirudra samhita chapter 35 or 36 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 35 और 36 भगवान् विष्णुद्वारा पठित शिवसहस्त्रनामस्तोत्र)
(37.) Shiv puran kotirudra samhita chapter 37 or 38 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 37 और 38 भगवान् शिवको संतुष्ट करनेवाले व्रतोंका वर्णन, शिवरात्रि-व्रतकी विधि एवं महिमाका कथन)
(39.) Shiv puran kotirudra samhita chapter 39 (शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 39 शिवरात्रि व्रतके उद्यापनकी विधि)
(40.) Shiv puran kotirudra samhita chapter 40(शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 40 अनजानमें शिवरात्रि-व्रत करनेसे एक भीलपर भगवान् शंकरकी अद्भुत कृपा)
(41.) Shiv puran kotirudra samhita chapter 41(शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 41 मुक्ति और भक्तिके स्वरूपका विवेचन)
(42.) Shiv puran kotirudra samhita chapter 42(शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 42 शिव, विष्णु, रुद्र और ब्रह्माके स्वरूपका विवेचन)
(43.) Shiv puran kotirudra samhita chapter 43(शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 43 शिव सम्बन्धी तत्त्वज्ञानका वर्णन तथा उसकी महिमा, कोटिरुद्रसंहिताका माहात्म्य एवं उपसंहार)
(उमासंहिता)
(1.) Shiv puran uma samhita chapter 1 to 3 (शिव पुराण उमा संहिता अध्याय 1 से 3 भगवान् श्रीकृष्णके तपसे संतुष् और पार्वतीका उन्हें अभीष्ट वर देना तथा शिवकी महिमा)
(4.) Shiv puran uma samhita chapter 4 to 6 (शिव पुराण उमा संहिता अध्याय 4 से 6 नरकमें गिरानेवाले पापोंका संक्षिप्त परिचय)
(7.) Shiv puran uma samhita chapter 7 (शिव पुराण उमा संहिता अध्याय 7 पापियों और पुण्यात्माओंकी यमलोकयात्रा)
(8.) Shiv puran uma samhita chapter 8 (शिव पुराण उमा संहिता अध्याय 8 नरकोंकी अट्ठाईस कोटियों तथा प्रत्येकके पाँच-पाँच नायकके क्रमसे एक सौ चालीस रौरवादि नरकोंकी नामावली)
(9.) Shiv puran uma samhita chapter 9 or 10 (शिव पुराण उमा संहिता अध्याय 9 और 10 विभिन्न पापोंके कारण मिलनेवाली नरकयातनाका वर्णन तथा कुक्कुरबलि, काकबलि एवं देवता आदिके लिये दी हुई बलिकी आवश्यकता एवं महत्ताका प्रतिपादन)
(11.) Shiv puran uma samhita chapter 11 (शिव पुराण उमा संहिता अध्याय 11 यमलोकके मार्गमें सुविधा प्रदान करनेवाले विविध दानोंका वर्णन)
(12.) Shiv puran uma samhita chapter 12 (शिव पुराण उमा संहिता अध्याय 12 जलदान, जलाशय-निर्माण, वृक्षारोपण, सत्यभाषण और तपकी महिमा)
(13.) Shiv puran uma samhita chapter 13 to 16 (शिव पुराण उमा संहिता अध्याय 13 से 16 वेद और पुराणोंके स्वाध्याय तथा विविध प्रकारके दानकी महिमा, नरकोंका वर्णन तथा उनमें गिरानेवाले पापोंका दिग्दर्शन, पापोंके लिये सर्वोत्तम प्रायश्चित्त शिवस्मरण तथा ज्ञानके महत्त्वका प्रतिपादन)
(17.) Shiv puran uma samhita chapter 17 to 25 (शिव पुराण उमा संहिता अध्याय 17 से 25 मृत्युकाल निकट आनेके कौन-कौनसे लक्षण हैं, इसका वर्णन)
(26.) Shiv puran uma samhita chapter 26 (शिव पुराण उमा संहिता अध्याय 26 कालको जीतनेका उपाय, नवधा शब्दब्रह्म एवं तुंकारके अनुसंधान और उससे प्राप्त होनेवाली सिद्धियोंका वर्णन)
(27.) Shiv puran uma samhita chapter 27 (शिव पुराण उमा संहिता अध्याय 27 काल या मृत्युको जीतकर अमरत्व प्राप्त करनेकी चार यौगिक साधनाएँ – प्राणायाम, भ्रूमध्यमें अग्निका ध्यान, मुखसे वायुपान तथा मुड़ी हुई जिह्वाद्वारा गलेकी घाँटीका स्पर्श)
(28.) Shiv puran uma samhita chapter 28 to 45 (शिव पुराण उमा संहिता अध्याय 28 से 45 भगवती उमाके कालिका-अवतारकी कथा – समाधि और सुरथके समक्ष मेधाका देवीकी कृपासे मधुकैटभके वधका प्रसंग सुनाना)
(46.) Shiv puran uma samhita chapter 46 (शिव पुराण उमा संहिता अध्याय 46 सम्पूर्ण देवताओंके तेजसे देवीका महालक्ष्मीरूपमें अवतार और उनके द्वारा महिषासुरका वध)
(47.) Shiv puran uma samhita chapter 47 (शिव पुराण उमा संहिता अध्याय 47 देवी उमाके शरीरसे सरस्वतीका आविर्भाव, उनके रूपकी प्रशंसा सुनकर शुम्भका उनके पास दूत भेजना, दूतके निराश लौटनेपर शुम्भका क्रमशः धूम्रलोचन, चण्ड, मुण्ड तथा रक्तबीजको भेजना और देवीके द्वारा उन सबका मारा जाना)
(48.) Shiv puran uma samhita chapter 48 (शिव पुराण उमा संहिता अध्याय 48 देवीके द्वारा सेना और सेनापतियोंसहित निशुम्भ एवं शुम्भका संहार)
(49.) Shiv puran uma samhita chapter 49 (शिव पुराण उमा संहिता अध्याय 49 देवताओंका गर्व दूर करनेके लिये तेजःपुंजरूपिणी उमाका प्रादुर्भाव)
(50.) Shiv puran uma samhita chapter 50 (शिव पुराण उमा संहिता अध्याय 50 देवीके द्वारा दुर्गमासुरका वध तथा उनके दुर्गा, शताक्षी, शाकम्भरी और भ्रामरी आदि नाम पड़नेका कारण)
(51.) Shiv puran uma samhita chapter 51 (शिव पुराण उमा संहिता अध्याय 51 देवीके क्रियायोगका वर्णन – देवीकी मूर्ति एवं मन्दिरके निर्माण, स्थापन और पूजनका महत्त्व, परा अम्बाकी श्रेष्ठता, विभिन्न मासों और तिथियोंमें देवीके व्रत, उत्सव और पूजन आदिके फल तथा इस संहिताके श्रवण एवं पाठकी महिमा)
(कैलाससंहिता)
(1.) Shiv puran kailash samhita chapter 1 to 11 (शिव पुराण कैलाससंहिता संहिता अध्याय 1 से 11 ऋषियोंका सूतजीसे तथा वामदेवजीका स्कन्दसे प्रश्न – प्रणवार्थ-निरूपणके लिये अनुरोध)
(12.) Shiv puran kailash samhita chapter 12 (शिव पुराण कैलाससंहिता संहिता अध्याय 12 प्रणवके वाच्यार्थरूप सदाशिवके स्वरूपका ध्यान, वर्णाश्रम-धर्मके पालनका महत्त्व, ज्ञानमयी पूजा, संन्यासके पूर्वागभूत नान्दीश्राद्ध एवं ब्रह्मयज्ञ आदिका वर्णन)
(13.) Shiv puran kailash samhita chapter 13 (शिव पुराण कैलाससंहिता संहिता अध्याय 13 संन्यासग्रहणकी शास्त्रीय विधि – गणपति-पूजन, होम, तत्त्व-शुद्धि, सावित्री-प्रवेश, सर्वसंन्यास और दण्ड-धारण आदिका प्रकार)
(14.) Shiv puran kailash samhita chapter 14 (शिव पुराण कैलाससंहिता संहिता अध्याय 14 प्रणवके अर्थोंका विवेचन)
(15.) Shiv puran kailash samhita chapter 15 or 16 (शिवपुराण कैलाससंहिता संहिता अध्याय 15 और 16 शैवदर्शनके अनुसार शिवतत्त्व, जगत्-प्रपंच और जीवतत्त्वके विषयमें विशद विवेचन तथा शिवसे जीव और जगत्की अभिन्नताका प्रतिपादन)
(17.) Shiv puran kailash samhita chapter 17 to 19 (शिवपुराण कैलाससंहिता संहिता अध्याय 17 से 19 महावाक्योंके अर्थपर विचार तथा संन्यासियोंके योगपट्टका प्रकार)
(20.) Shiv puran kailash samhita chapter 20 or 21 (शिवपुराण कैलाससंहिता संहिता अध्याय 20 और 21 यतिके अन्त्येष्टिकर्मकी दशाहपर्यन्त विधिका वर्णन)
(22.) Shiv puran kailash samhita chapter 22 (शिवपुराण कैलाससंहिता संहिता अध्याय 22 यतिके लिये एकादशाह-कृत्यका वर्णन)
(23.) Shiv puran kailash samhita chapter 23 (शिवपुराण कैलाससंहिता संहिता अध्याय 23 यतिके द्वादशाह-कृत्यका वर्णन, स्कन्द और वामदेवका कैलास पर्वतपर जाना तथा सूतजीके द्वारा इस संहिताका उपसंहार)
(वायवीयसंहिता(पूर्वखण्ड))
(1.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 1(वायु संहिता अध्याय 1 प्रयागमें ऋषियोंद्वारा सम्मानित सूतजीके द्वारा कथाका आरम्भ, विद्यास्थानों एवं पुराणोंका परिचय तथा वायुसंहिताका प्रारम्भ)
(2.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 2(शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 2 ऋषियों का ब्रह्माजी के पास जा उनकी स्तुति करके उनसे परम पुरुष के विषय में प्रश्न करना और ब्रह्माजी का आनन्दमग्न हो ‘रुद्र’ कहकर उत्तर देना)
(3.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 3(शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 3 ब्रह्माजीके द्वारा परमतत्त्वके रूपमें भगवान् शिवकी ही महत्ताका प्रतिपात्न, उनकी कृपाको ही सब साधनोंका फल बताना तथा उनकी आज्ञासे सब मुनियोंका नैमिषारण्यमें आना)
(4.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 4 or 5 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 4 और 5 नैमिषारग्य में दीर्घसत्र के अन्त में मुनियों के पास वायुदेवता का आगमन, उनका सत्कार तथा ऋषियों के पूछने पर वायु के द्वारा पशु, पाश एवं पशुपति का तात्त्विक विवेचन)
(6.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 6 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 6 महेश्वरकी महत्ताका प्रतिपादन)
(7.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 7 to 12 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 7 से 12 ब्रह्माजीकी मूर्च्छा, उनके मुखसे रुद्रदेवका प्राकट्य, सप्राण हुए ब्रह्माजीके द्वारा आठ नामोंसे महेश्वरकी स्तुति तथा रुद्रकी आज्ञासे ब्रह्माद्वारा सृष्टि-रचना)
(13.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 13 or 14 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 13 और 14 भगवान् रुद्रके ब्रह्माजीके मुखसे प्रकट होनेका रहस्य, रुद्रके महामहिम स्वरूपका वर्णन, उनके द्वारा रुद्रगणोंकी सृष्टि तथा ब्रह्माजीके रोकनेसे उनका सृष्टिसे विरत होना)
(15.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 15 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 15 ब्रह्माजीके द्वारा अर्द्धनारीश्वररूपकी स्तुति तथा उस स्तोत्रकी महिमा)
(16.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 16 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 16 महादेवजीके शरीरसे देवीका प्राकट्य और देवीके भ्रूमध्यभागसे शक्तिका प्रादुर्भाव)
(17.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 17 to 24 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 17 से 24 भगवान् शिवका पार्वती तथा पार्षदोंके साथ मन्दराचलपर जाकर रहना, शुम्भ निशुम्भके वधके लिये ब्रह्माजीकी प्रार्थनासे शिवका पार्वतीको ‘काली’ कहकर कुपित करना और कालीका ‘गौरी’ होनेके लिये तपस्याके निमित्त जानेकी आज्ञा माँगना)
(25.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 25 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 25 पार्वतीकी तपस्या, एक व्याघ्रपर उनकी कृपा, ब्रह्माजीका उनके पास आना, देवीके साथ उनका वार्तालाप, देवीके द्वारा काली त्वचाका त्याग और उससे कृष्णवर्णा कुमारी कन्याके रूपमें उत्पन्न हुई कौशिकीके द्वारा शुम्भ-निशुम्भका वध)
(26.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 26 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 26 गौरीदेवीका व्याघ्रको अपने साथ ले जानेके लिये ब्रह्माजीसे आज्ञा माँगना, ब्रह्माजीका उसे दुष्कर्मी बताकर रोकना, देवीका शरणागतको त्यागनेसे इनकार करना, ब्रह्माजीका देवीकी महत्ता बताकर अनुमति देना और देवीका माता- पितासे मिलकर मन्दराचलको जाना)
(27.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 27 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 27 मन्दराचलपर गौरीदेवीका स्वागत, महादेवजीके द्वारा उनके और अपने उत्कृष्ट स्वरूप एवं अविच्छेद्य सम्बन्धपर प्रकाश तथा देवीके साथ आये हुए व्याघ्रको उनका गणाध्यक्ष बनाकर अन्तःपुरके द्वारपर सोमनन्दी नामसे प्रतिष्ठित करना)
(28.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 28 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 28 अग्नि और सोमके स्वरूपका विवेचन तथा जगत्की अग्नीषोमात्मकताका प्रतिपादन)
(29.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 29 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 29 जगत् ‘वाणी और अर्थरूप’ है- इसका प्रतिपादन)
(30.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 30 or 31 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 30 और 31 ऋषियोंके प्रश्नका उत्तर देते हुए वायुदेवके द्वारा शिवके स्वतन्त्र एवं सर्वानुग्राहक स्वरूपका प्रतिपादन)
(32.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 32 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 32 परम धर्मका प्रतिपादन, शैवागमके अनुसार पाशुपत ज्ञान तथा उसके साधनोंका वर्णन)
(33.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 33 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 33 पाशुपत-व्रतकी विधि और महिमा तथा भस्मधारणकी महत्ता)
(34.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 34 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 34 बालक उपमन्युको दूधके लिये दुःखी देख माताका उसे शिवकी आराधनाके लिये प्रेरित करना तथा उपमन्युकी तीव्र तपस्या)
(35.) Shiv puran vayu samhita purvkhand chapter 35 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 35 भगवान् शंकरका इन्द्ररूप धारण करके उपमन्युके भक्तिभावकी परीक्षा लेना, उन्हें क्षीरसागर आदि देकर बहुत-से वर देना और अपना पुत्र मानकर पार्वतीके हाथमें सौंपना, कृतार्थ हुए उपमन्युका अपनी माताके स्थानपर लौटना)
(वायवीयसंहिता (उत्तरखण्ड)
(1.) Shiv puran vayu samhita uttarkhand chapter 1(शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 1 ऋषियोंके पूछनेपर वायुदेवका श्रीकृष्ण और उपमन्युके मिलनका प्रसंग सुनाना, श्रीकृष्णको उपमन्युसे ज्ञानका और भगवान् शंकरसे पुत्रका लाभ)
(2.) Shiv puran vayu samhita uttarkhand chapter 2(शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 2 उपमन्युद्वारा श्रीकृष्णको पाशुपत ज्ञानका उपदेश)
(3.) Shiv puran vayu samhita uttarkhand chapter 3(शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 3 भगवान् शिवकी ब्रह्मा आदि पंचमूर्तियों, ईशानादि ब्रह्ममूर्तियों तथा पृथ्वी एवं शर्व आदि अष्टमूर्तियोंका परिचय और उनकी सर्वव्यापकताका वर्णन)
(4.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 4(शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 4 शिव और शिवाकी विभूतियोंका वर्णन)
(5.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 5(शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 5 परमेश्वर शिवके यथार्थ स्वरूपका विवेचन तथा उनकी शरणमें जानेसे जीवके कल्याणका कथन)
(6.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 6 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 6 शिवके शुद्ध, बुद्ध, मुक्त, सर्वमय, सर्वव्यापक एवं सर्वातीत स्वरूपका तथा उनकी प्रणवरूपताका प्रतिपादन)
(7.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 7 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 7 परमेश्वरकी शक्तिका ऋषियोंद्वारा साक्षात्कार, शिवके प्रसादसे प्राणियोंकी मुक्ति, शिवकी सेवा-भक्ति तथा पाँच प्रकारके शिवधर्मका वर्णन)
(8.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 8 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 8 शिव-ज्ञान, शिवकी उपासनासे देवताओंको उनका दर्शन, सूर्यदेवमें शिवकी पूजा करके अर्घ्यदानकी विधि तथा व्यासावतारोंका वर्णन)
(9.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 9 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 9 शिवके अवतार, योगाचार्यों तथा उनके शिष्योंकी नामावली)
(10.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 10 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 10 भगवान् शिवके प्रति श्रद्धा-भक्तिकी आवश्यकताका प्रतिपादन, शिवधर्मके चार पादोंका वर्णन एवं ज्ञानयोगके साधनों तथा शिवधर्मके अधिकारियोंका निरूपण, शिवपूजनके अनेक प्रकार एवं अनन्यचित्तसे भजनकी महिमा)
(11.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 11 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 11वर्णाश्रम-धर्म तथा नारी-धर्मका वर्णन; शिवके भजन, चिन्तन एवं ज्ञानकी महत्ताका प्रतिपादन)
(12.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 12 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 12 पंचाक्षर-मन्त्रके माहात्म्यका वर्णन)
(13.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 13 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 13 पंचाक्षर-मन्त्रकी महिमा, उसमें समस्त वाङ्मयकी स्थिति, उसकी उपदेशपरम्परा, देवीरूपा पंचाक्षरीविद्याका ध्यान, उसके समस्त और व्यस्त अक्षरोंके ऋषि, छन्द, देवता, बीज, शक्ति तथा अंगन्यास आदिका विचार)
(14.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 14 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 14 गुरुसे मन्त्र लेने तथा उसके जप करनेकी विधि, पाँच प्रकारके जप तथा उनकी महिमा, मन्त्रगणनाके लिये विभिन्न प्रकारकी मालाओंका महत्त्व तथा अंगुलियोंके उपयोगका वर्णन, जपके लिये उपयोगी स्थान तथा दिशा, जपमें वर्जनीय बातें, सदाचारका महत्त्व, आस्तिकताकी प्रशंसा तथा पंचाक्षर-मन्त्रकी विशेषताका वर्णन)
(15.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 15 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 15 त्रिविध दीक्षाका निरूपण, शक्तिपातकी आवश्यकता तथा उसके लक्षणोंका वर्णन, गुरुका महत्त्व, ज्ञानी गुरुसे ही मोक्षकी प्राप्ति तथा गुरुके द्वारा शिष्यकी परीक्षा)
(16.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 16 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 16 समय-संस्कार या समयाचारकी दीक्षाकी विधि)
(17.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 17 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 17 षड्ध्वशोधन की विधि)
(18.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 18 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 18 षड्ध्वशोधन की विधि)
(19.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 19 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 19 साधक-संस्कार और मन्त्र-माहात्म्यका वर्णन)
(20.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 20 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 20 योग्य शिष्यके आचार्यपदपर अभिषेकका वर्णन तथा संस्कारके विविध प्रकारोंका निर्देश)
(21.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 21 to 23 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 21 to 23 अन्तर्याग अथवा मानसिक पूजाविधिका वर्णन)
(24.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 24 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 24 शिवपूजनकी विधि)
(25.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 25 or 26 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 25 or 26 शिवपूजाकी विशेष विधि तथा शिव-भक्तिकी महिमा)
(27.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 27 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 27 पंचाक्षर-मन्त्रके जप तथा भगवान् शिवके भजन-पूजनकी महिमा, अग्निकार्यके लिये कुण्ड और वेदी आदिके संस्कार, शिवाग्निकी स्थापना और उसके संस्कार, होम, पूर्णाहुति, भस्मके संग्रह एवं रक्षणकी विधि तथा हवनान्तमें किये जानेवाले कृत्यका वर्णन)
(28.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 28 or 29 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 28 or 29 काम्य कर्मके प्रसंगमें शक्तिसहित पंचमुख महादेवकी पूजाके विधानका वर्णन)
(29.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 30 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 30 आवरणपूजाकी विस्तृत विधि तथा उक्त विधिसे पूजनकी महिमाका वर्णन)
(31.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 31 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 31 शिवके पाँच आवरणोंमें स्थित सभी देवताओंकी स्तुति तथा उनसे अभीष्टपूर्ति एवं मंगलकी कामना)
(32.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 32 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 32 ऐहिक फल देनेवाले कर्मों और उनकी विधिका वर्णन, शिव- पूजनकी विधि, शान्ति-पुष्टि आदि विविध काम्य कर्मोंमें विभिन्न हवनीय पदार्थोंके उपयोगका विधान)
(33.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 33 to 36 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 33 to 36 पारलौकिक फल देनेवाले कर्म – शिवलिंग-महाव्रतकी विधि और महिमाका वर्णन)
(37.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 37 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 37 योगके अनेक भेद, उसके आठ और छः अंगोंका विवेचन – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, दशविध प्राणोंको जीतनेकी महिमा, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधिका निरूपण)
(38.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 38 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 38 योगमार्गके विघ्न, सिद्धि-सूचक उपसर्ग तथा पृथ्वीसे लेकर बुद्धि- तत्त्वपर्यन्त ऐश्वर्यगुणोंका वर्णन, शिव-शिवाके ध्यानकी महिमा)
(39.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 39 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 39 ध्यान और उसकी महिमा, योगधर्म तथा शिवयोगी का महत्त्व शिवभक्त या शिवके लिये प्राण देने अथवा शिवक्षेत्रमें मरणसे तत्काल मोक्ष-लाभका कथन)
(40.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 40 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 40 वायुदेवका अन्तर्धान, ऋषियोंका सरस्वतीमें अवभृथ-स्नान और काशीमें दिव्य तेजका दर्शन करके ब्रह्माजीके पास जाना, ब्रह्माजीका उन्हें सिद्धि-प्राप्तिकी सूचना देकर मेरुके कुमारशिखरपर भेजना)
(41.) Shiv puran vayu samhita uttar khand chapter 41 (शिव पुराण वायु संहिता अध्याय 41 मेरुगिरिके स्कन्द-सरोवरके तटपर मुनियोंका सनत्कुमारजीसे मिलना, भगवान् नन्दीका वहाँ आना और दृष्टिपातमात्रसे पाशछेदन एवं ज्ञानयोगका उपदेश करके चला जाना, शिवपुराणकी महिमा तथा ग्रन्थका उपसंहार)
॥ वायवीयसंहिता सम्पूर्ण ॥
॥ शिवपुराण सम्पूर्ण ॥