जनमेजय बोले- हे मुनिश्रेष्ठ ! हे विभो !अद्भुत चरित्रवाले भगवान् विष्णुने भृगुके शापसे किस मन्वन्तरमें किस प्रकार अवतार ग्रहण किये। हे धर्मज्ञ ! हे ब्रह्मन् ! श्रवण करनेपर समस्त सुख सुलभ करानेवाली तथा पापोंका नाश कर देनेवाली भगवान् विष्णुकी अवतार-कथाका विस्तारसे वर्णन कीजिये ॥ १-२ ॥
व्यासजी बोले- हे राजन् ! हे नराधिप !जिस मन्वन्तर तथा जिस युगमें जैसे-जैसे भगवान् विष्णुके अवतार हुए हैं, उन अवतारोंको मैं बता रहा हूँ, आप सुनें। हे नृप ! भगवान् नारायणने जिस रूपसे जो कार्य किया, वह सब मैं आपको इस समय संक्षेपमें बताता हूँ ॥ ३-४॥
चाक्षुष मन्वन्तरमें साक्षात् विष्णुका धर्मावतार हुआ था। उस समय वे धर्मपुत्र होकर नर-नारायण नामसे धरातलपर विख्यात हुए ॥ ५ ॥
इस वैवस्वत मन्वन्तरके दूसरे चतुर्युगमें भगवान्का दत्तात्रेयावतार हुआ। वे भगवान् श्रीहरि महर्षि अत्रिके पुत्ररूपमें अवतीर्ण हुए ॥ ६ ॥
उन अत्रिमुनिकी भार्या अनसूयाकी प्रार्थनापर ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश- ये तीनों महान् देवता उनके पुत्ररूपमें उत्पन्न हुए थे ॥ ७॥
अत्रिकी पत्नी साध्वी अनसूया सती स्त्रियोंमें श्रेष्ठ थीं, जिनके सम्यक् रूपसे प्रार्थना करनेपर वे तीनों देवता उनके पुत्ररूपमें अवतरित हुए ॥ ८ ॥
उनमें ब्रह्माजी सोम (चन्द्रमा) रूपमें, साक्षात् विष्णु दत्तात्रेयके रूपमें और शंकरजी दुर्वासाके रूपमें उनके यहाँ पुत्रत्वको प्राप्त हुए ॥ ९ ॥
देवताओंका कार्य सिद्ध करनेके लिये चौथे चतुर्युगमें दो प्रकारके रूपोंवाला मनोहर नृसिंहावतार हुआ। भगवान् श्रीविष्णुने उस समय हिरण्यकशिपुका सम्यक् वध करनेके लिये ही देवताओंको भी चकित कर देनेवाला नारसिंहरूप धारण किया था ॥ १०-११ ॥
भगवान् विष्णुने दैत्यराज बलिका शमन करनेके उद्देश्यसे उत्तम त्रेतायुगमें कश्यपमुनिके यहाँ वामनरूपसे अवतार धारण किया था। उन वामनरूपधारी विष्णुने यज्ञमें राजा बलिको छलकर उनका राज्य हर लिया और उन्हें पातालमें स्थापित कर दिया ॥ १२-१३ ॥
उन्नीसवें चतुर्युगके त्रेता नामक युगमें भगवान्वि ष्णु महर्षि जमदग्निके परशुराम नामक महाबली पुत्रके रूपमें उत्पन्न हुए ॥ १४ ॥
क्षत्रियोंका नाश कर डालनेवाले उन प्रतापी, सत्यवादी तथा जितेन्द्रिय परशुरामने सम्पूर्ण पृथ्वी [ क्षत्रियोंसे छीनकर] महात्मा कश्यपको दे दी थी ॥ १५ ॥
हे राजेन्द्र ! मैंने अद्भुत कर्मवाले भगवान् विष्णुके पापनाशक ‘परशुराम’ नामक अवतारका यह वर्णन कर दिया ॥ १६ ॥
भगवान् विष्णुने त्रेतायुगमें रघुके वंशमें दशरथपुत्र रामके रूपमें अवतार धारण किया था। इसी प्रकार अट्ठाईसवें द्वापरयुगमें साक्षात् नर तथा |
नारायणके अंशसे कल्याणप्रद तथा महाबली अर्जुन और श्रीकृष्ण पृथ्वीतलपर अवतीर्ण हुए। श्रीकृष्ण तथा अर्जुनने पृथ्वीका भार उतारनेके लिये ही भूमण्डलपर अवतार लिया और कुरुक्षेत्रमें अत्यन्त भयंकर महायुद्ध किया ॥ १७-१८३ ॥
हे राजन् ! इस प्रकार प्रकृतिके आदेशानुसार युग-युगमें भगवान् विष्णुके अनेक अवतार हुआ करते हैं। यह सम्पूर्ण त्रिलोकी प्रकृतिके अधीन रहती है। ये भगवती प्रकृति जैसे चाहती हैं वैसे ही जगत्को निरन्तर नचाया करती हैं। परमपुरुषकी प्रसन्नताके लिये ही वे समस्त संसारकी रचना करती हैं ॥ १९-२१ ॥
प्राचीनकालमें इस चराचर जगत्का सृजन करके सबके आदिरूप, सर्वत्र गमन करनेवाले, दुर्जेय, महान्, अविनाशी, स्वतन्त्र, निराकार, निःस्पृह और परात्पर वे भगवान् जिन मायारूपिणी भगवतीके संयोगसे उपाधिरूपमें [ब्रह्मा, विष्णु, महेश] तीन प्रकारके प्रतीत होते हैं, वे ही ‘परा प्रकृति’ हैं ॥ २२-२३॥
उत्पत्ति और कालके योगसे ही वे कल्याणमयी प्रकृति उस परमात्मासे भिन्न भासती हैं। सबका मनोरथ पूर्ण करनेवाली वे प्रकृति ही विश्वकी रचना करती हैं, सम्यक् रूपसे पालन करती हैं और कल्पके अन्तमें संहार भी कर देती हैं।
इस प्रकार वे विश्वमोहिनी भगवती प्रकृति ही तीन रूपोंमें विराजमान रहती हैं। उन्हींसे संयुक्त होकर ब्रह्माने जगत्की सृष्टि की है, उन्हींसे सम्बद्ध होकर विष्णु पालन करते हैं और उन्हींके साथ मिलकर कल्याणकारी रुद्र संहार करते हैं ॥ २४-२५३ ॥
पूर्वकालमें उन भगवती परा प्रकृतिने ही ककुत्स्थवंशी नृपश्रेष्ठको उत्पन्न करके दानवोंको पराजित करनेके लिये उन्हें कहींपर स्थापित कर दिया। इस प्रकार इस संसारमें सभी प्राणी विधिके नियमोंमें बँधकर सदा सुख तथा दुःखसे युक्त रहते हैं ॥ २६-२८ ॥
इति श्रीमद्देवीभागवते महापुराणेऽष्टादशसाहस्त्रयां संहितायां चतुर्थस्कन्धे हरेर्नानावतारवर्णनं नाम षोडशोऽध्यायः ॥ १६ ॥